रीमा छोटी बहू बनकर आई थी। अभी हाथों की मेहंदी भी कहां छुटी थी, दो ही दिन हुए थे।
सासु मां की तबीयत कुछ बिगड़ गई थी,
बहुत ज्यादा नहीं पर अब दो बहुओं के रहते बेटों ने कहा, _”मां आराम करो, तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं है!” रीमा के पति ने कहा, रीमा माँ की तबीयत सही नहीं है, और भाभी भैया अब एक-दो दिन में चले जाएंगे,तुम्हें ही सब संभालना है!”
रीमा रूम से बाहर निकली तभी उसके जेठानी ने कहा, “रीमा कामवाली तो देर से आएगी,पर इस घर का नियम है, घर बासी देर तक नहीं रहने देते हैं, ये ले झाड़ू लगा ले!”
रीमा झाड़ू करने लगी। रीमा बहुत ही पढ़ी लिखी थी, पर वो सोचने लगी कि, “हनीमून जाने वाले थी,कोई सुगबुगाहट नहीं हो रही है,ऊपर से मेहंदी उतरी नहीं झाड़ू पकड़ा दिया।”
पैर फेरने के लिए मायके जाना था। सासू मां ने अपने छोटे बेटे से कहा, “बेटा पैर फिरवा ला दो दिन में लौट आना,फिर तेरे भैया भाभी भी लौट जाएंगे। रीमा सुन रही थे। पारंपरिक ढंग से पल्लू लेकर साड़ी पहनकर वहां रहना पड़ता था।
उसके ख्वाबों के टुकड़े होने तो मायके से ही शुरू हो गए थे,ससुराल में भी शुरुआत हो चुकी थी। पतिदेव के साथ ट्रेन में बैठी,दोनों अकेले सफर करेंगे,खूब ढेर सारी बातें करेंगे, रीमा यही सोच रही थी, तब तक एक स्टेशन में ट्रेन रुकी,उसके पति रमण ने कहा, “रुक मैं आता हूं!”
फिर अचानक ट्रेन चल पड़ी और उसके पति नहीं आये, रीमा को समझ में नहीं आ रहा था क्या करें। एक घंटे बाद स्टेशन में फिर ट्रेन रुकी,उसके पति उसके पास आ कर कहने लगे कि, “ट्रेन चल पड़ी तो अगले डब्बे में चढ़ गए थे। दो दिन बाद फिर ससुराल आ गई। ये बातें रीमा सोच रही थी।उसकी बेटी भी बड़ी हो रही थी।
आज भी बहू के रूप में उसे वो अपनापन वो सहयोग नहीं प्राप्त था। वो जॉब करना चाहती थी, पर ससुराल वालों ने मना कर दिया कहा कि, “हमारे घर की बहुएं बाहर नौकरी नहीं करती,क्या कमी है घर में!”
रीमा का अब दम घुटने लगा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था क्या करें। उसने फैशन डिजाइनिंग का भी कोर्स किया हुआ था। सोशल मीडिया से जुड़कर उसने अपना काम शुरू किया। किसी से कुछ नहीं बोली। उसके पति ने कहा, “बंद करो ये सब,बाहर वाले चर्चा करेंगे, इस घर की किसी बहू ने आज तक ऐसा नहीं किया,है आखिर भाभी से तो कुछ सीखो!”
अब रीमा से रहा नहीं गया,उसने कहा, “मैं बहू हूं,पर मैं भी इंसान हूं, ये मेरी ज़िन्दगी है,अब मैं खुद के लिए जीऊँगी, मुझे काम करने से कोई नहीं रोक सकता!”
तब उसकी सास ने कहा,”तुझे ये सब करने की क्या जरूरत है, बहू का काम है घर संभालना,हमने यही देख, तुझे पसंद किया था कि, तू घर संभालेगी, हम भी बहू थे, ऐसे हमने कभी नहीं किया,हमारे जमाने में तो हमारी आवाज भी बाहर नहीं निकलती थी !”
रीमा को पता नहीं कहां से शक्ति मिली और वह चिल्लाने लगी,बस करिए अपने जमाने की बात यह कहकर अपने बेटों का दिमाग घुमा लिया है, अब हमारी कल हमारी रानू भी किसी की बहू बनेगी, लेकिन मैं उसे अपने पैर पर पहले खड़ा करूंगी, ताकि मेरी जैसी हालत उसकी ना हो, मुझे जो करना है मैं करूंगी, कोई नहीं रोक सकता मुझे, जिसको जो करना है कर ले!”
तब रमन ने कहा, “सही कहा कल हमारी बेटी किसी की बहू बनेगी और उसके भी अरमानों का अगर गला घोंटा गया तो हमें कहां से अच्छा लगेगा,आज तुमने मेरी आंखें खोल दी रीमा, मैं तुम्हारे साथ हूं…और पूरा सहयोग करूंगा! “
इसके बाद फिर रीमा रुकी नहीं फैशन डिजाइनर के काम में वह काफी आगे निकल गई थी, बड़े-बड़े ऑर्डर आने लगे थे,और उसका काम अच्छा खासा चल निकला था। वो अपने शहर में प्रसिद्ध भी हो गई थी। आज उसे लग रहा था कि,वो खुले आसमान में उन्मुक्त उड़ रही है….और उसे ये बात समझ में आई कि, अपनी लड़ाई खुद लड़नी होती है,और अपनी पहचान बनाने के लिए हमें अपनी आवाज को भी उठाना पड़ता है, अगर वो चुपचाप सहती रहती और अपने अरमानों का गला घोंट देती, तो आज उसकी पहचान नहीं बन पाती और बहुओं के लिए रीमा एक प्रेरणा बन गई थी।
#बहु
अनामिका मिश्रा