साझा घर – हरीश कण्डवाल मनखी

विमल पूरे देश विदेश घूमने के बाद वह जब पहली बार अपने गाँव आया तो उसे लगा की उसने गाँव आने में देरी कर दी, उसका गांव अब सड़क से जुड़ चुका है, सभी सुविधाएं जो गाँव मे होंनी चाहिए वह है, दो  दिन गांव में रहा। गाँव मे रहकर यँहा की साधारण जीवन और तनाव मुक्त भागादौड़ी भरे  दिनचर्या से कुछ दिन सुकून से बीत जाते हैं, यह गाँव में रहने पर अहसास हुआ। दो चार दिन तो हर नई जगह अच्छी लगती है, जैसे सड़क पर दौड़ती महँगी कार आरामदायक लगती है, लेकिन उसे किस तरह सम्भालना है वह मालिक ही जानता है, या जैसे शो रूम में रखा जूता देखने मे अच्छा  लगता है, लेकिन  पैर को काट कँहा रहा है यह पहनकर ही पता ही चलता है।

    गाँव से वापिस शहर आया और काम धंधे में व्यस्त हो गया, क्योकि आज की  बढ़ती जरूरतों  ने इंसान को कैद कर लिया है, वह चाहकर भी  अपनी मर्जी से जी नही सकता है। वही रोज की 10 घण्टे का ऑफिस वर्क औऱ फिर थके हारे घर आकर दो रोटी भी पेट भरने के लिये खाना है, सोचकर ठूंस देना और फिर मोबाईल पर एक घण्टा सोशल मीडिया में रील और अन्य वीडियो देखकर सो जाना।  इन सभी  में उलझ कर विमल भूल हीं गया की वह खुद  से क्या वायदा करके आया है।

    एक  दिन विमल की पत्नी उषा ने कहा की उसे अपने गाँव जाना है, कभी  वीक  एन्ड पर चलते  है, बचपन में गई  थी, उसके बाद तो जाना हीं नहीं हुआ, परसो चाची का फ़ोन आया था की बेटा कभी गाँव  आवो, बचपन  तो यँही  गुजरा है।  विमल ने कहा की ठीक है मैं दो तीन दिनो की छुट्टी के लिऐ प्रार्थना पत्र लिखता हूँ।

     विमल ने अपना प्रोजेक्ट निपटाया  और बॉस के पास अपना प्रोजेक्ट रखा, विमल का परफॉरमेंस हमेशा बहुत अच्छा रहता  है बॉस ने खुश होकर विमल   के कामों की सराहना करते हुए कहा कि तुम्हारा परफॉरमेंस हमेशा  की तरह बहुत अच्छा है। विमल ले बॉस को खुश देखते ही मौके को हाथ से जाना नहीं दिया सामने प्रार्थना पत्र रख दिया, बॉस ने भी  सीधे  बिना कोई संवाद  किये छुट्टी स्वीकृत कर दी।

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    विमल अगले दिन सपरिवार अपने ससुराल के लिए निकल गये, गाँव  पहुंकर उषा  के चाचा  चाची ने बेटी दामाद की खूब  स्वागत किया, बच्चे  भी खुश थे। अगले दिन सुबह नाश्ते के बाद  विमल चाचा  के साथ  गाँव  घूमने गया तो अधिकांश  घरो में ताले लगे हुए थे, कुछ तालो पर तो घास भी उग आयी थी घर के आँगन में जँहा कभी बच्चे  खेलते वहॉ पर सारी झाड़ी उगी हुई थी, हर घर मानो चीख चीख कर आवाज दे रहा हो कि या तो हमें धराशयी कर दो या फिर हमारा स्वरूप बदल दो, वह तो पुरखों की कड़ी मेहनत थी जो इतने वर्षों से अपने वजूद पर खड़े हैं, बिना इंसान की देख रेख किये बिना।

  विमल को उषा के चाचा ने बताया कि यह हमारा साझा घर है, हमारे दादा लोग 06 भाई थे, सबके पास 01 कमरा है, लेकिन अब सबने शहरों में आलीशान घर बना दिये हैं, हमने भी अपना अलग घर बना दिया है।

