मुझे माफ कर देना – पूनम अरोड़ा

गाँव  के मंदिर  के पास वाले बरगद के पेड़ के नीचे आकर एक भगवावस्त्र धारी बाबा और साथ में  लाल बार्डर वाली सफेद साड़ी में  शायद  उनकी अर्धागिनी  थी , ने आ के डेरा जमा लिया था । साथ में  महिला है यह सोचकर वहाँ  के मंदिर के संस्थापक ने उन्हें  मंदिर के अहाते में  बनी कुटिया में  रहने को प्रश्रय दे दिया । वैसे भी वो बहुत  दिनों  से एक ईमानदार और संस्कारवान  पुजारी की तलाश में  थे जो कि मंदिर  के पूजा -आरती, प्रसाद, साफ सफाई की जिम्मेदारियों  को विधि विधान से निभा सके ।इस तरह उनकी यह  चिंता  भी समाप्तप्राय हो गई ।

एक तो वैसे ही विरागी लोंगो  के चेहरे पर तेज  का दैदीप्य  होता ही  है लेकिन इन दम्पति  की एक तो आयु ,वर्ण ,शरीर का सौष्ठव और आभा अवर्णनीय थी जो देखता वो देखता ही रह जाता । ऐसा लगता था कि वे किसी सम्पन्न  परिवार के और आभिजात्य  वर्ग  से संबंध  रखते हैं  लेकिन  अगर ऐसा है तो ये आवरण क्यों  धारित किया ? उनकी बातचीत के संबोधन,उच्चारण से भी वे सुशिक्षित लगते थे ।

कभी-कभी  तो अंग्रेज़ी  के कुछ  शब्द  भी अनायास ही निकल पडते उनके मुँह से ।

जो भी हो उनका व्यक्तित्व गाँव  वालों  के लिए जितना जिज्ञासा का कारण था उतना ही आकर्षण  का । कुछ  तो उनकी सरस, रोचक बातों  से और कुछ उनकी  ज्ञानयुक्त  परिचर्चा  से प्रभावित होकर वहाँ  चले आते । वो परिचर्चा  को भी बीच बीच में  अपनी छोटी छोटी  कहानियों  और चुटकुलों से इतना रसमय बना देते कि सुनने  वाला नीरसता नहीं बल्कि  चुम्बित हो जाता ।

ऐसे ही धीरे धीरे उनकी प्रसिद्धि लगातार बढ़ती जा रही थी । अब तो मंदिर के संस्थापक  ने भी मंदिर की धरोहर उनके नाम कर दी थी । अब वहाँ  उनका एकाधिकार  और वर्चस्व  था । मंदिर में  आगुन्तकों की संख्या  बढ़ने पर वहाँ  चढ़ावा और धनदान का भी प्राचुर्य हो गया था लेकिन उन लोंगो  ने उसका उपभोग सिर्फ अपने हित के लिए नहीं  किया बल्कि  पहले तो उससे मंदिर की पुनर्स्थापना  की । चमचाते फर्श ,लकदक करती  आधुनिक टाइलें  ,पालिश वाले  नक्काशी युक्त दरवाजे ,मूर्तियों  की पुनः पेन्ट करके उनका नवीनीकरण  किया ,आँगन में  पीने के जल की व्यवस्था  की। प्रांगण को इतना विस्तारित कर दिया कि 200 -250लोग एक साथ बैठ सकें  एकत्र हो भजन कीर्तन  कर सकें ।

कम से कम मंदिर का निर्माण  कार्य दो महीने तक चला । इस बीच गाँव  वालों  ने भी दिल खोल कर यथानुसार और भी अनुदान दिया जिससे  कोई  कमी न रह जाए।

निर्माण  कार्य पूर्ण  होने पर मंदिर  में  एक विशाल भंडारे का आयोजन  कराया गया । उस दिन कहलवा दिया गया कि किसी के घर भोजन नही पकेगा सभी यही प्रसाद ग्रहण करेंगे  और लाउडस्पीकर  द्वारा  आसपास के गाँव  में  भी प्रचार कर दिया गया भंडारे के लिए ।




मंदिर  के बाहर टेन्ट लगा कर सभी को नीचे बिठाकर खाने की व्यवस्था  की गई थी । क्या अद्भुत  नजारा था । लोग आते जा रहे भोजन ग्रहण करते जा रहे थे कहीँ  कोई  कमी नहीं, न ही कोई अवशेष छोड़ रहा था । बहुत ही अनुशासित  तरह से  दोनों ने अपने निरीक्षण  में  सहायकों  द्वारा  सब सुचारु  रूप से संचालित  किया ।

