“मास्टर जी.. मास्टर जी…!!,”
“क्या है पंडित जी…?,मास्टर दीनानाथ जीअपने हाथों में लालटेन लेकर दरवाजा खोलते हुए बड़े आश्चर्य से पंडित जी से पूछा।
रामनगर के पुजारी पंडित भोला राम देर रात अपने निवास स्थान से निकल कर मास्टर दीनानाथ के घर चुपचाप आ पहुंचे थे।
मास्टर दीनानाथ रामनगर के एक स्कूल शिक्षक थे।
रामनगर में उनकी बहुत ही ज्यादा इज्ज़त थी।
पंडित जी अपने हाथों में कुछ पोटली नुमा कुछ पकड़े हुए थे।अंधेरे में स्पष्ट नहीं दिख रहा था।
” अरे यह क्या है पंडित जी?”सवालिया निगाहों से पंडित जी को देखते हुए मास्टर जी ने पूछा।
“आपसे कुछ खास बातें करनी थी.. पंडित जी ने लगभग फुसफुसाते हुए कहा।
“हां हां बोलिए,आइए भीतर आइए… पंडित जी!”
” मास्टर साहब यह एक दुखियारी की अमानत है। …आधी रात को मुझे सौंपकर यहां से चली गई।
पाप करता तो मर्द है लेकिन भुगतती बेचारी स्त्रियां हैं,अब क्या बताएं…यदि हम इसे अपने मंदिर में शरण देते हैं तो लोगबाग दस बात करेंगे… !लड़की की जात है…आप इसे संभाल सकते हैं मास्टर जी….!
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आपकी लोग इज्जत करते हैं और घर की इज्जत घर में रह जाएगी। आपकी बेटी को भी जकची होने वाला है।आप कह दीजिएगा कि यह भी आपकी ही बिटिया है।”
“लाइए दीजिए.. मास्टर साहब ने पंडित जी सेउनके हाथों की पोटली अपने हाथों में ले लिया।
रुई के फाहे की तरह नवजात बच्ची सफेद चादर में लिपटी सो रही थी।
“बला की खूबसरत है..! ईश्वर भी न..कितना क्रूर है..!”मास्टर जी की आँखें भर आईं।
“हम विदा लेते हैं कहीं दुनिया में हल्ला ना हो जाए!”
पंडित जी ने कहा।
“ठीक है!, पंडित जी चले गए।
“भाग्यवान देखो…भगवती ने हमें क्या दिया? बेटी को जकची से पहले देवी ने हमें लक्ष्मी दे दिया। मास्टर जी ने हंसते हुए अपनी पत्नी से कहा।
मास्टर जी की पत्नी जल्दी से रसोई का काम छोड़कर वहां आई और बोली
“यह क्या है जी? इसे कहां से ले आए!”
“कहीं से भी लाया है तो मेरी बिटिया…!”
“अभी तो आप घर में थे फिर यह कहां से आई?”
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“हाँ, भाग्यवान,!प्रसाद क्या घर बैठे नहीं मिलता?” दीनानाथ जीने अपनी पत्नी से भी अपनी असलियत छुपा दिया।
उसी रात को मास्टर जी की बेटी के पेट में प्रसव का दर्द उठा।
प्रसव पीड़ा से कराहने के लगभग 7 घंटे बाद उसने एक बच्चे को जन्म दिया।
मास्टर जी ने रामनगर में यह कहकर मिठाई बंटवाया कि उनकी बेटी को जुड़वा बच्चे हुए हैं।
दो-तीन महीने के बाद मास्टर जी की बेटी अपने बेटे को लेकर अपने ससुराल लौट गई लेकिन मास्टर जी ने अनाथ बच्ची को अपना नाम देकर रख लिया।
“मेरा अपनी बिटिया के साथ डील हुआ था,वह अपनी बेटी मुझे देकर जाएगी।अब यह बिटिया किसी को नहीं देने वाला यह मेरे साथ रहेगी!
मैंने अपनी बिटिया से कह दिया है कि वह इस पर अपना अधिकार नहीं जताएगी। इसको पढ़ाना लिखाना और इसकी शादी ब्याह सबकी जिम्मेदारी मेरी।”
मास्टर साहब ने उस बच्ची का नाम नारायणी रखा था।
उसे अपने गोदी में खिलाते , लोरियां सुनाते, उसके साथ उसकी हर खुशी बांटा करते थे।
मास्टर साहब जब सुबह नहाकर राम कथा का पाठ करते तो वह भी पास बैठी सुनती रहती। धीरे-धीरे चौपाई छंदों को सीखती गई।
नारायणी धीरे-धीरे बड़ी होती चली गई।
एक बार राज्य स्तर की काव्य पाठ की प्रतियोगिता आयोजित की गई थी।
नारायणी ने रामकथा का पाठ इतने मुग्ध कंठ और तन्मयता से किया था कि सब लोग वाह-वाह कर उठे।
उसे राज्य स्तर में प्रथम स्थान से सम्मानित किया गया।
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मास्टर जी इस बात से बहुत ही ज्यादा खुश थे।
” नाना जी प्रणाम!, नारायणी ने उनके पैरों को छूते हुए कहा, नानाजी आप के कारण ही आज मुझे इतना बड़ा सम्मान मिला है।
इसके असली हकदार सिर्फ आप हैं। नाना जी आप कुछ कहिए।”
यह कह कर नारायणी ने अपने गले से माला उतार कर दीनानाथ जी के गले में डाल दिया और माइक उनकी ओर मोड़ दिया।
मास्टरजी की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने बड़ी कातर दृष्टि से पंडित भोलाराम की तरफ देखा।
पंडित जी ने उन्हें इशारे से चुप रहने के लिए कहा।
दीनानाथ जी ने भरे हुए गले से कहा
“वह मूर्ख होता है जो स्त्रियों का सम्मान नहीं करता
स्त्रियां सिर्फ सम्मान की हकदार होतीं हैं।”
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प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
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