चित्रा एक अधेड़ महिला के साथ कॉफी हाउस में बैठी थी । ऐसा लग रहा था कि दोनों इस बात का इंतज़ार कर रही थी कि कौन बातचीत का सिलसिला पहले शुरू करेगा। अधेड़ महिला जिसका नाम सुगुणा था उन्होंने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा— हाँ तो तुमने अपना नाम क्या बताया था ।
चित्रा ने कहा— अभी मैंने बताया नहीं है मेरा नाम चित्रा है । मैं मल्टीनेशनल कंपनी में टीम लीडर हूँ । माता-पिता की अकेली संतान होने के कारण उन्होंने मुझे पूरी स्वतंत्रता दी है अपने केरियर बनाने के लिए। पिताजी बैंक में नौकरी करते हैं माँ हाउस वाइफ़ हैं बहुत ही पढ़ी लिखी हैं परंतु उन्हें घर में रहना अच्छा लगता है ।
सुगुणा चित्रा की बातों को बहुत ही ध्यान से सुन रही थी । उसे लग रहा था कि चित्रा की परवरिश बहुत ही अच्छे से हुई है । माता-पिता के प्रति आदर मान सम्मान देख उसे लगा कि उसके संस्कार भी अच्छे हैं।
चित्रा अपने बारे में बताकर सुगुणा की तरफ़ देखने लगी ।
सुगुणा ने कहा कि — मेरे बेटे को कबसे जानती हो।
चित्रा— जी एक साल से जानती हूँ ।
सुगुणा— अच्छा बहुत बढ़िया है । उसके बारे में क्या जानती हो ।
चित्रा— मैं समझी नहीं आख़िर आप क्या पूछना चाहती हैं ।
सुगुणा ने कहा कि— ठीक है बेटा मैं तुमसे यह जानना चाहती थी कि इस एक साल में उसकी अच्छाइयों और बुराइयों को पहचानने की कोशिश की है या सिर्फ़ उसकी चिकनी चुपड़ी बातों को सुनकर खुश होती थी ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
अब अपमान बर्दाश्त नहीं – वीणा
चित्रा सोच रही थी कि— मैंने कभी इस तरह सोचा ही नहीं है । राजीव ही नहीं बहुत सारे लड़के उसे शादी का प्रपोज़ल करना चाहते थे । उसने किसी पर भी ध्यान नहीं दिया था क्योंकि उसे काम करना अच्छा लगता था वह इन बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया करती थी ।
एक साल तक राजीव उसके पीछे ऐसे पड़ गया था कि वह सोचने पर मजबूर हो गई थी कि पढ़ा लिखा है एक साथ एक ही ऑफिस में नौकरी करते हैं तो हाँ कहने में क्या बुराई है । इसलिए कुछ दिन पहले ही उसने हाँ कह दिया था ।
सुगुणा ने कहा कि- चित्रा किस सोच में डूब गई हो । उसने कहा कि— मैंने उन पर ध्यान नहीं दिया है ।
सुगुणा ने कहा कि- मैं बताती हूँ उसके बारे में फिर भी तुम उसके साथ शादी के लिए तैयार हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है ।
सुगुणा कहने लगी कि चित्रा राजीव मेरा अकेला बेटा है उसके पिता के साथ मेरी शादी जब हुई थी तब मेरी उम्र सिर्फ़ अठारह वर्ष ही थी । उन्होंने मुझसे शादी तो कर लिया है लेकिन मुझे पसंद नहीं करते थे । उन्हें स्त्रियों की इज़्ज़त करना नहीं आता था । अपनी माँ का भी सम्मान नहीं करते थे। उन्हें लगता था कि स्त्री को पैर की जूती समान समझना चाहिए । राजीव भी अपने पिता को देखते हुए उनकी आदतों को सीख गया है । मैंने बहुत कोशिश की थी कि उसे अच्छी परवरिश दूँ परंतु उसके पिता के सामने मेरी सारी कोशिश व्यर्थ हो गई थी । पिता के द्वारा मेरे साथ किया जाने वाला व्यवहार उसे अच्छा लगता था और खुद भी मेरी इज़्ज़त नहीं करता था । मैं नहीं चाहती हूँ कि तुम ऐसे व्यक्ति के साथ शादी के बंधन में बँधकर उम्र भर पछताओ। उसे तुमसे प्यार नहीं है तुम उसकी ज़िद हो वह उन सबको दिखाना चाहता है कि तुम लोगों ने जिसे नहीं पाया उसे मैंने पा लिया है और कुछ नहीं ।
कल मुझे उसने बताया था कि वह अपने ऑफिस में नौकरी करने वाली लड़की से शादी करना चाहता है ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
शर्मिन्दगी.. – रीटा मक्कड़
चित्रा सुगुणा की बातों को सुनकर सोचने लगी थी कि कैसे राजीव सुबह शाम काम छोड़कर भी उसके आगे पीछे घूमता था । कल भी जब वह काम कर रही थी तो वह कह रहा था कि ज़्यादा दिखाने की ज़रूरत नहीं है कि तुम बहुत काम करती हो ।
मैंने अपनी माँ को हमारे बारे में बता दिया है अब तुम अपने घर में बता दो ।
यानी कि उसकी बातों में प्यार नज़र नहीं आ रहा था ।
सुगुणा ने उसके विचारों पर रोक लगाते हुए कहा मेरी बात मानकर तुम किसी ऐसे लड़के से शादी करो जो तुम्हारे केरियर में बाधा उत्पन्न न करे और तुम्हारी इज़्ज़त करे और तुम्हें बहुत सारा प्यार दे ।
दोनों थोड़ी देर चुप बैठे रहे फिर वहाँ से जाने के लिए उठे चित्रा ने सुगुणा का हाथ पकड़कर कहा कि मैं आपकी सहायता कैसे करूँ बताइए ना ।
सुगुणा ने कहा कि मेरी तो आधी से ज़्यादा ज़िंदगी ख़त्म हो गई है । मेरी कोई इच्छा नहीं रही बस यही सोचती हूँ कि राजीव पिता के समान न होकर आज के पढ़े लिखे समझदार नौजवान जैसे होता तो मुझे ख़ुशी होती थी ।
चलो चित्रा अब मैं चलती हूँ कहते हुए उन्होंने चित्रा का फ़ोन नंबर लिया और वह कैफ़े से बाहर चली गई थी । उन दोनों को यह नहीं मालूम था कि राजीव ने उनकी बातें सुन ली थी ।
सुगुणा घर पहुँच कर रसोई में रात के खाने की तैयारी में लग गई थी । राजीव पीछे से आ कर माँ के गले लगता है और अपने किए गए व्यवहार के लिए माफ़ी माँगता है ।
उसे वचन देता है कि मैं आगे से अपने आपको बदलने की पूरी कोशिश करूँगा आपको शिकायत का मौक़ा नहीं दूँगा । मैंने आज तक आपकी इज़्ज़त नहीं की थी मुझे अपने आप पर घृणा हो रही है माँ । मैंने आपकी सारी बातें सुन ली है मुझे लग रहा है कि मैं कितना गलत था ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
वह दर्दनाक मंजर – कमलेश राणा
मैं चित्रा से सच्चा प्यार करता हूँ पर जैसे आपने कहा मुझे अपने आप में बदलाव लाना है उसके बाद उसके माता-पिता के पास जाकर उसका हाथ माँगूँगा ।
सुगुणा को बहुत अच्छा लग रहा था कि आज तक मैं जो करना चाह रही थी वह आज पूरा हो रहा है ।
चित्रा को उसने फ़ोन पर सब बता दिया था तो चित्रा ने कहा कि यह तो बहुत ही अच्छी बात है । मैं भी उसकी सहायता करूँगी ।
सुगुणा ने कहा कि— चित्रा मेरी बहू बनने के लिए तैयार हो जाओ । राजीव ने कुछ ठान लिया तो वह करके दिखाएगा ।
सही है दोस्तों बच्चे माता-पिता की परछाई होते हैं । हमें वे देखते रहते हैं हमारी अच्छी बुरी सभी आदतों का अनुकरण करते हैं । अगर उन्हें अच्छी बातें सिखानी हैं तो उनके सामने अच्छा व्यवहार करें बड़ों की इज़्ज़त करें ताकि वे भी सब कुछ सीख सकें
साप्ताहिक विषय-इज़्ज़त
स्वरचित
के कामेश्वरी