शादी के बाद जब भी मायके जाती मम्मी, पापा, भाई सभी लोग स्टेशन पे लेने आते, हुड़क के गले लगते। घर पर मेरे मनपसन्द व्यंजन बने होते, सब चाव से खातिरदारी में जुटे रहते। शाम को चाय के समय कभी पापा बाजा़र से खस्ता, कभी समोसे ले आते तो कभी मम्मी पकौडे़ तल लेती। रात को छत पर नीचे बिछावन लगाकर सब एक साथ लेटते, दुनिया भर की किस्से कहानियाँ कहते सुनते, सोते-सोते आधी रात हो जाती।
जब ये मुझे लेने आते खुश होने की जगह सब उदास हो जाते। जब तक वहाँ रहती, एक उत्सव सा माहौल रहता। विदाई के वक्त मम्मी पता नहीं कहाँ कहाँ से पहले से मेरे लिये बना कर रक्खी चीजें निकाल कर ले आती और मेरे बैग में भरती जातीं। कई तरह के पापड़, बडि़याँ, अचार, देशी चने, दाल, मेवे डाल कर बनाये आटे और बेसन के लड्डू और भी बहुत कुछ। मुझे लेने आए मेरे पति को यह सब पसन्द नहीं आता, वे कहते ये सब बाजा़र में मिल जाता है तो क्यों ढो कर ले जाती हो, मम्मी भी बेकार में इतनी मेहनत करती हैं। मैं मम्मी पापा के दिये विदाई के रूपये इन्हे दे देती और मम्मी की दी “प्राइसलेैेस” सौगातों को अपने बैग में सँभाल लेती जिनमें मम्मी के हाथों का स्पर्श और “मायके की महक” रची बसी होती थी।
समय बदला, अब भाई एक नामी कम्पनी में ऑफिसर है, पुराना घर छोड़ के सब भाई के बनाये नये घर में शिफ्ट हो गये हैं, घर पर भाभी का वर्चस्व है।
अबकी रक्षाबन्धन पर जाना हुआ तो स्टेशन पर लेने भाई का ड्राइवर आया हुआ था, घर पर सबने आने की खुशी “हैप्पी टू सी यू” कह के जाहिर की। डायनिंग टेबल कुक द्वारा बनाये तरह तरह की डिशेज़ से सजी थी। चाय पर बर्गर, पैटी और पेस्ट्रीज़ थीं। पति तो इस आवभगत से खुश थे लेकिन मैं इस औपचारिकतापूर्ण मेहमाननवाजी़ से स्वयं को जोड़ नहीं पा रही थी। हमें रात में अतिथि कक्ष में ठहराया गया, किसी से भी दिल की बातें कह सुन नहीं सकी। अतिथियों की तरह मान सम्मान और विलासिता के तो सब साधन उपलब्ध थे किन्तु “घर” की खुशबू कहीं खो गई थी ।
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मम्मी पापा भी वृद्ध थे, एक कमरे में पड़े रहते। मैं कुछ देर उनके पास जाकर बैठी तो दिल हुलस आया। उनके साथ कुछ देर बात करके “घर” की सुगन्ध की अनुभूति हुई। सम्वेगों, सम्वेदनाओं का आदान प्रदान हुआ, दिल का खालीपन उन दोनों के ममतामय स्पर्श और भावनाओं के अतिरेक से भर गया।
चलने लगी तो तकिये के नीचे से मुड़ा तुड़ा “पाँच सौ” का नोट पकड़ा के रो पडी़ं कि मैं तेरे लिये कुछ नहीं बना सकती, बस ये ही रख ले।
भाभी ने विदाई के समय मिठाई, कपडे़, फल और चॉकलेट के गिफ्ट “सामाजिकता” और “औपचारिकता” के गिफ्ट रैप में पैक करके दिये जो मैनें इन्हे सौंप दिये और मम्मी के “प्राईसलैेस” नोट को अपने पास पर्स में रख लिया जिसमें मम्मी के हाथों का स्पर्श और “मायके की महक” अभी भी साँसें ले रही थी।
#पांचवां_जन्मोत्सव
पूनम अरोड़ा
(V)
Ye ek dum sach h
Ab to koi gift kya ek tm formerly m pira hua kha hi mil
Jaye BS bahut jano
बहुत सटीक एवं भावपूर्ण कहानी।
समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है। फ्लैट में धूप ही नहीं आती । कहाँ सुखायें। माँ पापा की दी हुई पाई भी बहुत कीमती होती है बेटियों के लिए। इसे कोई नही समझ सकता