‘ छोटी बहू ‘ – विभा गुप्ता

 ” कमज़ोरी बहुत है,काम की थकान और सही तरह से डाइट न मिलने के कारण ही आपकी छोटी बहू बेहोश हो गई थी।आपलोग तो पढ़े-लिखे समझदार हैं।इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि इन्हें काम के साथ पौष्टिक भोजन और पूरे आराम की भी आवश्यकता है।इतनी कम उम्र में ऐनिमिक होना सुमन के स्वास्थ्य के लिए घातक भी हो सकता है।आपलोग इनका ख्याल रखिये।”  डाॅक्टर सिद्धार्थ जो इस परिवार के फ़ैमिली डाॅक्टर थें, ने सुरेश अग्रवाल से कहा जो अग्रवाल परिवार के सबसे बड़े सुपुत्र थें।

             सुरेश के पिता मानिकचंद अग्रवाल का शहर के बीच बाज़ार में ‘अग्रवाल क्लोथ ‘ नाम की कपड़े की दुकान थी जो काफ़ी अच्छी चलती थी।सुरेश कोई पंद्रह-सोलह बरस के रहें होंगे कि असाध्य बीमारी के कारण उनके पिता की मृत्यु हो गई।उनकी माँ जानकी कर्मठ महिला थीं,उन्होंने पति की दुकान की दुकान संभाली और अपने तीनों पितृविहीन बेटों का माँ के साथ-साथ पिता बनकर भी पालन-पोषन करने लगीं।सुरेश की पढ़ाई में गहरी रुचि थी,फिर भी अपनी पढ़ाई से समय निकालकर वे दुकान पर बैठ जाते थें ताकि जानकी जी को कुछ देर का आराम मिल सके।

          समय के साथ तीनों बच्चे बड़े हो गये।सुरेश एक सरकारी दफ़्तर का मुलाज़िम हो गया,महेश की पढ़ाई में रुचि थी नहीं,किसी तरह से मैट्रिक की परीक्षा पास करके उसने ‘अग्रवाल क्लोथ ‘ की ज़िम्मेदारी संभाल ली।छोटा परेश पढ़ाई में होशियार था, सो उसने कंप्यूटर साइंस विषय लेकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और एक मल्टीनेशनल कंपनी का ऐंप्लाइ बन गया।अपने काम और सैलेरी से वह बहुत खुश था।

              परिचितों के साथ विचार-विमर्श करके जानकी जी ने सुरेश और महेश का विवाह कर दिया।यद्यपि समधियों से उन्होंने कोई डिमांड नहीं की थी,फिर भी दोनों बहुएँ अपने साथ इतना सामान लाईं थीं कि उनका घर भर गया था।स्वभाव की सरल और गृहकार्य में कुशल उनकी दोनों बहुएँ अपनी सास का भी बहुत ख्याल रखतीं थीं।परेश के लिए जानकी जी कन्या तलाश कर ही रहीं थी कि एक दिन परेश ने उन्हें सुमन के बारे में बताया।सुमन के पिता उसी स्कूल में अध्यापक थें जहाँ से उनके तीनों बेटों ने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की थी।परेश का सुमन से परिचय वहीं हुआ था।दोस्ती को प्यार में बदलते देर नहीं लगी और अब परेश सुमन को अपनी जीवन-संगिनी बनाना चाहता था।

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           सुमन जितनी रूपवती थी उतनी ही गुणवती भी,इंग्लिश ऑनर्स लेकर बीए किया था।माता-पिता की इकलौती संतान होने के कारण वह भाई-बहन के स्नेह से वंचित थी।परेश जब अपने भाई-भाभी की बातें उसे बताता था तो वह बहुत उत्साहित होकर सुनती थी।माँ की सहमति मिलने पर एक दिन परेश उसे अपनी माँ से मिलाने घर ले गया।परिवार के सभी सदस्यों ने उसे बहुत पसंद किया,बच्चे तो उसे चाची-चाची कहकर उसके आगे-पीछे घूमने लगे थें।पढ़ी-लिखी बहू है,जानकी जी के लिए यही बहुत था।

              विवाह की तिथि तय हुई। जानकी जी ने बड़े धूमधाम से अपने छोटे बेटे का ब्याह कर दिया और इस तरह से सुमन ‘अग्रवाल परिवार ‘ की छोटी बहू बन गई।परेश ने सोचा था कि सुमन को इतने बड़े परिवार में ऐडजेस्ट होने में कुछ वक्त लगेगा लेकिन दो ही दिनों में वह सबके साथ ऐसे घुल-मिल गई, जैसे बरसों से रह रही हो,यह देखकर परेश चकित था।

