जानकी जीवनधारा – मनीषा देबनाथ

“बेटा कौन हो तुम? कहा से आई हो? तुम्हारा नाम? कोई अता पता? जो भी तुम्हें याद है हमे बेझिझक बताओ!! डरो नही, हम सब तुम्हारे साथ है।” प्रेरणा जी बोली।

“नही, मुझे कुछ भी याद नहीं, मैं कहा से आई हूं, मेरा नाम मुझे कुछ याद नहीं, बस यही पता है की मैं एक स्टेशन पर रुकी थी, मेरी ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी थी, और मेरी ट्रेन छूट गई। उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है की क्या हुआ, कैसे हुआ!!” मुझे अपने घर जाना है, मुझे अपने घर पहुंचा दो, मैं मरना नहीं चाहती, मुझे अपने घर जाना है!!” लड़की बोली।

“ठीक है बेटा, हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा देंगे, पर कुछ याद करने की कोशिश तो करो, तभी तो हम तुम्हें घर भेज सकते है, और देखो यह तुम्हारी बच्ची है!! क्या तुम बता सकती हो की इसका पिता कौन है?” प्रेरणा जी की साथी बोली।

“नही… नही, नही मैं कुछ भी नही जानती!! और ये बेटी मेरी नही हो सकती, मैं तो मेरी तो शादी हुए अभी २ महीने ही हुए है, यह मेरी बेटी नही हो सकती!!” लड़की बोली।

“क्या शादी हुई है तुम्हारी? ठीक से याद करो, कब हुई किस से हुई तुम्हारी शादी? और पति कौन है तुम्हारा? ससुराल वालो का नाम? शहर कुछ भी याद है?” प्रेरणा जी ने इस लड़की को अपनी पिछली जिंदगी याद दिलाने की कोशिश करते है।

इतने सवाल लड़की संभाल नहीं पाती और अचानक बिहोंस हो जाती है…

“अभी उसकी हालत ठीक नहीं है, आप दोबारा जब होंश में आए तब उसे बात करिएगा!!” डॉक्टर साहब बोले।

“पर डॉक्टर साहब इसको बस अपनी शादी ही याद है!! बाकी सब हम इसे याद कैसे दिला पाएंगे? क्या इसका कोई और रास्ता है?” प्रेरणा जी ने पूछा।

“जी हां हमे इसको शॉक थेरेपी देनी होगी। तभी शायद कुछ इन्हे याद आए लेकिन हम इसकी गारंटी नहीं दे सकते।” डॉक्टर साहब बोले।

“डॉक्टर साहब जो बन पड़ता है वो कीजिए, इसके इलाज का सारा खर्चा हम महिलाएं ही उठाएंगी!! और तब तक इसकी नवजात बच्ची हम हमारे पास ले चलते है… बेचारी पता नही इसकी हालत ऐसी कैसे हो गई, अब तो वो कुछ याद कर के बताए तभी कुछ कर पाएंगे।” प्रेरणा जी और उसकी साथी समाज सेविका बोली।




दरअसल जो लड़की का अस्पताल में इलाज चलता है, वो सुहानी है… कुछ दिन पहले वो बहुत ही बुरी हालत में, प्रेरणा जी को स्टेशन के बाहर मिलती है। सुहानी अपना नाम पता घर सब कुछ भूल चुकी थी, ऊपर से दिमागी हालत भी ठीक नहीं थी, और ९ महीने के पेट से भी थी, जिस वजह से वो सड़क किनारे चीखती चिल्लाती हुई दर्द से खून से लटपट तड़प रही थी। किसीने प्रेरणा जी और उनकी संस्था को खबर दी और वह तुरंत वहा पहुंच गए। उसकी हालत देख प्रेरणा जी और उनके साथी समाज सेविका उसे अस्पताल ले आए। और फिर सुहानी ने सुंदर सी एक बेटी को जन्म दिया। लेकिन दुर्भगाय की बात यह थी की सुहानी अपना नाम पता सब भूल चुकी थी। उसको बस अपनी दो महीने पहले की शादी ही याद रही। ना पति का नाम याद था, ना उसका ससुराल का कोई पता था ना मायके का।

