अभी दो ही दिन पहले माधुरी को उसके बेटे बहू इस सारी सुख सुविधायों से लैश सीनियर सिटीजन वृद्धाश्रम में छोड़ गए थे। बेटा आकाश ने पहले से नही बताया, कार से रास्ता दो घंटे की दूरी पर था, उसी बीच धीरे धीरे सब समझाता रहा। समान डिक्की में रखते हुए देखकर, माधुरी सोच रही थी, कहीं घूमने जाना है।
आज मदर्स डे है, और सब बुजुर्ग माताओं के बच्चे उनसे मिलने आ रहे, कोई केक, कोई फूल कोई गिफ्ट लेकर आकर रहे थे। सबसे ज्यादा परिचय भी नही हुआ था।
फिर मन इंतेज़ार करने लगा, शायद मेरे बेटा आकाश भी छोटे से चंदन को लेकर आ जाये।
पर नही कोई न आया, अंदाज़ गलत ही निकला। उदास मन से वो सो गई। अचानक उसे महसूस हुआ, बारह वर्ष के आकाश को जबरदस्ती वो स्कूल के होस्टल में छोड़ रही है, वो गले लग के रो रहा, उसका हाथ छुड़ाना मुश्किल हो रहा, स्वाभाविक है, आंसू तो उसके भी निकल रहे, पर उसके पति भी आंखे दिखा रहे, बाहर निकलो। और किसी तरह से अटेंडेंट के भरोसे छोड़कर बाहर आ गयी। माधुरी और उनके अफसर पति का ही निर्णय था, बेटे को होस्टल में ही पढ़ाना है, तभी जीवन मे कुछ बड़ा कर पायेगा, हमारे पास पैसे की कमी तो है नही। पहले साल आकाश जब छुट्टी में घर आता, बहुत रोता और बोलता, “मम्मा, मुझे घर पर रहना है, मैं खूब पढूंगा।”
और हमलोग नही माने, उसे स्कूल फिर कॉलेज बाहर ही बाहर रहना पड़ा। फिर वो हमसे सिर्फ काम की बाते ही करता।
सरकारी इंजीनियरिंग सर्विसेज में अफसर चुन लिया गया, शादी भी हो गयी। अचानक रिटायरमेंट के बाद आकाश के पिता को कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी ने घेरा, सारे पैसे इलाज में लग गए, आकाश विदेश भी ले गया, पर सब व्यर्थ गया।
अचानक घड़ी ने अलार्म बजाया, सुबह के पांच बजे थे, नींद खुली तो ध्यान आया, अरे, ये तो सपना था। और मेरी छठी इन्द्रिय ने मुझे सचेत किया, सपने का अर्थ जानो। जो बोओगे वो पाओगे….
अब उठना जरूरी था, यहां के कुछ नियम थे, सुबह योगा क्लासेज होती थी और माधुरी चल पड़ी।