          कुछ दिनों तक तो तीनों बहुओं के बीच अच्छा  तालमेल बना रहा लेकिन फिर बड़ी बहू को महसूस होने लगा कि सास छोटी बहू को ज़्यादा लाड़-दुलार कर रहीं हैं।कभी उसके बनाये खाने की तारीफ़ कर देती तो कभी कह देती कि छोटी बहू मालिश बहुत अच्छा करती है।बड़ी बहू को अपना महत्व कम होता नज़र आया।उन्होंने जब मंझली से अपने दिल की बात कही तो मंझली ने भी उनकी हाँ में हाँ मिला दिया और उसी दिन से उस घर में दो टीम बन गई।दोनों बहुएँ सुमन के कामों में गलतियाँ निकालती, उसके सामने अपने मायके की बड़ाई करती और सुमन…सब सुनकर मुस्कुरा देती थी।बरसों से वह जिस भरे-पूरे परिवार का स्नेह पाने के लिए तरस रही थी,ईश्वर की कृपा से वह सब उसे मिल गया था।




           सुरेश-महेश के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने एक अध्यापक आते थें,एक दिन जब वे नहीं आये तो सुमन ही उनके होमवर्क कराने लगी और तब देखा कि बच्चे तो पढ़ाई में काफ़ी पीछे हैं,मतलब कि ट्युशन-टीचर सिर्फ़ अपनी फ़ीस ले रहा है और तब उसने अध्यापक की छुट्टी करके बच्चों की पढ़ाई की कमान भी स्वयं ही संभाल ली है।बच्चों के रिजल्ट अच्छे होने लगे तो सभी छोटी बहू की प्रशंसा करने लगे जिसे सुनकर दोनों बहुओं की छाती पर साँप लोटने लगे।

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         छोटी बहू के साथ दोनों बहुओं का उपेक्षित व्यवहार जानकी जी के साथ-साथ तीनों भाइयों ने भी नोटिस किया।सबने उन्हें समझाने की कोशिश भी की लेकिन ईर्ष्या का कीड़ा एक बार मन में प्रवेश कर जाये तो आसानी से निकलता नहीं है।

          एक दिन छत से सीढ़ियाँ उतरते समय जानकी जी का पैर फिसल गया, गिरने के कारण सिर पर गहरी चोट आई जिसके कारण हाॅस्पीटल पहुँचने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया।उनके जाने के बाद बड़ी बहू घर की मालकिन बन गई और सास के लिहाज़ से जो इच्छा उनकी रह गई थी,वह अब पूरी करने लगी।मतलब यह कि रसोई,सफ़ाई से लेकर बच्चों की पढ़ाई तक की पूरी ज़िम्मेदारी छोटी बहू के कंधे पर डालकर दोनों बस आराम फ़रमाती।परेश ने इसकी जानकारी अपने भाइयों को देनी चाहिए तो सुमन ने न कहने की अपनी कसम दे दी।फिर अलग बसेरा करने को कहा,तब भी सुमन ने मुस्कुराते हुए मना कर दिया।शरीर ही तो है,कब तक अत्याचार सहता।सुबह की चाय बना ही रही थी कि उसे चक्कर आ गये।कपड़े धोने आई धोबिन ने देखा तो दौड़कर बड़े भईया को कमरे से बुला लाई।




           ” जी डाॅक्टर साहब!” कहकर सुरेश ने पास खड़ी अपनी पत्नी पर एक गहरी नज़र डाली और डाॅक्टर साहब को बाहर तक छोड़ने चले गये।तब तक महेश भी आ गये और परेश को जो दो दिनों के लिए दिल्ली गया हुआ था, फ़ोन करके बता दिया कि छोटी बहू को चक्कर आ गये थे,डाॅक्टर ने बताया है कि चिंता वाली कोई बात नहीं है।

          सुरेश अपनी बेटी को चाची के पास बैठने को कहकर अपने कमरे में चले गये।वहाँ पत्नी को बैठी देखकर बोले, ” तुम इस परिवार की बड़ी बहू हो,जिसका काम सबको साथ लेकर चलना है।लेकिन तुमने तो….।जिस प्रकार शरीर के किसी अंग में चोट लगती है तो दर्द पूरे शरीर को होता है,उसी प्रकार परिवार में कोई एक सदस्य तकलीफ़ में हो तो सभी को दर्द होता है।छोटी बहू की पीड़ा तुम्हें कैसे नहीं दिखाई दी।पिछले साल बीमारी के कारण मुझे दो महीने सैलेरी बहुत कम मिली थी, तब तुम्हारे दोनों बच्चों की फ़ीस परेश ने ही भरी थी।

मैंने जब उसे अपना परिवार बढ़ाने की बात कही तो बोला कि भइया, अंकिता-आशु है ना।शास्त्रों में गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है।इसीलिए हमारी अंकिता अपनी चाची से आशीर्वाद लेने गई थी क्योंकि उसी की वजह से उसने टाॅप किया था और तुमने छोटी बहू को बाँझ, डायन और न जाने क्या-क्या कह दिया था।फिर भी वह चुप रही क्योंकि वह अपनी दोनों दीदियों को खुश देखना चाहती थी।उसे हम लोगों से सिर्फ़ प्यार चाहिये।उसने अपने घर में कभी एक गिलास पानी भी नहीं उठाया था लेकिन यहाँ ….

