कल बैंक से पैसे निकालने गया तो देखा वहाँ भारी अफरा – तफरी मची हुई थी। अचानक पुलिस की दो तीन गाड़ियां आ गईं सभी ग्राहकों को रोक कर बैंक का शटर बंद कर दिया गया। समझ में नहीं आ रहा था माज़रा क्या है तभी गार्ड्स पर नज़र पड़ी जो करीबन 80 साल के वृद्ध को पकड़े हुए थे।
अरे इन बाबा को क्यों पकड़े हैं क्या किया इन्होंने?
इन्होंने चोरी की है कैश काउंटर से 2000 रु उठा लिए इन्होंने।
कोई चोरी करेगा और वह भी मात्र 2000 रु की इसके बाद भागने की कोशिश भी नहीं करेगा यह बात हजम नहीं हो रही थी मुझे पता नहीं क्यों उनकी शक्ल कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी।
पुलिस उनसे पूछताछ कर रही थी। वह बस एक ही बात की रट लगाए हुए थे… हाँ मैंने चोरी की है आप मुझे हवालात में डाल दीजिये।
यह बात भी अचंभित करने वाली थी बजाय अपना बचाव करने के वह जेल जाने को तैयार थे अपनी सफाई में एक शब्द भी नहीं कहा उन्होंने।देखने में वह संभ्रांत परिवार के लग रहे थे।
पुलिस उन्हें पकड़ कर ले गई।उस समय तो घर आ गया मैं पर यह बात बार बार दिमाग में सर उठा रही थी कि ऐसी कौन सी मजबूरी थी उनकी जो उन्होंने इस उम्र में यह कदम उठाया। दिमाग पर जोर डालने पर ध्यान आया कि ये तो हमारे पड़ोस में रहने वाले वर्मा जी के चाचा जी हैं।
मैं खोजी प्रवृत्ति का इंसान हूँ और यही खासियत मुझे उनके बारे में जानने के लिए जेल ले पहुंची।
जेलर के बुलाने पर वह आये पर एकदम शांत थे कोई शिकन नहीं थी उनके चेहरे पर जैसा कि मैंने सोचा था कि वह बहुत परेशान होंगे।
बाबा ..आपका चेहरा आपकी अपराधी प्रवृत्ति को नहीं दर्शाता मुझे पूरा विश्वास है कि आपने लालच के वशीभूत होकर यह कदम नहीं उठाया है फिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी जो इस उम्र में यह किया आपने।
मेरा अपराध तुम्हारे सामने है और उसकी सज़ा भुगत रहा हूँ मैं क्या यह पर्याप्त नहीं तुम्हारे लिए??
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नहीं बाबा.. इसके पार जो इंसान है मैं उससे मिलना चाहता हूँ।
किस दुनियां के वासी हो तुम बेटा जिसकी शक्ल उसकी अपनी संतान ही देखना पसंद नहीं करती तुम उसे ही कुरेदना चाहते हो.. चले जाओ मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।
जब बेटा कह ही दिया है तो अपना दर्द भी साझा कर लीजिये बाबा।
तो सुनो.. मैं रामलाल नगर निगम में एक सीधा सादा कर्मचारी था कभी रिश्वत ले कर जानी ही नहीं और चाटुकारिता मेरे स्वभाव में नहीं थी तभी मेरा कोई प्रमोशन नहीं हुआ। दूसरों के कहने पर झूठे मामलों में उनका साथ न देने के कारण उल्टे सीधे इल्जाम लगा कर नौकरी से बर्खास्त करवा दिया गया जब बेटे को लगा कि अब उनके किसी काम का नहीं हूँ मैं ..तो बोझ समझ कर उनका व्यवहार भी बदलता गया।
बहू दो रोटी के बदले उल्टा सीधा सुनाती रात दिन.. बेटा भी उसी के पक्ष में था अतः बेखौफ हो गई थी वह.. यह जिल्लत की जिंदगी कब तक झेलता इसलिए तंग आकर एक दिन घर छोड़ दिया। उनके तो मन की हो गई किसी ने खोज खबर नहीं ली मेरी जैसे इसी दिन का इंतज़ार था उन्हें।
गुस्से में आकर छोड़ तो दिया घर पर आगे का जीवन उससे भी अधिक मुश्किल था अब पेट भरना भी दुश्वार था न सर पर छत न पेट में अन्न का दाना। काम करने की ताकत नहीं शरीर में और मांगकर खाना उसूलों के खिलाफ था अब तुम सही कहो या गलत.. यही एक हल सूझा अपनी समस्या का । मुझे इस बात की जानकारी थी कि जेल में खाना भी मिलता है और बीमार होने पर इलाज़ भी.. कैसी भी सही सर पर छत भी है इसीलिए यह रास्ता अपनाया मैंने।
यह बहुत गलत किया आपने अगर सब ऐसा सोचने लगे तो अपराधों को बढ़ावा मिलेगा और सामाजिक व्यवस्थाएं तहस नहस हो जायेंगी।
किस समाज की बात कर रहे हैं आप जहाँ एक बूढ़े को उसकी औलाद दो रोटी देने में रुला ले.. वह उसके दर्द और मजबूरी को क्या और क्यों समझेगा.. वह औलाद जो उसके मरने का रास्ता देखे.. मैं क्यों सोचूँ उनके बारे में.. यह कदम खुशी से उठाया नहीं मजबूर किया गया है मुझे इसके लिए .. जब पेट की आग चैन न लेने दे तो इंसान भले बुरे का ज्ञान भूल जाता है।
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स्वावलंबी – अनामिका मिश्रा
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ होकर गलत और सही की परिभाषा समझने की कोशिश कर रहा था अगर बच्चों ने उनका तिरस्कार न किया होता तो उनकी ऐसी विडंबना नहीं होती एक सम्मानित नागरिक यह जीवन जीने पर विवश न होता।
दोषी कौन है.. संतान.. उनको जन्म देने वाला पिता.. या वे परिस्थितियाँ…या आज के जमाने की प्रेक्टिकल सोच… या दो रोटी की जुगाड़ में भागती जिंदगी जिसमें बच्चों को प्यार और अच्छे संस्कार देने का समय ही नहीं है लोगों के पास।
जब तक भावनात्मक लगाव नहीं होगा रिश्तों में ऐसे मामले बढ़ते रहेंगे जरूरत है बच्चों की परवरिश पर ध्यान देने की उन्हें समय देने की।
दोस्तों आपकी क्या राय है अवश्य बताएं।
#5वां_ जन्मोत्सव
चतुर्थ कहानी
स्वरचित एवं अप्रकाशित
कमलेश राणा
ग्वालियर