जिंदगी एक पहेली है और हम सब इसका उत्तर ढूंढते ढूंढते कहीं खो जाते हैं। शायद ही किसी को इसका सही उत्तर मिल पाता है। ऐसे ही पहेली से उलझता जिंदगी के चक्रव्यूह से निकलने की कोशिश करता बिरजू एक दिहाड़ी मजदूर था। जब से होश संभाला था खुद को अकेला ही पाया था। थोड़ा बहुत हिंदी पढ़ना लिखना दूसरों की दया से सीख गया था और थोड़ा जमा घटा भी।
जहां कहीं किसी कोठी में या मेट्रो का काम चल रहा होता था उसे मजदूरी मिल जाती थी। वहीं पास में एक झुग्गी बस्ती में एक झुग्गी किराए पर ले रखी थी।
साथ काम करने वाले मजदूर उसके दोस्त बन गए थे और वे भी वही आसपास झुग्गियों में रहते थे। इन सब में उसका एक खास बिल्कुल पक्का वाला दोस्त था किशोर।
शाम को मजदूरी के पैसे लेकर सारे मजदूर ठेके पर शराब पीने जाते, लेकिन बिरजू कभी नहीं जाता था और किशोर को भी जाने से मना करता था। किशोर थोड़ा मनमौजी टाइप का आदमी था। कभी बिरजू की बात मान जाता था तो कभी नहीं।
लेकिन बिरजू ने मन में सोच रखा था कि किशोर कि यह शराब की आदत छुड़ा कर रहूंगा और सचमुच उसने किशोर को रोज-रोज समझा बुझाकर सचमुच यह काम कर दिखाया। अब किशोर शराब ना पी कर उन पैसों को जोड़कर रखने लगा था।
थोड़े समय बाद किशोर की गांव में रहने वाली एक लड़की कजरी से शादी तय हो गई। किशोर, बिरजू से कहता है कि यार तू भी अब अपने लिए कोई अच्छी लड़की ढूंढ कर घर बसा ले फिर दोनों दोस्त मिलकर अपनी पत्नियों के साथ खुशी-खुशी रहेंगे।
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बिरजू कहता-“पहले तू शादी कर ले, फिर मैं भी कर लूंगा।”
किशोर की शादी से ठीक 2 दिन पहले काम करते समय अचानक एक बड़ा सा सीमेंट का स्लैब बिरजू पर आ गिरा। बिरजू को बहुत छोटे आई। इस कारण वह किशोर की शादी में भी नहीं जा पाया।
शादी के बाद किशोर उससे मिलने आया था। 10 दिन बीत चुके थे ।बिरजू थोड़ा-थोड़ा ठीक होने लगा था।
एक दिन अचानक खबर आई कि किशोर चल बसा है। कैसे? बिरजू के मुंह से चीख निकल गई और आंखों से आंसू बह निकले। किशोर का चेहरा उसकी आंखों के सामने घूम रहा था।
मजदूर साथियों ने बताया कि किशोर क्रेन से ऊंचाई पर चढ़कर काम कर रहा था और अचानक उसका संतुलन बिगड़ गया और वह नीचे रखी ईटों के ढेर पर आ गिरा। सिर पर गहरी चोट लगने के कारण वह वही समाप्त हो गया। बिरजू सोच रहा था हे भगवान! यह क्या हो गया? उसकी पत्नी पर क्या बीत रही होगी, अभी तो शादी को पूरा एक महीना भी नहीं हुआ है और वह मासूम लड़की विधवा हो गई।
उधर किशोर की पत्नी कजरी का रो-रोकर बुरा हाल था। बिरजू उससे मिलने आया तो उसका पागलों की तरह बड़बड़ाना और रोना देखकर उसकी आंखें भर आई। वह किसी के काबू में नहीं आ रही थी और उसे किसी के सांत्वना भरे शब्द भी अच्छे नहीं लग रहे थे। उसके रिश्तेदारों को और बिरजू को कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि उसे कैसे चुप करवाएं और तसल्ली दे।
तब उसने कजरी के घर में इधर उधर नजर दौड़ाई तो उसे शीशे के पास रखी सिंदूर की डिब्बी दिखाई दी। उसने उस डिब्बी को उठाया और गंभीरता से कुछ सोचते हुए डिब्बी खोल कर कजरी की मांग सिंदूर से भर दी।
यह क्या हुआ? कजरी और बाकी सब लोग हक्के बक्के रह गए। कजरी ने और बाकी सब ने इस बात का विरोध किया। कुछ लोगों ने सहमति भी जताई।
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तब बिरजू ने कहा-“आप लोगों को इसका दुख दिखाई नहीं दे रहा। कितनी उम्र बाकी है इसकी, अकेली कैसे रहेगी। रो-रो कर इसने अपना बुरा हाल कर रखा है, क्या आप लोग चाहेंगे कि यह किशोर के दुख में रो रो कर मर जाए? फिर भी मैं इसकी सहमति का इंतजार करूंगा और ये जितना चाहे इतना समय ले सकती हैं सोचने के लिए।”
कजरी पहले तो समझ नहीं पा रही थी कि यह अचानक क्या हुआ और फिर उसने रोते-रोते बिरजू के दोनों गालों पर तमाचा की बरसात कर दी और कहा-“तुम होते कौन हो ऐसा करने वाले, पहले सिंदूर लगाकर बाद में मुझसे पूछोगे मेरी मर्जी।”
बिरजू भी बहुत रो रहा था। थोड़ी देर बाद कजरी जब रोते-रोते थक गई और कुछ सामान्य हुई तब उसने आंसू पोंछते हुए बिरजू से सिर्फ एक सवाल पूछा-“कैसे रखोगे मुझे?”
बिरजू-“पत्नी बनाकर पूरी इज्जत से।”
कजरी ने रोते हुए अपनी सहमति दे दी। इस बात को 10 वर्ष बीत चुके हैं। वो दिन और आज का दिन, बिरजू ने कभी कजरी को डांटा तक नहीं, इज्जत के साथ साथ पूरा प्यार भी दिया। कजरी ने जब मजदूरी करने के लिए कहा, तब उसने कहा -“नहीं, तुम सिर्फ घर संभालो। घर चलाने के लिए पैसे कमाना मेरी जिम्मेदारी है ।”इस बीच उनके दो प्यारे प्यारे बच्चे एक बेटा और एक बेटी भी हो चुके थे। चारों बड़े प्यार से अपने छोटे से घर में रहते हैं।
स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली