त्रिपाठी जी की अकस्मात मौत से पूरा गाँव शोक में डूबा हुआ है , पूरा गाँव इसलिये क्योंकि वो अकेले होकर भी पूरे गाँव वालों से किसी न किसी रिश्ते में बंधे हुए थे..इतने मिलनसार के किसी का ब्याह हो या किसी का बच्चा होने वाला या फ़िर कोई घर बना रहा हो.. सारे काम में अपने आपको ऐसे बाँध लेते जैसे इनकी ही ज़िम्मेदारी हो..!
पत्नी ने बेटी के जन्म के समय ही उनका साथ छोड़ दिया, इन्होने अपनी बेटी को ही बेटे की तरह पाला और अच्छी तालीम भी दी.. और बड़े गर्व से कहते भी थे के ये मेरी बेटी नहीं… ये तो मेरा बेटा है … मेरे मरने के बाद यही तो बेटे का भी फ़र्ज़ निभाएगी… अक़्सर विदेश में बसे बेटी दामाद से वीडियो कॉलिंग में बात करके वो इतने ख़ुश हो जाते जैसे सारे जहाँ की ख़ुशियाँ उन पलों में सिमट गई हो.. पर, आज.. आज दोस्तों के साथ ठहाके लगाते हुए जब अचानक उनकी साँसें थम गई तो पूरा गाँव काठ की तरह निर्जीव बेज़ान सा हो गया….जब गाँव के सारे लोग मिलकर उनकी बेटी से पिता के अंतिम क्रिया कर्म के लिए आग्रह करने लगे .. तो , बेटी.. पिता की मृत्यु की ख़बर सुनकर कहने लगी – “आप लोग कह रहे हैं कि बाबा के अंतिम संस्कार के लिए मैं आऊँ .. उतनी दूर.. सिर्फ़… उन्हें अग्नि देने के लिए…! इम्पॉसिबल… यहाँ ऑफ़िस में प्रोजेक्ट के काम में मैं इतनी ज़्यादा व्यस्त हूँ .. कि मुझे साँस लेने की भी फुर्सत नहीं … और आप लोग कह रहे हैं.. कि, एक दिन के लिए भी…!.. ऐसा क्यों नहीं करते काका… ! आप लोगों में से ही कोई एक बाबा का अंतिम संस्कार कर दे.. आप सबको भी तो वो अपना परिवार समझते थे… हाँ ये ही ठीक रहेगा… और आप लोग जब भी उनका क्रिया कर्म करेंगे न तब मुझे विडियो कॉलिंग करके दिखा देंगे…! “बेटी ने अपना निर्णय लेते हुए.. स्वयं ही अपनी सहमति भी जता दी
जिसे साँसें रोके… सुन रहा था पूरा गाँव… एक मृत पिता की इकलौती संतान ने कैसे.. कितनी सफ़ाई से बहाना बना दिया.. कुछ देर के लिए तो वहाँ.. मौन पसरा रहा.. लेकिन थोड़ी देर बाद ही त्रिपाठी जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया… पर, बेटी को वीडियो कॉलिंग करना किसी ने ज़रूरी नहीं समझा … क्योंकि, जिन साँसों को इससे जीवन मिलता था, वो धड़कनें तो अब थम ही चुकीं थीं…हमेशा के लिए….
#औलाद
@मधु मिश्रा, ओडिशा
(स्वरचित और अप्रकाशित)