रविवार की छुट्टी (हास्य) – रेखा जैन : Short Moral Stories in Hindi

आज रविवार है।  हर रविवार को पति और बच्चों की छुट्टी होती है और उन लोगो की छुट्टी होने से मेरा रविवार सब दिनों से ज्यादा बिजी जाता है। 

 पति देव के हर दो घंटे में चाय की फरमाइश और उस पर तुर्रा ये कि सिर्फ चाय नहीं चलेगी,,,साथ में पकोड़े या पॉपकॉर्न भी चाहिए।

बच्चो की अलग फरमाइश,…”रोज तो हम वो ही सब्जी पराठा टिफिन में ले जाते है,,आज तो कुछ स्पेशल बनाओ ना मम्मा!” बच्चे मेरे ऐसे मुंह लटका कर बोलते है कि मेरे दिल में ममता उछाले मारने लग जाती है।  फिर मैं कुछ स्पेशल बनाने में जुट जाती हुं।  

ये बात अलग है कि उस दिन मेरे घर में मांजने के बर्तन इतने इकठ्ठे हो जाते है कि लगता है पूरे मोहल्ले को जीमन में बुलाया है।

इतने बर्तन देख कर अक्सर मेरी बर्तन वाली बाई भी छुट्टी मार कर रविवार मना लेती है।

और मैं बेचारी ममता की मारी देर रात तक बर्तन घिसते रहती हुं और मेरे बेचारे मासूम बच्चे और दुलारे पतिदेव आराम से खर्राटे खींच रहे होते है।😏😏😏

तब मेरे दिमाग के चारों दिशाओं में एक ही विचार घूमता रहता है कि हम गृहिणाओं का रविवार कब आएगा?,,,, हमें कब छुट्टी मिलेगी?🙄🙄

 लो आज फिर मेरा दुश्मन रविवार आ गया।  आज तो मैने ठान ही लिया था कि आज मैं भी छुट्टी लुंगी। इन तीनों (पति देव और बच्चे) को भी तो पता चले कि मेरा रविवार कैसा जाता है!

मेरे पतिदेव को खाने में कुछ बनाना नहीं आता।  मैं कुछ नया ट्राई करके बनाऊं तो जनाब को पसंद आया तो ठीक वरना जवाब आता है,..”ये मुझे कुछ जमा नहीं!”

बच्चे भी पसंद नहीं आने पर मुंह ऐसा बिगाड़ते है जैसे के मैने कड़वा नीम खिला दिया हो 😑😑।

ये नहीं देखते कि इतनी गर्मी में घंटो खड़े रह कर बनाया है,,,मेरी भावनाओं की कोई इज्जत ही नहीं 😏😏

इसलिए आज तो मैने सोच ही लिया कि आज रविवार की मुझे छुट्टी चाहिए तो चाहिए…बस!!!

सुबह पतिदेव 8 बजे उठे और उठते ही नींद में ही बोले, “चाय…अनु चाय!”

जब कोई जवाब नहीं आया तो जनाब ने आंखे खोली तो देखा मैं बगल में लेटी कमर में सिकाई कर रही थी।

“अनु…क्या हुआ?”

“मुझे आज फिर स्लिप डिस्क का दर्द उठा है।…कमर में बहुत दर्द है और बाएं पैर में भी।” मैने बहुत बेचारगी की एक्टिंग करते हुए बोला जैसे मैं बहुत दर्द में हुं और उनको मेरी एक्टिंग पर विश्वास आ गया।

“आज आप मैनेज कर लीजिए।  आज का दिन आराम करूंगी तो ठीक हो जाऊंगी।” मैने धीमें से दर्द भरी आवाज में कहा।

“ठीक है! तुम आराम करो।  मैं चाय नाश्ता बना लेता हुं।   आज तुम पूरा आराम करो।  लंच और डिनर भी मैं बना लुंगा।  तुम आज बिल्कुल किचन में नहीं आओगी।”

उनका इतना प्यार और परवाह देख कर मेरा दिल उनकी बलैया लेने का करने लगा। ..लेकिन नहीं..मुझे इमोशनल नहीं होना है। मुझे तो आज छुट्टी चाहिए। अपने मिशन को नहीं भूलना है।  मुझे भावनाओं में बह कर कमज़ोर नहीं पड़ना है!!