  विमल ने कहा चाचा जी आपको अलग घर बनाने की जरूरत ही नहीं था, इतना बड़ा घर तो यही थी, इसी को बना लेते।

 दामाद जी साझा मकान बनाने में सबकी सहमति लेनी बहुत झंझट का काम है, क्योंकि कुछ तैयार हो जाते हैं, कुछ नहीं, यदि नौ ने सहमति दे दी और एक भाई ने मना कर दिया तो उन नौ की भी असहमति हो जाती है। साझे का दर्द बहुत बेकार होता है, इसलिए हमने अपना अलग ही बनाया है।




  विमल ने जब यह बात सुनी तो वह अचंम्भित रह गया, वह तो सोच रहा था कि मकान बरबाद होने से बजाय उसे यदि कोई संरक्षित कर रहा है तो उसको समर्थन दिया जाना चाहिए, लेकिन पूर्वजों की सम्पति पर अधिकार समझने वाले भूल जाते हैं, कि इस सम्पत्ति को बचाये रखना हमारा अधिकार से ज्यादा कर्त्तव्य है, जब सम्पत्ति बची रहेगी तभी तो अधिकार भी मॉग पायेंगे।

   विमल ने उसी समय सोच लिया कि वह भी अपने पैतृक आवास जिसको बनाना चाहता है, और जो बंजर जमीन पड़ी है, उसे आबाद करना चाहता है, उसकी जानकारी लेकर ही आगे बढा जाय, कहीं उसे भी साझे का मन मुटाव न सहना पड़े।

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  ससुराल से लौटने के कुछ दिन बाद गॉव गया और अपनी पूर्वजों की सम्पत्ति के विषय मे  अपने परिवार, गॉव और पटवारी से जानकारी ली तो पता चला कि उसका पैतृक मकान के भी कई हिस्सेदार हैं, जो अलग अगल शहरों में बसे हैं। विमल ने सबसे सम्पर्क करना चाहा, कुछ से सम्पर्क हो गया, कुछ ने ना नुकुर करते हुए औपचारिकता के लिए समर्थन सशर्तां के साथ दे दी कुछ ने बिना शर्तो की  देदी।  लेकिन अभी दो तीन परिवार थे जिनसे सहमति लेनी रह गयी, उन पर विमल को पूरा विश्वास था कि उन्हें पूर्ण विश्वास था।

  विमल ने पूरे परिवार का व्हाटस अप ग्रुप बनाया और गॉव के पैतृक मकान को बनाये जाने के लिए मंशा जारी की। जिसमें बहुत से सदस्यों ने तो कोई जबाब ही नहीं दिया और कुछ ने मौन सहमति अंगूठा दिखाकर दे दी।




     दो चार दिन बाद विमल ठेकेदार को लेकर गॉव चला गया, वहॉ जाकर ठेकेदार की फोटो और अपनी फोटो मकान के सामने खड़े होकर डाल दी और एक वीडियो बनवाकर व्हाटस गु्रप में डाल दिया, जो अभी तक चुप बैठे थे उनके जबाब आने लगे, आप बिना सहमति के मकान को हाथ भी नहीं लगा सकते हैं, यह हम सबकी पैतृक सम्पत्ति है, किसी ने लिखा कि आप पहले बॅटवारा कर लो और अपने हिस्से में बना लो, वहॉ पर बहस छिड़ गयी, विमल यही चाहता था कि सभी सॉप बाहर निकले और पता चले कि कौन शांत है, और कौन खुखांर।

  उसने पटवारी को बुलाकर अपने हिस्से की जमीन के बारे में जानना चाहा तो वहॉ पर भी अभी तक बॅटवारा नहीं हो पाया था जिसकी वजह से उसको अलग से मकान बनाने में समस्या आ रही थी, उसने पड़ौंस के गॉव में किसी व्यक्ति से जमीन ली और वहॉ पर अपना मकान बना दिया। अगले बरसात में जब वह गॉव गया तो पैतृक मकान धराशयी हो रखा था, उसने फिर फोटो खींचकर व्हाटसअप स्टेटस लगाया पैतृक साझी संपति का दर्द हुआ धराशयी।

हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।

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