रवि प्रकाश युनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर थे।उनकी पत्नी का नाम सुरेखा था।वे भी स्थानीय कालेज में व्याख्याता के
पद पर आसीन थीं।उनकी शादी
को पन्द्रह साल हो गये थे। लेकिन
अभी भी उन्हें संतान सुख प्राप्त
नहीं हुआ था।वे दोनों काफ़ी उदास रहा करते थे।अच्छा घर,अच्छी कमाई,अच्छी शोहरत
फिर भी उनका मन अशांत रहता
था।इतने वर्षों तक तो अपने आप
को उन दोनों ने काम में व्यस्त रक्खा। लेकिन अब उन्हें घर का
सूना माहौल खलने लगा। अतः
एक बच्चा लेने का मन बनाया।
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विधिवत उन्होंने एक लड़का गोद
ले लिया।बड़े प्यार से पालने लगे।
बच्चा जब एक साल का हो गया
तो संयोग कहें या ईश्वर की कृपा
सुरेखा जी गर्भवती हो गईं।
नौ महीने बाद एक लड़का हुआ।
वे दोनों दम्पत्ति यह देख बहुत खुश हुए। उन्हें लगा दो बच्चे खुशी-खुशी पल जायेंगे।उनका
विकास भी सही ढंग से हो पायेगा। लेकिन बात उल्टी दिशा
में जाने लगी।गोद लिए बच्चे को
लगने लगा की मां नवजात शिशु
को ज्यादा प्यार करती है।वह स्वंय भी तो छोटा था किन्तु ईष्या
भाव अभी से जन्म लेने लगी थी।
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कभी वह दूसरे बच्चे का कान खींचता,कभी पैर खींचता और
रूलाने की कोशिश करता।वह किसी भी हालत में उसे बर्दाश्त
नहीं करने लगा। माता-पिता यह
देखकर दुखी रहने लगे।हर तरह
से कोशिश करते रहे कि बड़े बच्चे
के मन से यह मैल निकल जाये।
पर दिनों दिन यह गंभीर समस्या
बनती गई।खैर किसी तरह चार
साल गुजर गये। रवि बाबू और
सुरेखा ने दोनों को अलग करना ही उचित समझा। अतः उन्होंने
निर्णय लिया कि क्यों न अपने
जन्में बच्चे को दूर होस्टल में पढ़ने
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के लिए डाल दिया जाए और गोद
लिए बच्चे को अपने पास रखा जाये।जिससे उसे महसूस हो कि
सारा प्यार उसे ही मिल रहा है।
किसी तरह की हीन भावना तथा
ईष्या जैसे मनोभाव से वह ग्रसित
न हो।अन्त में उन्होंने ऐसा ही किया।अपने कोख से जन्मे बच्चे को दूर उन्होंने नैनीताल के एक
स्कूल में दाखिला दिलवा दिया।
कलेजे पर पत्थर रखकर उन्हें
यह काम करना पड़ा।गोद लिए
बच्चे को यथोचित प्यार और
निर्देशन मिले इसके लिए ऐसा
करना जरूरी था। उन्होंने अपनी
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तरफ़ से तो न्याय का रास्ता अपनाया।हो सकता है अपना बच्चा बाद में दोष दे सकता है कि बड़े भाई को तो आपने पास
रक्खा और मुझे अपने प्यार से
वंचित किया। दोनों दम्पत्ति इस
बात के लिए भी तैयार थे। परन्तु
और कोई चारा नहीं था।अतः
यह पीड़ादायक निर्णय लेना पड़ा।
स्वरचित
मंजू लता
दिल्ली