सब बहुत आनंदित  और कृतार्थ  थे ऐसे सामूहिक  उत्सव के लिए। 

इसके बाद तो गाँव  में  ही नहीं  आसपास  भी उनकी ख्याति  व्याप्त हो गई  ।

अब तो लोग अपनी समस्याएं  ,अपनी कामनाएँ  ,अपने दुःख  ले के उनके पास आते और हाथ जोड़कर श्रद्धा  पूर्वक उसका  समाधान चाहते । उनके इतने स्नेह और समर्पित  भाव के कारण  दोनों  की आँखे भर आती । वे उनसे कहते भी कि हम कोई  भविष्यवक्ता या भगवान नहीं  जो  इन सबका निवारण कर सकें लेकिन उनकी अटूट विश्वास के समक्ष  परास्त हो जाते । फिर अपनी समझ से उन्हें  अच्छे कर्म  करने और धैर्य  रखने की सलाह देते । सब कुछ  भगवान पर छोड़ देने का उपाय  बताते ।

आपस में  पारिवारिक या सामुदायिक  झगड़े होने पर भी वे निराकरण के लिए उनके पास आते । पता नहीं  क्या सम्मोहन  था उनकी बातों  में  कि वे जो निर्णय  देते उनसे दोनों  ही पक्षों को संतोष होता या ये कहो कि वे उनका निर्णय  सर्वोपरि  मानते ।

आखिर क्या राज था उनकी इतनी  प्रसिद्धि  का —-

  उनकी इतनी प्रसिद्धि  और लोकप्रियता किसी किसी को रास नहीं  आ रही थी और वे येन केन  प्रकारेण उनके अतीत  का सुराग 

का कोई  सूत्र खोज कर उनका परदा फाश करने की युगत लगाते रहते ।

वे जाकर उनसे बातों  बातों  में  उनके ग्राम नगर आदि का नाम पता पूछते ,उनसे इतनी कम उम्र  में  ऐसे वैराग्य का कारण पूछते ,परिवार में  और कौन हैं आदि जानने का प्रयास करते लेकिन वे बस सभी प्रश्नों  का एक ही उत्तर देते कि —

“जो है वो वर्तमान है आज है -जो बीत गया वो बात गई ।




“हमने  दुनियादारी और आडम्बर झूठे दिखावे  की दुनिया  छोडकर  सुकून शान्ति की तलाश  में यहाँ  प्रश्रय लिया है और वास्तव में  हमें  आप सबसे सच्चा  अपनत्व और मन का सुकून प्राप्त  भी हुआ  है ।अब आप सब ही हमारा परिवार  हो ।”

ये सब सुनकर उनकी जिज्ञासा भी उनके प्रति कृतज्ञता में  बदल जाती ।

कल होली का त्यौहार  है । आज होली जलनी थी ।सुबह से मंदिर  में  धूमधाम गाना बजाना हर्षोल्लास  का वातावरण था । कोई  शाम को जलाने के लिए लकड़ियाँ एकत्र  कर रहे थे ,कोई  भूनने के लिए हरा छोलिया और गन्नों की व्यवस्था कर रहे थे ,और कोई  मिठाई भोग प्रसाद वितरण आदि की व्यवस्था  में  जुटे थे । किसी को किसी भी कार्य की जिम्मेदारी  नहीं  दी गई  थी लेकिन सब स्वयं अपने घर के आयोजनों  की तरह  अपनी अभिरुचि  से  तन्मयता से हिस्सा ले रहे थे।  

रात को समयानुसार  होली जलाई गई  ।सबने होली के चारों  ओर परिक्रमा कर

पूजा करके भोग आदि लगाया । ढोल वालों  को बुला लिया गया था और सभी अपनी मस्ती में नाच गा  कर अपनी खुशी जाहिर कर रहे थे । गन्ने और छोलिया भूने खाए जा रहे थे । होली पहले भी होती थी गाँव  में लेकिन ऐसी रौनक, ऐसी महफिल ,ऐसा समां  कभी नहीं  बंधा ।ये सब  उन्ही दोनों  के आने की वजह से हुआ ।

