खुशी की चाह – गरिमा जैन

जब भी राधिका की बात अपनी सहेली मालती से होती तो उसका दिल मचल मचल उठता। मालती कितनी खुश थी। ना जाने किन चक्र में पड़कर राधिका ने शहर में शादी कर ली। बचपन से तो उसका सपना यही था कि वह गांव में रहे। क्यों उसने इतनी बड़ी गलती की?

 उसकी सहेली मालती कितनी समझदार निकली ।उसकी शादी गांव में हुई ,वह कितनी खुश है वहां । वहां की ताजा हवा में वह कितनी ताजी-ताजी दिखती है ना वह कभी बीमार पड़ती है ना उसे डिप्रेशन जैसा कोई रोग सताता है ।यहां शहर में तो सिर्फ भीड़ भाड़ ,प्रदूषण के बीच में जिंदगी फस कर रह गई है ।हर रोज एक नई परेशानी ।नौकरी छूट जाने का डर तो रोज ही सताता रहता है।  भागदौड़ भरी जिंदगी। एक पल भी बैठने को समय नहीं मिलता।

वही गांव की जिंदगी कितनी अच्छी है कितनी फुर्सत है। वहां  खेत से जब हरी हरी सब्जियां टूट कर आती  है तो उसका स्वाद कितना अच्छा होता है। जब भी राधिका को यह सब बातें मालती बताती राधिका जैसे मन ही मन उससे  जल जाती थी ।वह सोचती काश ऐसा होता कि उनकी जिंदगी बदल जाती काशी मालती की जगह वह गांव में वह रहती होती तो उसकी जिंदगी कितनी अच्छी होती । एक दिन जैसे राधिका की बात भगवान ने सुन ली। जब उसकी नींद खुली तो उसने अपने आपको गांव के एक छोटे से कमरे में पाया। मिट्टी की जमीन ,मिट्टी की दीवारें ,छोटी सी चारपाई  थी।  राधिका  बहुत खुश हुई ।आज उसका सपना पूरा हो गया ।वह गांव में आ गई थी अपनी सहेली मालती की जगह । यही तो वह चाहती थी। खुशी-खुशी वह जमीन पर उतरी लेकिन जमीन पर उसकी वह मखमली चप्पल तो थी ही नहीं जो वह हर रोज पहनती थी ।जमीन भी कितनी उबड़ खाबड़ थी। किसी तरह वह फ्रेश होने के लिए जब बाथरूम में गई तो बाथरूम के नाम पर  खुला हुआ कमरा था जिसमें सिर्फ 1 टीन का दरवाजा था। उसे देखकर तो राधिका बिल्कुल हक्कीबक्की रह गई। इस तरह से खुले में ! वह  असमंजस में बैठी रही वह समझ नहीं पा रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए ।



तभी उसे पीछे से आहट हुई ।”भाभी आज खाना नहीं बनाना है क्या ?भैया खेत पर जा रहे हैं उन्हें देर नहीं हो जाएगी” राधिका जल्दी से चौकी में गयी ।पर यहां उसका सुसज्जित चौका नही था। ना चमकती हुई उसकी मार्बल की रेक थी ना करीने से लगे हुए बर्तन। सब कुछ ऐसे ही जमीन पर पड़ा था। वहीं बैठ कर उसने खाना बनाया।आटा घूथा और चूल्हे में आग लगाई।जिसे उसने बच्चों का खेल समझ रखा था वह बहुत कठिन कार्य था ।किसी तरह चार रोटी बनी।

तभी उसकी देवरानी की आवाज आई “भाभी जल्दी करो पानी लेने भी तो जाना है ” पानी यहाँ पानी नहीं आता ! कैसे कपड़े धुलेंगे !वाशिंग मशीन कहां थी! हाथ में बड़ा सा घड़ा लिए राधिका वहीं खड़ी थी। पनघट पर लंबी लाइन थी ।सारी औरतें आपस में हंस बोल रही थी और इतनी कड़ी धूप में कुए से  पानी निकाल रही थीं।अब राधिका की बारी थी ।थोड़ी दूरी रस्सी खींचने पर उसके हाथ पर लगा जैसे छाले पड़ जाएंगे। किसी तरह उसने पानी निकाल कर घड़े में डाला ।इतनी तेज धूप में घर आते आते उसे जैसे चक्कर आने लगे। घर पर खाने को भी कुछ भी नहीं था ।वह अपने वह खाने के डिब्बे ढूंढ रही थी जिसने बिस्किट, पापड़ ,तरह-तरह की कुकीज भर के रख दी थी लेकिन यहां यहां तो कुछ भी नहीं था ।

थोड़े से ताजे फल जरूर थे।जैसे ही राधिका सुस्ता रही  थी तभी उसकी देवरानी आ गई ।

“भाभी सब्जी आ गयी है।आओ मिलकर छांट ले रात होने से पहले खाना भी तो बनाना है। उसकी देवरानी हंसी मजाक कर रही थी ।पर राधिका यहां भी खुश नही थी। उसे याद आ रही थी अपने घर की ।

उसके मन में एक ही सवाल उठा था कि आखिर असली खुशी कहां है! कौन खुश है कौन नही!इसका जवाब उसके पास नहीं था ।सब्जी धोते-धोते उसके आंख लग गयी। आंख खुली तो देखा तो वह अपने कमरे में सो रही थी। उसकी मां का फोन था ।मां का फोन उठाया ।बहुत देर हो चुकी थी आज ऑफिस नहीं गई थी । पर क्या हुआ अगर एक दिन आफिस देर से जाएगी तो ,अगर अपनी खुशी के लिए वह 1 दिन आराम कर लेगी तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा !



अपनी खुशी ढूंढनी पड़ती है जैसे  हमें भूख लगी हो तो खाना बनाना होता है या फिर ऑर्डर देकर मंगाना होता है ,प्यास लगने पर पानी पीना होता है  इसी तरह खुश रहने के लिए  भी कोशिश करनी पड़ती है ।अगर खुशी रूठ के हमसे कहीं दूर चली गई है तो हमें उसे मना कर हमारे पास लाना होता है। वह न गांव में बसती है ना शहर में , ना मंदिर में ना मस्जिद में,ना गुरुद्वारे में न चर्च में , ना समंदर में ना रेगिस्तान में ।वह तो बस्ती है हमारे मन के छोटे से कोने में ।अगर हम उस खुशी को प्यार से बुलाएंगे तो वह फिर से हमारी जिंदगी में जरूर आएगी।

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