स्कूल के वार्षिकोत्सव में स्कूल के होनहार व मेहनती बच्चों का सम्मान था। बच्चों की सूची में प्रशांत का भी नाम था। उसका नाम पुकारे जाने से पहले प्रिंसिपल ने उसके बारे में बताया,” विगत छ: वर्षों से प्रशांत हमारी स्कूल का छात्र है। बचपन में हुए एक हादसे में उसका दायाँ हाथ लगभग निष्क्रिय हो गया, उसके माता पिता चिंतित थे कि अब वह पढ़ेगा लिखेगा कैसे, दूसरे कार्य भी कैसे करेगा लेकिन इस बच्चे ने कोशिश की, पीछे नहीं हटा और हर वो काम जो मुश्किल लग रहा था उसे कर दिखाया। एक साल उसने राइटर की मदद से परीक्षा दी किंतु उसके स्वाभिमान को यह मंजूर न था इसलिये उसने बायें हाथ से लिखने का भरसक प्रयास किया और उसमें सफल भी रहा। जिस प्रारब्ध को हम लिखा हुआ मानते हैं उसे प्रशांत ने मेहनत व लगन के दम पर अपने हाथ से लिख दिया।”
प्रशांत मंच पर आया, प्रिंसिपल को चरणस्पर्श कर कहा,” सर, मेरी प्रशंसा के लिये धन्यवाद लेकिन इसके असल हकदार कोई और है, अगर मैंने उन्हें न देखा होता तो मेरा हताश मन मेहनत करने को कभी प्रेरित नहीं होता। आपने कहा कि मैंने अपने हाथ से अपना प्रारब्ध..किंतु उन्होंने तो…। पाँच मिनिट रूकिये, मैं आपको उनसे मिलवाना चाहता हूँ।”
फिर प्रशांत एक शख़्स, जिनके दोनों हाथ कटे थे, को मंच पर लाया। उन्होंने हाथों से होने वाले कुछ काम पैरों से करके बताये मानो पैरों से प्रारब्ध लिखा रहे हों।
समाप्त
कवरेज के बाहर
भाइयों में झगड़ा हो गया। उनके दिमाग का तापमान बढ़ने के कारण पारा चढ़ा हुआ था। क्रोध व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति का हरण कर लेता है। इसी हरण के शिकार बड़े भाई सुरेश ने अपने छोटे भाई महेश को घर से निकाल दिया, वह भी गुस्से से उबलता हुआ चला गया।
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मम्मी पापा ने बहुत समझाया परंतु सुरेश कुछ सुनना ही नहीं चाहता था। दो दिन बाद दिमागी तापमान कम हुआ, भाइयों ने बात करना चाही किंतु ‘मैं क्यों करूँ, वह भी तो कर सकता है’ बीच में आ खड़ा हुआ।
खबर लगी कि महेश अभी तक दोस्त के यहाँ रह रहा था और अब शहर छोड़कर जाने वाला है। सुरेश की पत्नी ने उसे कहा,” यह अहं की आग रिश्ते को तबाह कर देती है, आप ऐसा मत होने दीजिये, महेश से बात कर लीजिये, प्लीज।” यहाँ सुरेश सोच ही रहा था कि फोन लगाऊँ या नहीं और वहाँ पत्नी ने लगा दिया लेकिन मोबाइल कवरेज के बाहर आ रहा था।
जब समझाइश की सीधी अंगुली से अहं ना निकले तो डांट कर अंगुली तेडी करना पड़ती है। पत्नी ने सुरेश को डांटा,” अभी तो मोबाइल कवरेज के बाहर है, कहीं महेश या उससे आपका रिश्ता कवरेज के बाहर न हो जाये, मोबाइल तो कुछ देर बाद फिर भी कवरेज में आ जाता है परंतु आप ऐसे अहं में रहे तो यह रिश्ता आयेगा या नहीं कह नहीं सकते।”
डांट की गरमी से अहं पिघला, सुरेश ने फोन लगाया, घंटी जा रही थी, महेश ने फोन उठाया, वह तो इंतजार ही कर रहा था।
समाप्त
कितना अच्छा हो
प्राची की तिमाही परीक्षा थी। वैसे तो परीक्षा की तैयारी मम्मी करवाती थी लेकिन वह बीमार थी इसलिये यह जिम्मेदारी प्राची के पापा शशांक पर आ गयी।
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पापा तैयारी करवाने बैठे, प्राची ने बताया कि पापा, जो प्रश्न, खाली स्थान, सही-गलत या इनके अलावा जो भी आने वाला है उन पर निशान लगवा दिया है, वही आयेंगे।
ऐसा भी होता है शशांक को मालूम नहीं था। वह आश्चर्य से बोला,” यह कैसी परीक्षा है, परीक्षा है या मजाक, भला ऐसे कोई निशान लगवाये जाते हैं?” पत्नी जया ने कहा,” आजकल कई स्कूलों में यही हो रहा है, आप पहली बार पढ़ा रहे हैं इसलिये हैरान हैं।” शशांक सोच में पड़ गया, जया बोली कि यही सोच रहे हैं ना कि यह गलत है।
चेहरे पर गंभीरता लिये शशांक ने कहा कि कितना अच्छा हो अगर जीवन की परीक्षा में आने वाली समस्याओं, कठिनाइयों, परेशानियों, चुनौतियों आदि के सवालों पर भी हमारी टीचर (भगवान) हमें निशान लगवा दे जिससे हम उनका सामना करने की अच्छे से तैयारी कर लेंगे और कभी फेल ही नहीं होंगे।
दर्शना जैन
खंडवा मप्र