जानकी देवी अपने घर के बाहर सड़क की तरफ देखते हुए जोर-जोर से चीख रही थी। उसके बाल उलझे हुए थे.. उसके कपड़े अस्त व्यस्त थे..वह चीखते हुए अपने बेटे श्याम को बुलाया करती..कुछ देर तक वह हर आने जाने वाले को घूरकर देखती रहती..उसके बाद गुमसुम होकर चुपचाप बैठ जाती थी..वह किसी से कोई बात नहीं करती थी..वह केवल अपने बेटे श्याम के आने की राह तकती रहती थी।
जानकी देवी कस्बे के किसान रामप्रसाद की पत्नी थी..उसके दो बच्चे बड़ी बेटी छाया 18, वर्ष व छोटा बेटा श्याम 15, वर्ष का था..जो घर के बाहर सड़क पर अपनी साइकिल से अपने घर आ रहा था..उसी समय कस्बे का चेयरमैन सूरजपाल जो कस्बे का एक दबंग बाहुबली नेता था.. उसने नशे में धुत्त होकर अपनी गाड़ी से श्याम को साइकिल समेत अपनी गाड़ी से रौंद दिया था..श्याम की दर्दनाक मौत हो गई..अपने कलेजे के टुकड़े की दर्दनाक मृत्यु जानकी देवी बर्दाश्त नहीं कर सकी उसके आक्रोश की ज्वाला से उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया वह हमेशा क्रोध की अग्नि में जलकर चीखती चिल्लाती रहती थी..कुछ दिन बाद सूरजपाल ने पैसे के दम पर ग़लत बयान करवाकर खुद को निर्दोष साबित कर दिया और बाईज्जत बरी हो गया।
कस्बे में जानकी देवी को लोग पगली कहकर बुलाने लगे थे, लोग उसका मज़ाक उड़ाते थे..वह क्रोधित होकर लोगों को मारने के लिए दौड़ती थी। किसान रामप्रसाद अपने इकलौते बेटे को खोकर और पत्नी के मानसिक संतुलन को लेकर हरदम परेशान रहते थे,काफी इलाज कराने पर भी जानकी देवी की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ वह बेटे के गम में सब कुछ भूल चुकी थी। कस्बे में चुनाव की हलचल तेज हो चुकी थी..सूरजपाल अपने साथियों के साथ चुनाव प्रचार कर रहा था.. जानकी देवी खिड़की के पास बैठी सड़क की ओर देख रही थी, सामने सूरजपाल को खड़ा देखकर वह क्रोधित होकर पत्थर उठाकर सूरजपाल को मारने के लिए सड़क की ओर दौड़ने लगी.. सामने जानकी देवी को पत्थर लेकर आते हुए देखकर सूरजपाल घबराकर बोला”अरे कोई रोको इस पगली को”कोई कुछ समझता उससे पहले जानकी देवी ने पत्थर का प्रहार सूरजपाल के ऊपर कर दिया। पत्थर सीधा सूरजपाल के माथे पर लगा..जिससे खून टपकने लगा।”रूक जाओ जानकी”रामप्रसाद जानकी को पकड़ते हुए बोले।”चलों अम्मा!घर चलों”छाया जानकी देवी को घर की ओर खींचकर ले जाते हुए बोली।”रामप्रसाद! बांध कर रखो इस पगली को,वरना ठीक नहीं होगा” सूरजपाल अपने माथे को रूमाल से दबाते हुए बोला।”रामप्रसाद!अगर दुबारा इस पगली ने किसी को कोई नुकसान पहुंचाया तो हम तुम्हें कस्बे में रहने नहीं देंगे”सूरजपाल का आदमी रामप्रसाद को धमकाते हुए बोला। रामप्रसाद बिना कुछ बोले चुपचाप अपने घर के अंदर चला गया,छाया ने जानकी देवी को कमरे में बंद कर दिया..जानकी देवी कमरे के अंदर से सूरजपाल को कोसते हुए जोर-जोर से चीखकर चिल्ला रही थी।
छाया अपनी मां का आक्रोश देखकर भयभीत हो रही थी,वह यह सोच कर परेशान थी कि कही उसके भाई की तरह सूरजपाल उसकी मां और पिता को भी उसके भाई की तरह उससे छीन न ले, आखिर वह कस्बे का दबंग नेता जो था, उसके कस्बे का हर आदमी भय खाता था.. छाया बेटी!तुम अपनी अम्मा को अकेले मत छोड़ना,कही कुछ अनहोनी न हो जाए”रामप्रसाद चिन्तित होते हुए छाया से बोले।”बाबू!इसी राक्षस सूरजपाल की वजह से मेरा भाई चला गया,और अम्मा की यह हालत हो गई है” कहकर छाया फूट-फूट कर रोने लगी।”चुप हो जा बेटी! आखिर हम गरीब लोग उसका कर भी क्या सकते हैं, हमारे जीवन का सुख चैन सब श्याम के साथ ही चला गया है” कहकर रामप्रसाद खामोश हो गये।”तुम चिंता मत करों बाबू! मैं हमेशा अम्मा के साथ रहूंगी,वह सूरजपाल को देखकर अपने आपे में नहीं रहती, इसमें उसका कोई दोष नहीं है”कहते हुए छाया भावुक होकर रामप्रसाद से लिपट गई।