इसीलिए माँ हमेशा उसके साथ रहती थीं कि उससे कहीं कोई गलती न हो जाए लेकिन अहंकार और ईर्ष्या में अंधी होकर तुमने न जाने क्या समझ लिया।छोटी बहू तो हम सबको अपना परिवार मानती है किन्तु  तुमने…..।उसे बिस्तर पर पड़े देखकर अंकिता ने अपने मुँह में अन्न का एक दाना तक नहीं डाला है और आशु ने तो रो-रोकर अपनी आँखें सुजा ली है।छोटी बहू बड़े घर की न सही लेकिन बड़े दिल की तो है जो सिर्फ़ प्यार देना

जानती है और..।ज़रा सोचो,कल अंकिता भी दूसरे घर जाएगी,उसके साथ भी अगर कोई ऐसा ही व्यवहार करे तो …।” सुरेश पत्नी को कहते जा रहें थें और बड़ी बहू अपने नयनों के जल से पति के चरणों को भिगोकर अपने दुर्व्यवहार का प्रायश्चित कर रही थी, तभी अंकिता आकर बोली, ” माँ, चाची…।” 

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 ” क्या हुआ छोटी बहू को?” किसी आशंका से बड़ी बहू घबरा उठी।

” चाची को होश आ गया है माँ..।बेटी के चेहरे पर प्रसन्नता देख वे छोटी बहू के कमरे की ओर दौड़ पड़ी।

         उधर महेश ने भी अपनी पत्नी को बताया कि तुम लोगों के व्यवहार से तंग आकर परेश ने कई बार अलग होना चाहा लेकिन छोटी बहू यह कहकर मना कर देती कि परिवार से अलग होकर कब कोई सुखी रह पाया है।दो साल पहले दुकान बहुत घाटे में चल रहा था,तब सोचा कि तुम्हारे गहने गिरवी रखकर….. तब परेश ने कहा, गहने तो भाभी का स्त्री-धन है और महीने की पूरी सैलेरी मुझे दे दी थी,साथ ही तुम्हें न बताने की कसम भी दे दी थी।इसी को तो परिवार कहते….।मंझली बहू फूट-फूटकर रोने लगी।

           छोटी बहू ने आँखें खोली तो सामने अपने पूरे परिवार को देखा।उसकी बड़ी दीदी और मंझली दीदी रो रही थी,उसने उठने का प्रयास किया तो दोनों ने हाथ जोड़कर कहा ” छोटी बहू हमें माफ़ कर दो।” और तब सुमन दोनों के गले लगकर रोने लगी।ये उसके खुशी के आँसू थें।घर का भावुक माहौल देखकर सुरेश बोले, आप लोग रोती रहेंगी या छोटी बहू को कुछ खिलायेंगी भी, फिर तो घर में हँसी-ठिठोली होने लगी।

             बड़ी बहू सुमन के लिए सूप बनाने लगीं, मंझली उसे सेब काटकर खिलाने लगी और महेश की बेटी पायल उसके पैरों की मालिश कर रही थी।उसे यह सब एक सपना-सा लग रहा था।तब तक परेश भी आ गया और वहाँ का दृश्य देखकर आश्चर्य से बोला, ” अच्छा, तो मैडम यहाँ आराम फ़रमा रहीं हैं।” सुनकर सब हा-हा करके हँसने लगें।

       अगली सुबह छोटी बहू बच्चों के साथ हँस-बोल रही थी और उसकी दोनों जिठानियाँ रसोई में थीं।डाइनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए बैठे परेश अपने भाइयों से बोले कि दो दिनों के बाद उन्हें कोलकता जाना है।सुरेश बोले,” छोटी बहू को साथ लेकर जाना।”

” लेकिन भैया, वो नहीं जाएगी।” सुनकर दोनों जिठानियाँ समवेत स्वर में बोलीं, ” नहीं जाएगी तो हम अन्न-सन्न कर देंगे ” फिर क्या था, पूरा घर ठहाकों से गूँज उठा।तभी धोबिन आई।पूरे परिवार को फिर से हँसते-बोलते देख उसके मुँह से निकल पड़ा,” आज माँजी होतीं तो अपने परिवार को देखकर कितना खुश होतीं।हे भगवान! ऐसी छोटी बहू तो हर परिवार को देना जो सबके साथ मिलकर रहे और परिवार को जोड़कर रखे।भगवान,इस परिवार की खुशियों को बुरी नज़र से बचाना।” फिर थू-थू करके कपड़े धोने चली गई।

                               विभा गुप्ता 

        #परिवार            स्वरचित 

              मिलजुल रहने, एक-दूसरे की तकलीफ़ को समझने, साथ निभाने, बड़ों के साथ-साथ छोटों को भी सम्मान देने और प्यार बाँटने से ही तो परिवार में खुशियाँ आती हैं।

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