रात को करीब 12बजे तक ये गीत संगीत नाच गाना ,खाना पीना चलता रहा ।

उसके बाद अगले दिन होली खेलने का उत्साह और  सुरूर में सब घर को गए।

अगले दिन बच्चे  तो सुबह से अपनी सेना -फौज अपने अस्त्र- शस्त्र  (गुब्बारे,पिचकारी,रंग,गुलाल), दल बदल समेत मैदाने जंग में विरोधी दलों  पर आक्रमण करने और उनको  परास्त कर विजयी पताका फहराने के लिए पूर्ण दृढ़संकल्प थे लेकिन विरोधी पलटन भी सेर की सवा सेर थी उन्होंने उनके वार से बचने के लिए और उन पर अचानक आक्रमण करने की योजना को निरस्त  कर उन्हें  संभलने का मौका दिए बगैर धरती पर धाराशायी कर दिया दोनों तरफ के शूरवीर हार मानने  को तैयार  नहीं। अब किस पर विजय का सेहरा बंधेगा ये तो बाद ही में  पता  चला होगा —-

इधर मंदिर के अहाते में  सुबह से ही सिलबट्टे पर भाँग ,बादाम ,ठंडाई आदि पीसी जा रही थी। 

गुलाल- अबीर थालियों में  सजा दिये गये थे । गुझिया, पकौड़े, मठरी- कचौडी का नाश्ता बनाया जा रहा था । कुछ ही देर में  मंदिर और मंदिर  के बाहर  गाँव  वालों की भीड़ से ऐसे लगा जैसे किसी बडे राजनेता की रैली में  विशाल जनसमूह  उमड़ आया हो।

छोटे -बड़े, स्त्री -पुरूष ,गरीब -अमीर , सबने बिना किसी भेदभाव के होली खेली ,पुरूषों  ने ठंडाई पीकर नाच गाने का ऐसे समां  बाँध दिया कि जैसे कोई  मनोरंजन  शो चल रहा हो ।

बाबा जी को लोगों  ने गाते कम ही सुना था लेकिन आज  उनहोंने “

होली आई है कन्हाई रंग बरसे “गीत का




जो सुर लगाया तो लोग सम्मोहित  होकर सुनते ही रह गए ।  उनके गीत और आवाज के  माधुर्य से चुम्बित होकर उनकी अर्धांगनी भी नृत्य करने से स्वयं को रोक नहीं  पाई । नृत्य  के समय उनकी चेहरे का सौन्दर्य , भाव भंगिमा, लचक और थिरकन को देखकर सब जैसे आत्मविमुग्ध हो गए। नाचते गाते उन दोनों  की छवि ऐसी   अलौकिक लग रही थी जैसे राधा कृष्ण  रास रचा रहे हों।

उनका ऐसा अवर्णनीय रूप देखकर और उनके आँखो में  एक दूसरे के प्रति गहन प्रेम  का भाव देख के लोग आत्मविस्मृत से हो गए ।

कुछ भी हो इस बार की  होली तो गाँव  भर के लिए कभी न भूलने वाली होली के इतिहास में  शुमार कर ली गई ।

सब कुछ  इतना सुखद स्वप्न सा था लेकिन जैसे  अचानक बसंत  के बाद तूफान आ जाए वैसे ही एक दिन उनकी जिन्दगी  में  भी कहर बन कर बरसा । बाबा जी को हार्ट  अटैक आया  और हालत  ज्यादा  खराब हो गई । अपना अंतिम समय समझ कर डाॅक्टर  के पास जाने को मना कर दिया और सबको कमरे के बाहर जाने को कह दिया  राधिका को भी ।कुछ देर में  राधिका जी को   बुलाया  और एक कैसेट की रिकार्डिंग  दे कर कहा कि इसमें  “मैंने अपनी रियल जिन्दगी  के बारे में  सब कुछ  रिकार्ड  कर दिया है । मेरा अंतर्मन  गवाही नहीं  दे रहा था  कि मैं  जिस  झूठ की जिन्दगी  जीता रहा उसी के साथ मरूँ।

तुम्हारे  आगे सारा जीवन पड़ा है तुम ये सब छोड़कर अपना घर बसा लेना ।”यह कहते कहते ही उनके प्राण चल बसे ।

