वे नारीवादी लेखक थे ।महान लेखक बनना चाहते थे, और एक ऐसी ही तथाकथित नारीवादी फेमिनिस्ट लड़की के प्यार में पड़ गए। दोनों प्रतियोगी परीक्षाएं दे रहे थे ।पर कुछ खास सफलता नहीं मिली ।
वे अपनी कविता और लेखन के जरिए नारीवाद पर वाहवाही लूटते थे। लड़की शादी के बंधन में बंधना नहीं जाती थी। क्योंकि वह आखिर एक बंधन था ।लिव इन रिलेशनशिप एक आसान तरीका लगा। लिव इन रिलेशनशिप में से निकलना बहुत आसान था ।शादी तोड़ना आसान नहीं । और खुदा ना खास्ता वह कोई प्रतियोगिता पास कर बड़ी अफसर बन गई तो, किसी अच्छे बड़े अफसर से शादी कर लेगी, इस जैसे लेखकों की औकात ही क्या ?? बहुत घूमते हैं।
पर परीक्षाओं में कामयाबी भी नहीं मिल रही थी और कहीं नौकरी भी नहीं लग रही थी। खर्चा चलाने की अलग से परेशानी थी। क्या करें पिता से आखिर कहां तक मांगे। नारीवादी थी बंधन में बंधना बच्चों का झंझट उसे नहीं चाहिए था । फिर विश्वास था कि दो चार साल में किसी न किसी प्रतियोगी परीक्षा को पास कर ही लेगी। लेखक महोदय उत्तरोत्तर ऊंचाइयों की ओर बढ़ रहे थे। उनका लेखन पसंद किया जा रहा था। उनकी कविताएं बड़े-बड़े कार्यक्रमों में सुनी जाती थी। वे एक प्रतिष्ठित लेखक बन चुके थे।
दोनों के बीच सफलता और असफलता का फासला व्यापने लगा था। लेखक की बड़ी सारी प्रशंसिकायें थी , जिनसे फोन पर गुफ्तगू होती रहती थी । व्हाट्सएप पर चैटिंग भी होती ,,,उसकी एक -एक कविता पर मर- मर जाने वाली ढेरों लड़कियां थी। लेखक अपनी पूर्व प्रेमिका से पिंड छुड़ाने के नए-नए तरीके सोचने लगा । क्योंकि उसके पास बेहतर ऑप्शन थे ।उसका नारीवाद उसका फेमिनिज्म उसने एक तरफ रख दिया।
लड़की को उसके रंग -ढंग ठीक नहीं दिखाई दे रहे थे। उसका प्रतियोगी परीक्षा का सपना भी दम तोड़ने लगा था। ओवर ऐज होने वाली थी । उसके लिए इससे बेहतर लड़के का ऑप्शन नहीं था। इसे छोड़कर वह कहां जाए। सो उस पर शादी का दबाव बनाने लगी। उसका भी नारीवाद ,नारी स्वतंत्रता के नारे उसने एक और रख दिए और शादी जैसी भारी-भरकम बंधन की जंजीर से बंधने को तैयार हो गई।
पर लड़का तो उसके साथ रहने को तैयार ही नहीं था शादी तो दूर वह उसे घर से बाहर निकालने पर उतारू था।
लड़की का खून खौल उठा वह उससे कोर्ट तक घसीट कर ले गई। उसने उस पर रेप के अनेक लड़कियों से संबंधों के अनेक इल्जाम लगा दिये ।वह उसे अपने किए की सजा दिलाना चाहती थी ।उसे सलाखों के पीछे देखना चाहती थी।
लड़का सिर धुन रहा था । काश कि उसने किसी अच्छी महिला से बाकायदा भारतीय संस्कृति के अनुसार शादी की होती ,,, तो आज घर में एक दो बच्चे खेल रहे होते। उसकी पत्नी उसकी छोटी- मोटी गलतियों पर उसे जेल का रास्ता नहीं दिखाती। उसकी छोटी -मोटी दिल लगियां तो अपने पल्लू की आड़ डालकर छुपा देती ।उसकी बनी बनाई इज्जत को इस तरह सरेआम नीलाम ना करती, घर में ही लड़ डांट कर सीधा कर देती ।
लड़की सोच रही थी कि इससे या किसी और से समय रहते अपनी संस्कृति के अनुसार ही विवाह करती तो अच्छा था। वास्तव में तो भारतीय शादियां ही इतना दम रखती हैं कि जीवन भर चलती है ।बाकी तो दूसरे देशों में भी देख लो ,,शादियां टूटती हैं ,,लिव इन रिलेशनशिप की तो बात ही क्या? विवाह हुआ होता तो इस तरह से घर में से निकालने की हिम्मत ही क्या होती जैसे कोई सराय में रहने वाली मुसाफिर हो। शादी करता बच्चू को नानी याद आ जाती उसकी ही नहीं उसके बच्चों की बच्चों की भी तब यहचिंता करता।
अगर इस तरह घर से निकालने की बात भी की होतीतो ,,,सास ननंद ,,ससुर ,,देवर सब उसका पक्ष लेने चले आते। पर अब तो ना ससुराल परिवार वाले,,, ना मायके वाले ,,कोई कुछ भी नहीं बोल रहा जैसे सारी गलती उसी की है।
लेखिका — रेखा पंचोली