परायी नार –अरुण कुमार अविनाश

पार्टी में पति नयी नवेली परियों को ताड़ रहा था – पत्नी की नजरें पति की नजरों का पीछा कर रहीं थी –  पत्नी ने कई बार इशारा किया – पर, नव-नूतन चेहरें का आकर्षण – पति की बे-लगाम ख्वाहिशों पर – नियंत्रण नहीं कर पा रहें थे – पति दो पल के लिये सावधान होता था फिर कनखियों से हुश्न का पीछा करता था।

पत्नी की इच्छा हुई कि प्रतिशोध स्वरूप वह भी कुछ स्मार्ट लड़कों की ओर विधुत प्रवाह छोड़ें – पर उसकी हिम्मत न हुई – पिछली बार, एक पार्टी में एक लड़के से ज़रा-सी बातचीत क्या कर ली थी कि लड़का उसी समय पूछ लिया था – ” आप घर में अकेली कब रहती हो ?”

” क्यों !”

” मैं आऊँगा न , मिलने – यहाँ भीड़ ,  म्यूजिक शोर-शराबे में ठीक से बातचीत नहीं हो पा रही है – वहाँ तन्हाई में शांति के साथ – इत्मीनान से बातचीत करेंगें।”

बिजली से भी तेज – सुपरफास्ट सेवा प्रदाता था वह – अभी नजर से नज़र ही मिली थी कि वह पलँग के फेरे लेने के सपने देखने लगा था – अभी ट्रांसफर्मर लगने का टेंडर भी न निकला था कि पूरा पावर हाउस फूँकना पड़ गया।

उस शोहदे से मुश्किल से पीछा छुड़ा पायी थी वह।

नहीं जानती थी कि कुछ लोग समय की बिल्कुल बर्बादी नहीं करतें – पहली बार में ही लक्ष्य भेद देना चाहतें है – नाकामयाबी की जरा सी भी गुंजाइश हो तो तुरन्त लक्ष्य बदल लेते है – किसी और को टारगेट कर लेते है।


उस शोहदे ने भी वही किया – किसी और की फिराक में नजरें इधर-उधर फेरने लगा।

घर पहुँचने पर पत्नी का मन खिन्न था – वहीं पति का मन प्रफुल्लित था – पार्टी में आँखें सेक ली थी – दो-चार घूंट भर लिये थे – यारों-दोस्तों में थोड़ी बहुत स्मार्ट टॉकिंग कर ली थी – पार्टी की परियों का तसब्बुर अब भी जेहन में था।

चेंज कर जब पति-पत्नी बिस्तर पर पहुँचे तो पति ने पत्नी को बाहों में भरना चाहा।

पत्नी मचल कर उसकी बाहों से निकल गयी।

” क्या हो गया ! ” – पति का हैरान स्वर।

” कौन-कौन थी वहाँ – रीता सीता नमिता पपीता फजीता – जिसे घूर-घूर कर ताक रहें थे – तुम्हारा बस चलता तो ड्रोन कैमरे की तरह अपनी आँखें उनकी गिरेबान में ठूँस देते।”

“अरे भाई निग़ाहों में – ख्यालों में – भले ही कोई भी क्यों न हो – बाहों में तो तुम्हीं रहती हो।” – पति पुनः बाहों में समेटने की कोशिश किया।

” बाहों में रीना – ख्यालों में करीना – नहीं चलेगा ।” वह फिर मचली।

” तो क्या चलेगा ?”

” हर जगह सिर्फ – पत्नी – पत्नी – पत्नी – पत्नी – पत्नी ——।”

पति करवट बदल कर सो गया।

अगले दिन जब पति की दफ्तर से छुट्टी हुई तो पत्नी ने सूचना दी कि घर आते समय सब्ज़ी खरीद लाना।

पति मंडी से एक कट्टा ( चालीस किलो ) आलू खरीद लाया।

” क्या है ये ! और सब्जी कहाँ है ? “– पत्नी हड़बड़ाई ।

” पत्नी – पत्नी – पत्नी – पत्नी – का जबाब है – आलू – आलू – आलू – आलू।”

पत्नी थोड़ी देर तक अवाक सी खड़ी रही फिर कमर में पल्लू खोंस कर बोली – ” ठीक है फिर – आलू – आलू – आलू – आलू।


सात दिन बीत गये – सुबह आलू – दोपहर आलू – शाम आलू – रात आलू।

रोज, आलू के नये -नये व्यंजन – कभी आलू के पराठे – कभी आलू पूरी – कभी आलू-छोले –कभी आलू के भजिये – कभी आलू भुर्ता – कभी आलू के गुलाब-जामुन।

सातवें दिन पति से रहा न गया –” ये रोज़–रोज़ आलू से जी नहीं भरा तुम्हारा ?”– कह पड़ा।

” मेरा तो नहीं भरा – मैंने तो और भी आलू के डिश सोच रखें है – जब तक तुम्हारें आलू खत्म नहीं हो जातें – रोज़ आलू ही आलू बनेगा– नये नये फ्लेवर में – नयी-नयी रेसिपी में।”

“अरे हेल्थ का भी तो ख्याल करों ।”

” जिन्हें हेल्थ और वेल्थ की फिक्र होती है – वे परायी नार से नैन मटक्का नहीं करते –  उसका पति अदरक की तरह कूट सकता है और वो खुद भयंकर खर्चा करवा सकती है।”

“अरे – मगर – फिर भी ।”– पति बौखलाया।

” अच्छा एक बात बताओ – हेल्थ वाली बात भुला दो तो – वही आलू रोज़-रोज़ खा कर भी बोर तो नहीं हुए – या हुए ?”

” नहीं बोर तो नहीं हुआ था।”

” वैसे ही पत्नी को मेंटेन करो – रोज नये स्टाइल में – नये फैशन में – नये तौर-तरीकों के साथ – नये-नये परिवेश में रखों – फिर देखना !”

” क्या मतलब?”

” पचास हज़ार रुपया दो – ढेरों नये ड्रेस लाऊँगी जैसेकि – जीन्स टॉप – स्कर्ट ब्लाउज़ – स्किवी – मिडी – शॉर्ट्स – रोज़ाना जिम जाऊँगी – हेयरस्टाइल चेज़ करूँगी – हेयर डाई करूँगी – नये कॉस्मेटिक्स खरीदूंगी – नये फुटवेअर लूँगी – ब्यूटी पार्लर जाऊँगी – पूरी बॉडी वैक्स करवाउंगी –——–।”

” बस करो यार।” –पति उकता कर बोला।

” बस ! इतने पर ही बस ! तुम मर्द , गैर औरतों को दो हज़ार रुपये का पिज़्ज़ा बर्गर खिला दोगे – खुद की पत्नी दो सौ रुपये भी मांगें तो —–।”

” मैं जाता हूँ – कोई हरी सब्ज़ी ले कर आता हूँ। –पति ने कहा और घर से बाहर निकल गया।

पत्नी के चेहरे पर विजेता के भाव थे।

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