क्या रिश्ता है तुझसे मेरा- कविता झा  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : दयमंती का बुखार उतरने का नाम नहीं ले रहा था, तीन दिन हो गए थे। वो तीन बच्चों की माँ बिस्तर पर बुखार में तप रहीं थीं। 

उनकी जिद्द थी कि शादी के बाद बेटियां पराई हो जाती हैं उन पर हमारा कोई अधिकार नहीं रहता है इसलिए कुछ भी हो जाए वो अपने बेटे के साथ ही रहेंगी । 

बड़ी बेटी जया का घर पास में ही था, वो कभी-कभार मिलने चली जाती पर ज्यादा देर रुकती नहीं थी अपनी बेटी के घर में। 

जया हमेशा कहती,” माँ तुम यहाँ आकर क्यों नहीं रहती, मेरे भी घुटनों में दर्द रहता है । सीढ़ियां चढ़ना बड़ा मुश्किल हो गया है। “

वैसे जया रोज सुबह का इतना नाश्ता अपनी मांँ के लिए पिछले कई सालों से जब से उनके आंखों की रोशनी कम हो गई थी और वो खुद खाना नहीं बना पाती थी, भिजवा देती जिसे दयमंती दोपहर के खाने के लिए भी रख लेती।

बेटी के घर का खाना बेटे के घर में रहकर खा सकतीं थीं पर वहां जाकर रहेंगी तो…

यह समाज क्या कहेगा, आस-पड़ोस के लोग क्या कहेंगे अगर बेटी के घर में रहेंगी। 

उनकी बहू का देहांत कुछ वर्ष पूर्व हो गया था जिसके बाद अपने पोते-पोतियों की परविस की जिम्मेदारी उनके कांधे पर आ गई थी। अपने तीनों बच्चों के विवाह उपरांत वो निश्चिंत हो गई थी अपना कर्तव्य पालन करके।

उनके पति रमाकांत का देहांत हुए भी कई साल हो गए थे। अकेले ही सारी जिम्मेदारियां संभाली। पोते पोती को भी पढ़ा लिखा कर अच्छा घर ढूंढ उनकी शादी करवा दी थी।

 अब उनके पोते पोती अपने-अपने घर-परिवार में व्यस्त हो गए थे और बेटा बबलू अपने बिजनेस में इतना व्यस्त रहता कि उसे मांँ की खोज खबर लेने की भी फुर्सत नहीं होती। 

अकेली रह गई थीं दयमंती। रात को जब बेटा आता तो नशे में धुत रहता ।

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“तूने खाना खाया माँ…”

बस इतना भर पूछ कर बिस्तर पर निढ़ाल हो जाता और अपने कर्तव्य से मुक्त।

दयमंती अपने बेटे को ही अपना इकलौता वारिस मानती, अपनी दोनों बेटियों से सिर्फ फोन पर बात करना और हालचाल पूछ लेती।

दो रात से बेटा घर आया ही नहीं अपने दोस्तों के साथ मनाली घूमने चला गया था।

जहांँ उसके एक वकील दोस्त ने उसके कान भरने शुरू किए और कहा,”बबलू अब जल्दी ही बेच दे अपने पिताजी की सारी संपत्ति। उस पर तुम्हारी बहनों का भी पूरा अधिकार है । तुम्हारी मां के जाने के बाद वो कभी भी अपना हिस्सा मांग सकतीं हैं तो अच्छा होगा जो तुम अपनी मां के रहते ही अपने माता पिता के नाम की सारी संपत्ति बेच दो।”

यह बात बबलू के दिमाग में कई सालों से चल रही थी ।

इधर उनकी पड़ोसन रमा अपने दो साल के बेटे को खोजती हुई दयमंती के घर आई जहांँ वो हमेशा आ जाता था खेलने के लिए।

रमा दयमंती को दादीजी कहकर ही बुलाती थी।

उस दिन बिस्तर पर लेटी दयमंती का तपता शरीर देखा तो काफी देर तक उनके पास बैठी रहीं, और ठंडे पानी की पट्टी करती रही। 

” दादी जी आपकी इतनी तबीयत खराब थी तो आपने मुझे क्यों नहीं फोन कर दिया पहले। अभी जया बुआ भी अपने बेटे के पास गई है और छोटी बुआ तो विदेश में रहती है। बबलू चाचा भी घर पर नहीं हैं, तो ऐसे में पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आयेगा। वैसे भी मैं आपको अपनी दादी की तरह मानती हूंँ। चलिए पहले डॉक्टर के पास फिर आप मेरे साथ मेरे घर पर ही रहिएगा।”

“रमा मेरे तीनों बच्चे और उनके बच्चे किसी को मेरी चिंता नहीं है, तीन दिन से बिस्तर पर पड़ी हूंँ किसी ने खोज खबर नहीं ली। सभी अपने अधिकार के लिए लड़ रहे हैं तेरे दादाजी का बनाया वो घर जिसे हमने खून पसीना एक कर जोड़ा था, बबलू उसे बेचने के लिए तैयार है और मेरी दोनों बेटियां अपने हक के लिए लड़ रहीं हैं। इसमें मेरी ही पूरी गलती है मैंने ही हमेशा अपने बेटे बेटी में फर्क किया।जब भी पहले बीमार पड़ती थी जया ही मुझे संभालती थी और राधिका भी मुझसे मिलने मेरी सेवा करने दौड़ी चली आती थी जब तक उसका पति यहीं रहता था। अब तो इतनी दूर चली गई है कि फोन पर भी बात नहीं हो पाती।” दयमंती की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे। 

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” दादी जी शांत हो जाइए। वो लोग अपना कर्तव्य भूल गए हैं और सिर्फ अपने अधिकार की बात कर रहें हैं। आप आज से मेरे साथ रहेंगी।”

रमा ने डॉक्टर को फोन लगाया और थोड़ी ही देर में डॉक्टर आ गया । कुछ टेस्ट और दवाईयों की पर्ची रमा के हाथ में पकड़ा दी। दयंमती एकटक रमा को निहारती रही और मन में एक ही सवाल आ रहा था कौन है तू मेरी, क्या रिश्ता है तुझ मेरा।

कविता झा 

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