सूरजपाल दुबारा चेयरमैन बनने में कामयाब हो गया था..उसका सिक्का पूरी तरह कस्बे में स्थापित हो चुका था। जानकी देवी के साथ छाया दिन रात उसका साया बनकर चलती थी.. धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था.. सुबह शाम छाया जानकी देवी को लेकर बाहर जाती थी.. जानकी देवी की हालत पहले से थोड़ी बेहतर होने लगी थी..वह छाया की बात समझने लगी थी.. सूरजपाल के ऊपर पत्थर फेंकने वाली घटना के बाद सूरजपाल किसी न किसी बहाने से रामप्रसाद के परिवार को धमकाता रहता था..शाम का वक्त था.. अंधेरा होने लगा था.. छाया जानकी देवी को बाहर घुमाकर उसके साथ घर वापस आ रही थी.. सूरजपाल नशे में धुत्त होकर अपने एक साथी के साथ तेज़ रफ़्तार से गाड़ी चलाकर आ रहा था.. सामने सड़क पर जानकी देवी को देखकर उसके मन का शैतान जाग उठा वह उसने जानबूझकर जानकी देवी और छाया को टक्कर मारने के इरादे से गाड़ी की रफ्तार और बढ़ा दी, गाड़ी तेज़ रफ़्तार से उनकी ओर बढ़ने लगी इससे पहले कि उन्हें ठोकर लगती छाया सूरजपाल की गाड़ी को तेज़ रफ़्तार से अपनी ओर बढ़ता देखकर जानकी देवी का हाथ तेज़ी से खींचकर जानकी देवी के साथ सड़क के किनारे की ओर गिर पड़ी। सूरजपाल नशे में होने के कारण गाड़ी सम्भाल नहीं सका और संतुलन खोकर सामने पुल पर बनी पुलिया की रेलिंग को तोड़ते हुए गाड़ी समेत बीस फुट नीचे नहर पर गिर गया।
सूरजपाल को गाड़ी समेत नहर में गिरता देखकर छाया खुशी से झूम उठी सूरजपाल के प्रति आक्रोश ने उसके चेहरे पर मुस्कान बिखेर दिया, कुछ ही देर में वहां कस्बे के लोग इकट्ठा होने लगें.. सूरजपाल और उसके साथी के प्राण पखेरू उड़ चुके थे..वे दोनों नहर में गाड़ी के साथ औंधे मुंह पड़े हुए थे.. छाया जानकी देवी का हाथ पकड़कर तेजी से नहर की ओर चलने लगी वह अपनी अम्मा को अपने परिवार के सबसे बड़े दुश्मन का अंत दिखाना चाहती थी।
घटना स्थल पर काफी भीड़ जुट चुकी थी..कुछ लोग सूरजपाल की मौत पर मन ही मन खुश हो रहें थे..कुछ लोग इधर-उधर की बातें कर रहे थे.. सामने सूरजपाल को मृत देखकर जानकी देवी जोर-जोर से हंसने लगी..उसके मन का आक्रोश सूरजपाल का अंत देखकर शांत होने लगा..वह काफी देर तक सूरजपाल के मृत शरीर को देखती रही और फूट-फूट कर रोने लगी।”चुप हो जाओ अम्मा!आज तुम्हारी ममता का गला घोंटने वाले राक्षस का अंत हो गया है”छाया जानकी देवी से लिपटकर खुश होते हुए बोली।”हां बेटी!आज मेरे श्याम को निर्दयता से मारने वाले शैतान को सजा देकर ईश्वर ने एक मां की पुकार सुन ली है”जानकी देवी हाथ जोड़कर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए बोली।”छाया एकटक अपनी अम्मा की ओर देख रही थी..वह पूरी तरह सामान्य हो चुकी थी.. उसके आक्रोश जिसने उसे पगली बना दिया था..वह समाप्त हो चुका था.. चलों छाया बेटी! जल्दी घर चलों तुम्हारे बाबू हमारी राह देख रहे होंगे..उन्हें भी इस खुशखबरी का बेसब्री से इंतजार होगा”कहते हुए जानकी देवी और छाया खुशी से झूमते हुए अपने घर की ओर बढ़ने लगी।
#आक्रोश
माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