कुछ महीनों के इलाज के बाद जब सुहानी ठीक हुई, तो उसने अपनी दर्द भरी कहानी सुनाई। सुहानी की उमर महज़ १९ साल थी। उसने कॉलेज के दौरान ही फेसबुक से एक लड़के से प्यार किया। उसके साथ शादी की, और फिर उसके लिए अपना घर परिवार छोड़ भाग आई। और उस लड़के से शादी कर ली। लेकिन जब दो महीने बाद वो मां बन ने वाली थी, तो उसके पति ने उसे कहा,

“सुहानी में बहुत खुशनसीब हूं की मुझे तुम मिली। और अब तो मैं पिता भी बन ने वाला हु। इसी खुशी में हम हमारे कुलदेवी के मंदिर दर्शन के लिए चलते है। अगर हम अभी ट्रेन में निकलते है तो बस यही कुछ ४ घंटे का समय लगेगा।”

यह बोल सुहानी को इसके पति ने ट्रेन में बिठा कर मंदिर ले जाने का वादा कर जब ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी, सुहानी का पति सुहानी को बताए बिना ही ट्रेन से उतर गया। उसके बाद सुहानी पूरे ट्रेन में अपने पति को ढूंढती रही। वो नही मिला, और अंत में ट्रेन जब आखरी स्टेशन पर रुकी, तो सुहानी के पास न पैसे थे, ना उसके कपड़े ना अनजान शहर में कोई उसका अपना था। जिसके सदमे से सुहानी ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया था। जिसके बाद वो प्रेरणा जी को मिली।




उसकी दर्दनाक कहानी सुन, प्रेरणा जी और साथी भावुक हो उठे। और उसे कहा की अगर वो अपने पति के घर जाना चाहती है तो वो उसे पहुंचा सकते है, और अगर वो अपने मां बाप के घर जाना चाहती है तो भी ठीक है। लेकिन सुहानी ने मना करते हुए कहा की, अब सुहानी वहा नही जाना चाहती, बस यही रहना चाहती है। तो प्रेरणा जी उसे अपनी संस्था में लेकर जाती है। 

संस्था में उसके जैसी और भी कई औरते थी। पर वहां भी सुहानी चुप चुप सी रहने लगी, ना उसे अपनी बेटी का खयाल रहता ना खुद का! बस एक जगह पूरे पूरे दिन बैठी रहती।

सुहानी की यह हालत देख प्रेरणा जी का मन आहत हो उठा और फिर प्रेरणा जी ने उसके पास जा कर उसका हाथ अपने हाथों में लेकर उसको अपनी कहानी  सुनाई, की शादी के  बाद उनको भी उनके ससुराल वालों ने दहेज के लिए जिंदा जलाने की कोशिश की, लेकिन फिर इस संस्थान की मालकिन जानकी जी, जिनके नाम से यह संस्था चल रही थी, “जानकी जीवनधारा” उन्होंने ही प्रेरणा जी की जान बचाई। लेकिन उनका आधा अंग जला चुका था। लेकिन वो आग उनके सपनों को और उनके दृढ़ता को नहीं जला पाया। और तब जानकी जी एकमात्र थी जिन्होंने प्रेरणा जी को नया जीवन दान दिया। 

जानकी जी तो अब इस दुनिया में नही रही थी। उसके बाद प्रेरणा जी ने ही इस संस्थान को चलाने की जिम्मेदारी पूरी आपने ऊपर ले ली, जहां उनके जैसी ही यह कई पीड़ित औरतें अपना आशियाना बनाए हुई थी। जो वहां रह कर वे तरह तरह के छोटे मोटे काम कर अपना जीवन गुजार रही थी।  

प्रेरणा जी की कहानी सुन सुहानी को एक नई हिम्मत  मिली, उनकी व्यथा उसे उसकी व्यथा से बहुत छोटी दिखी… वह तभी वहां से उठ खड़ी हुई और अपनी बच्ची को अपने गोद में उठा वह प्रेरणा जी के सामने देख मुस्कुराई! 

प्रेरणा जी की यह बात सुन सुहानी को हिम्मत मिलती है, और वह पुरानी बाते भूल जाती है, अपने मन को मना लेती है।

जिस तरह उसने एक प्यार के लिए अपने मां बाप का घर छोड़ा ऐसे ही शायद यह उसकी वही गलती की सजा होगी, लेकिन अब उसे अपनी बेटी के लिए जीना था और वो जी रही थी। 

(यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित हैं। लेकिन कहानी में दर्शाए गए पात्र और उनके नाम काल्पनिक है।)

धन्यवाद,

(स्वरचित)

मनीषा देबनाथ

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