पतिदेव ने दोनो बच्चो को उठाया। उन्हे मंजन कराया। दोनो को दूध गरम करके दिया और हम दोनो के लिए चाय बनाई।

यहां तक तो मिशन सफल रहा।

अब आई नाश्ते की बारी..।  तीनों ने मिल कर पोहा बनाने का फैसला लिया।

पोहा पानी में गलाया।  और जब तैयार हो कर आया तो मुझे पता ही नहीं चला कि ये पोहा है या खिचड़ी 😐

पोहा स्वयं भी अपने अस्तित्व पर कन्फ्यूज हो गया होगा कि वो है क्या???🤔🤔

“सॉरी अनु!  वो पोहा ज्यादा देर तक पानी में रह गया।” पतिदेव बेचारगी से बोले।

जैसे तैसे वो गले से उतारा।  बच्चो ने तो बाहर से समोसे मंगा लिए। स्विगी और जोमैटो है ना।

लंच में मेरी सेना ने भिंडी, बूंदी रायता, और रोटी बनाने का फैसला लिया।

भिंडी तो कट गई,  you tube की दया से फ्राई भी कर ली।  लेकिन पति महाशय के दोस्त का फोन बीच में आ गया और वो लगे गप्पे मारने।

इस बीच भिंडिया तो आत्मदाह पर उतर गई।  जब जलने की बू आई तो बेटी ने पापा को बताया कुछ जल रहा है। तब उसके पापा को याद आया कि गैस पर भिन्डी रखी है।

जब तक वो देखते ,,सब भिंडियां आत्मदाह कर चुकी थी।  वो जली भिंडी सहित कड़ाई ले कर मेरे पास आए। 

“हाय मेरी 80 रुपए की भिंडिया!” मेरा दिल चीत्कार कर उठा।  लेकिन मुझे तो आराम करना है…मैं तो बीमार हुं!!..इसलिए चुप रही और कहा, “कोई बात नहीं सब्जी,, बाजार से मंगा लीजिए और रायता घर पर बना लीजिए।

“और रोटी!”  बेटी आंखे नचा कर एकदम से बोली।

“आटा तो गूंथा है ना पापा ने तो कैसे भी शेप की रोटी चलेगी।” मैने उसके गालों पर हाथ घुमा कर कहा।

तब तक बेटा आटे की परात उठा लाया। 

मुझे समझ नहीं आया कि आटे में पानी मिलाया है या पानी में आटा 🥴🥴।

“चलो ठीक है!!  बाहर से कुलचे मंगा लेते है।

अंततः लंच लगाया गया।  उसमें रायता घर पर बनाया था…बूंदी रायता।  जैसे कश्मीरी पुलाव में कश्मीर नहीं होता वैसे ही इस बूंदी रायता में ढूंढने पर 2 – 4 बुंदिया ही मिली।      दही के टुकड़े ऐसे पड़े थे जैसे समुद्र में हिमखंड।

बेटी बोली, “पापा!! ये रायता कुछ जमा नहीं!”

ये वाक्य सुन कर मेरे दिल की गहराइयों तक ठंडक उतर गई।  मैने चोर नजरों से पतिदेव को देखा,,,,उनका चेहरा उदास हो कर दाढ़ी तक लटक गया था।

“अच्छा तो है!! जो मिल रहा है खा लो।” मैने पतिदेव की हालत देख कर बेटी को चुप कर दिया।

पतिदेव ने धन्यवाद भरी नजरों से मुझे देखा।

शाम को मेरे दोनों टॉम एंड जेरी मेरे अगल बगल में लेट कर मेरे गले में अपनी बांहे डाल कर बोले,

“मम्मा शाम को आप ही डिनर बना दो ना।   कुछ स्पेशल मत बनाइए,,सिर्फ खिचड़ी भी चलेगी।”

आराम और छुट्टी पर ममता हावी हो गई।  मैं डिनर बनाने के लिए खड़ी हो गई।

“किचन कुछ गंदा हो गया है।  थोड़ा साफ करना पड़ेगा!” पीछे से पतिदेव ने फरमाया।

किचन में गई तो मुझे गश आ गया।  फर्श पर पैर रखने की जगह नहीं थी।  पूरे फर्श पर आटा और पानी बिखरा हुआ था।  भिंडी के टुकड़े सब जगह जगह पर पड़े हुए थे क्योंकि मेरी सेना ने फर्श पर बैठ कर भिंडी काटी थी।

स्लैब पर हाथ रखने की जगह नहीं थी।   गंदे बर्तन, मसाले, जली हुई भिंडी के अवशेष पूरे स्लैब पर शोभायमान थे।

मैने कमर कस कर पहले किचेन की सफाई की। मेरी तिकड़ी भी मदद को आई लेकिन मैने वापस भेज दिया क्योंकि मुझे मालूम था वो सफाई के बजाय गंदगी ही ज्यादा करेगी।  इस पूरे समय वो तिकड़ी टीवी पर मैच देखती रही।  

मैने डिनर में पुलाव और रायता बनाया। 

इस पूरे हादसे में मेरी बर्तन वाली बाई वफादार रही।  उसने छुट्टी नहीं करी वरना सचमुच मुझे स्लिप डिस्क का दर्द हो जाता।

😀😀

मेरा दिल रो उठा, “हाय!! ये रविवार की छुट्टी!!”

रेखा जैन

अहमदाबाद, गुजरात

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