बचपन में गर्मी की छुट्टियाँ में लगभग हर वर्ष ही नानी के घर जाना होता। हमारी मामी जी मोहल्ले की स्थानीय कीर्तन मंडली की सदस्या थीं। हर दो तीन बाद वहाँ किसी न किसी के घर या मंदिर में कीर्तन का प्रोग्राम होता। मामी जी तो जातीं ही थी कभी-कभी वो हमें और मम्मी को भी साथ ले जातीं।
वहाँ उनकी सभी सहेलियां होती थीं जो वहीं उसी मोहल्ले में रहतीं थीं और अक्सर एक दूसरे के घर भी आती जाती रहती थीं। उनमें से एक थीं एक आंटी जो अक्सर मामी के पास आतीं थी उनसे और हम सबसे अच्छी तरह बातें हंसी मजाक करती, अच्छा मिलनसार स्वभाव था उनका लेकिन हमें आश्चर्य होता कि कीर्तन में शुरू शुरू में तो वो सामान्य रहतीं लेकिन कीर्तन के दौरान बीच में उनका स्वरूप बदलने लगता। अचानक किसी भजन के दौरान पहले बैठे बैठे ही वो अपना सिर चारों तरफ गोल गोल घुमाने लगतीं ऐसा करने से उनका क्लिप छिटक के दूर जा पड़ता, बाल खुल जाते लहराने लगते फिर वो तेजी से अपना सिर घुमाते घुमाते अचानक उठ के खड़ी हो जाती और विक्षिप्त सी अवस्था में नाचते हुए तेजी से गोल गोल चक्कर लगातीं कभी अपने हाथ ऊपर करके अजीब सी मुद्रा में कुछ न कुछ गातीं बड़बड़बाती।
सभी फिर कीर्तन रोक कर हाथ जोडकर “जय मैय्या” “जय देवी माँ” के जयकारे लगाना शुरू हो जाते। बहुत देर बहुत तेज गति से चक्कर लगाने नाचने के बाद वो अचानक जैसे अचेत सी होकर धरती पर गिर जातीं।
फिर उन पर पानी के छींटे डालकर उन्हें उठाया जाता, पानी पिलाते और सब उनकी जय-जयकार करते हुए हाथ जोड़कर उनको घेर के बैठ जाते। सभी उनके चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेते साथ ही कोई अपनी दुखो तकलीफों के निवारण का भी उपाय पूछते। वो भी देवी माँ की मुद्रा में अपने एक हाथ को उठाकर उन्हें जो भी बताती वो बहुत ही श्रद्धा से उनके वचनों को सुन अभिभूत होते।
हमें यह समझ नहीं आता कि अभी तो यह सब सभी से मित्रवत आत्मीयता से बात कर रही थी अब अचानक सब उनकी पूजा करने लगे। हमने मम्मी से भी इसका कारण जानना चाहा तो उन्होंने संक्षिप्त में बस इतना ही कहा कि कीर्तन में भावावेश में उन पर देवी आ जाती हैं। हमारी बाल बुद्धि ज्यादा कुछ समझ नहीं पाई और मम्मी ने भी हमसे इस विषय में ज्यादा बात करने कोई रूचि नहीं दिखाई। बात आई गई हो गई।
उन्ही आंटी का बेटा किशोर आंठवीं कक्षा में जिस स्कूल में पढ़ता था वहीं मोहल्ले के ज्यादातर सभी बच्चे पढ़ते थे। सब एक दूसरे के परिवारों से भी परिचित थे इसलिए किशोर की माँ की “देवी आने” का समाचार स्कूल तक भी पहुंच गया था। उसके साथ के लड़के कभी मजाक, कभी कटाक्ष, कभी व्यंग्य से उसे ताना उलाहना देते कि इससे पंगा मत लेना यह तो “देवी” का बेटा है क्या पता वो हमारा क्या हश्र करे। कभी कहते “तुझे तो होमवर्क नहीं करना पड़ता होगा तेरी माँ तो हाथ फिरा देती होगी और अपने आप सब लिख जाता होगा।” कभी कहते “तुझे इम्तिहान की क्या चिंता, तू तो वैसे ही पास हो जाएगा।” वे उसे अपने साथ ग्रुप में भी शामिल नहीं करते।
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किशोर इन सब घटनाओं से बहुत दुखी और विक्षिप्त सा रहने लगा। इस उम्र में बच्चे वैसे ही बहुत संवेदन शील होतें हैं फिर यहाँ तो बात उसकी माँ की थी। वो यह बात अपनी माँ से भी शेयर नहीं करता कि उन्हें दुख न हो और स्कूल में भी सबका मुकाबला नहीं कर पाता था। बस अंदर अंदर घुटता रहता।
यद्यपि उसे इस संदर्भ में उचित अनुचित, सच झूठ का का ज्यादा ज्ञान नही था फिर भी उसका मन अपनी माँ का यह रूप एक “प्रवंचना ढोंग” मानना स्वीकार नहीं कर पाता था जैसा कि सब बच्चे उसे कहते।
एक बार जब फिर से सभी लड़को ने उसे चिढ़ाना सताना शुरू किया तो उसका दबा हुआ क्रोध फट पडा उसने कहा कि
“हाँ है मेरी माँ देवी उन पर देवी माँ की असीम अनुकम्पा है इसलिए उनको यह दिव्य शक्ति प्राप्त है। मैं तो उन्हें देवी मानता हूँ अगर अब किसी ने उनके बारे में कुछ कहा तो मै प्रिंसिपल से शिकायत कर दूँगा।”
बच्चे यह सुन भड़क गए कि यह हमें धमकी दे रहा है। एक तो किशोरावस्था का गरम खून, उस पर उन सबका संगठन, फिर किशोर की धमकी ने उनकी उग्रता उद्दंडता को ज्वलित कर दिया। सबने आपस में इशारों में ही प्लान बनाकर किशोर को उकसाते हुए कहा कि “चल हम मान जाएँगे कि तेरी माँ देवी है तू प्रूव कर। तू स्कूल की छत से जाकर छलाँग मार ले तुझे क्या चिंता !!!! तेरी माँ की दिव्य शक्तियां तुझे बचा ही लेंगी, जा प्रूव करके दिखा।”
किशोर उस समय कुछ सोच पाने की मनोस्थति में नहीं था न ही उसे सबके सामने “अपनी हार” और “माँ का अपमान” स्वीकार था। वो उसी क्षण स्कूल की छत पर पहुँच गया और बिना एक भी पल सोचे समझे वहाँ से कूद कर अपनी जान गँवा दी।
माँ का मान जो रखना था
5वां_जन्मोत्सव
पूनम अरोड़ा