  कुछ  दिन तो राधिका जी अचेत सी ही रहीं  ।फिर एक दिन उनके सेवक ने याद कराया कि बाबा जी ने कोई  रिकार्डिंग  के बारे में  कहा था कि वो आपके पास है। सभी भक्त उनके आखिरी वचनों  को सुनना चाहतें  हैं ।कल उनकी प्रार्थना  सभा में  आप सबको वो रिकार्डिंग  सुनवा दीजिएगा।  तब जाकर  उनकी भी तंन्द्रा भंग हो गई  याद आ गया । उन्होंने अकेले में वो रिकार्डिंग  सुनी उन्होंने  उसमें  वे कह रहे थे “मेरे बहुत  ही अपने साथियों  दोस्तों  आपने जिस तरह हमें अपनाकर अपने गाँव ,अपने  दिलों  में  जगह दी उसका ॠण मैं कभी नही  चुका सकता ।इसलिए  आज मैं आप लोंगो  को अपने वास्तविकता बता रहा हूँ ।मैं  कोई  संन्यासी, तपस्वी  या आध्यात्मिक  गुरू नहीं  हूँ  ।मैं  बिल्कुल  साधारण सा आप लोगों जैसा इंसान हूँ  बस मैंने भूल की थी अपने इलाके के एक प्रतिष्ठित  खानदानी परिवार  की लड़की से प्यार करने की और उसने भी यही गलती की लेकिन एक न एक दिन तो उनको पता चलना  ही था  चल गया और फिर उन्होंने अपने  यमदूतों को लगा दिया मेरे पीछे । तब उनके आक्रमण  से बचते हुए,  अपनी जान की रक्षा करते  हुए मुझसे  उनमें  से एक का मर्डर  हो गया किसी तरह बचते बचाते मैं  एक जगह छुपा और फोन करके वहीं  राधिका को बुला लिया और हम भाग सन्यासी के वेश में यहाँ  छुप गए ।

 रसूखदार लोग थे वो हमें  पकड ही लेते इसलिए  हमें  विवशता में  ऐसा रूप धारण करना पडा। शुरू में  तो हम  बस अपनी जान और  रहने की जगह ही चाहते थे  और जो कुछ  था वो अभिनय था किन्तु आप लोंगो  के प्यार ने मुझे  सच में अंदर से बदल दिया जैसे कि कोई श्रेष्ठ  अभिनेता अपने अभिनय को जीवंत करने के लिए उस पात्र को  फिल्म  में   सच में जीने लगता  है वैसे ही रोज अच्छे  विचारों  और नैतिक उपदेश देते देते मैंने स्वयं में एक सुखद सकारात्मक  बदलाव महसूस  किया ।

मैं  जो था वो नहीं रहा, मैं  जैसा दिख रहा था वैसा बनता जा रहा  था।

 लेकिन  फिर भी मैने आप लोंगो  को धोखे में  रखा था । अब मुझे  आत्मग्लानि हो रही हो ।अंतिम  समय में  सच बता कर मैं  इस अपराध बोध से मुक्त होना चाहता हूँ ।राधिका का इन सबमें  कोई  रोल नहीं  है उसने ने तो बस मुझ जैसे निकृष्ट  व्यक्ति  से प्यार करने का गुनाह किया था ।मेरी यही अंतिम  अभिलाषा  है कि  मेरे बाद वो  किसी योग्य वर का चयन कर गृहस्थी  बसा ले ।आप सब से मैं  अपने अंतर्मन  कि गहराइयों  से माफी माँग रहा  हूँ  ।

मुझे माफ कर देना । ”          




सेवक  ने आकर कहा “माँ  सब बाबा जी के आखिरी वचनों उनकी रिकार्डिंग का इंतजार कर रहें  हैं  चला दीजिए बाहर आकर ।”  राधिका जी ने दो मिनट का समय माँगा और आकर बाहर  कैसेट चला दी । पूरे वातावरण में  बाबाजी की सम्मोहित  करती आवाज में  उनका प्रिय भजन गूँज उठा जो कि वे तब गाते थे जब वे  बहुत  भावुक होते थे और ऐसे गाते थे कि सुनने वाले रो पड़ते थे ।आज भी भजन चल रहा 

 !!!अच्युतं केशवं कृष्ण  दामोदरं राम नारायणं जानकी वल्लभम् !!!!!

और हमेशा की तरह सब रो रहे थे कुछ  तो फूट फूट के रो रहे थे उनकी स्मृति  में  —

 राधिका  जी ने कैसेट बदल दिया था और उनकी  वो वाली रिकार्डिंग  नष्ट कर दी दी । वो  चाहतीं थीं कि  इन सबके मन में उनका जो दिव्य भव्य  स्वरूप  है वो ही अंकित रहे हमेशा ।

#माफी 

पूनम अरोड़ा

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