कोई नहीं था पास मेरे ना रिश्ता,ना कोई फ़रिश्ता जो मुझें इस मझधार से निकाले।लोग मुझे राजन कहते है,पर राजा जैसा कुछ भी नहीं था,रोज सुबह उठ बाथरूम जानें के लिए लाईन में लगना,फिर पानी के लिए,बस के लिए,नौकरी पाने के लिए,सब जगह बस पंक्ति ही थी,मानो जिंदगी जलती थी।जल्द ही अनाथ हो गया था इसलिए पढ़ाई भी दसवीं तक ही की छोटा-मोटा काम कर गुजरा चल रहा था पर संतुष्टि नहीं थी।मैं कुछ करना चाहता था इसलिए नौकरी ढूँढने के लिए रोज़ जाता था ।
बस स्टैंड पे खड़ा होके देखता रहता था,एक लड़की रोज कार से उतर फुटपाथ पे बैठें लोगों को ख़ाना दे चली जाती थी,मैं यहीं सोचता की इनकी क़िस्मत अच्छी है,बिना कुछ किए ही खाना मिल जाता है और एक हम है जो रोटी के लिए ना जाने क्या-क्या पापड़ बेलते है।ये सिलसिला बहुत दिनों तक चलता रहा फिर,एक दिन जाकर मैंने उससे पूछ लिया मैम मैं आपको काफ़ी दिन से देख रहा हूँ आप आती है और ख़ाना दे चली जाती है ऐसा क्यों?
वो मुझ पे चिल्लाई तुम कौन होते हो मुझसें ये सब पूछने वाले,मैंने उन्हें शांत किया मैम मैं तो सिर्फ़ ये जानना चाहता था कि आपके दिल में ग़रीबो के लिए इतनी हमदर्दी है तो थोड़ी मेरी मदद भी कर दीजिए मुझे एक अच्छा काम दिला दीजिए ….उस पल वो चुप-चाप वहाँ से चली गई फिर मैं भी सब भूल गया।
लेकिन एक महीने बाद वो मुझे बस स्टैंड पर दिखीं और बोली काफी दिन बाद दिखे,लगता है कुछ ज़्यादा ही मशरूफ थें । राजन-“हा हा क्यों नहीं,टाटा-बिरला अपनी सारी सलाह मुझसे ही तो लेते है “….. थोड़ी देर तक वो मुस्कुराई और बोली काम करोगे,ये सुन आँखों में खुशी की चमक दौड़ गयी,हाँ जरूर करूँगा।उसने कहा मेरा नाम सुमन है मैं एक एन.जी.ओ.के लिये काम करती हूँ,तुम्हें भी वही काम करना होगा और दस हजार वेतन मिलेगा दसवीं पढ़े को इतना मिल जाए तो जन्नत सा महसूस होने लगता है,फिर क्या अंग्रेज़ी का ज्यादा ज्ञान तो नहीं था,पर फिर भी कभी-कभी छक्का मार ही लेते थे मैंने कहा-ओके थेंक्स…..
अगले दिन सुबह जल्दी उठ तैयार हो आश्रम के लिये निकल गया वहाँ जा कर सब से मिला और काम की जानकारी ली धीरें-धीरें मैं अपने काम में निपुण हो गया और सुमन के नजदीक हो गया ।आश्रम में रहने वालों का ख़्याल रखना उनसें बाते करना सब अच्छा लगने लगा मानो जीवन का ख़ालीपन भरने लगा था।ऐसे ही दिन बीतते चले गये मुझे अपने काम में मज़ा आने लगा और जो सुकून मैं चाहता था वो मिल गया।
सुमन मुझें अच्छी लगने लगी थी,एक दिन हिम्मत कर मैंने अपने दिल की बात उसे बोल ही दी,पहले तो वो चौंक गई और बोली क्या कहा-तुमने “प्यार”फिर हँसने लगी होता है,होता है उम्र के इस पड़ाव पे सब को महसूस होता है पर हक़ीक़त में प्यार क्या है ये कोई नहीं जानता।ऐसा कह मेरा सिर पे हाथ फेर वो चली गई …काफ़ी दिन बीत गए वो एहसास कम नहीं हुआ बल्कि ज्यादा बढ़ गया।कुछ दिनों बाद मैंने सुमन से कहा-माना मैं तुमसे उम्र में छोटा हूँ,ग़रीब हूँ,कम पढ़ा-लिखा हूँ,तुम्हारे स्टेट्स के मुताबिक़ नहीं हूँ,पर मैं तुम्हें खुश रखूगा।राजन के ज्यादा इसरार करने पर सुमन ने बताया कि ये सब बाते मायने नहीं रखती … मैं तुम्हारे लिए उचित नहीं हूँ मुझे एड्स है कितना जी पाऊँगी पता नहीं,क्यों अपना जीवन बर्बाद कर रहें हो आगे पढ़ो और उन्नति करों,यह सुन मैं बोला-हाँ ये शब्द सुना तो है पर ये है क्या होता है ये नहीं पता,ये सुन सुमन बोली तो पता कर के आओ और फिर बोलो …
घर जाते वक्त यही बेचैनी थी कि एड्स के बारे में कैसे पता करूँ यही सोचतें-सोचतें याद आया कि मेरे पास तो फोन है उसी पर चैक करता हूँ सारी रात बीत गई एड्स के बारे में पढ़ते हुए और सुमन का सोचतें हुए,जान के बुरा तो लगा पर प्यार का एहसास कम नहीं हुआ।अगले दिन सुबह आश्रम जा कर मैंने सुमन से वहीं सब कहा जो पहले कहा था सुमन ने पूछा तुमने पता किया एड्स के बारे में,मैंने कहा-हाँ सब जान गया हूँ लेकिन मेरा प्यार वहीं है टस से मस नहीं हुआ मैंने तो फैसला कर लिया है अब तुम्हारी बारी है….सुमन बिना जवाब दिए चली गई।
काफ़ी दिनों तक ऐसा चलता रहा सुमन मुस्कुरा के आँखे झुकाके चली जाती,पर आज मैं बात करके छोड़ूँगा यही सोच मैं सुमन के कैबिन की तरफ़ बढ़ा,तभी आवाज़ आयी मैम को कुछ हो गया है,मैं दौड़ के गया और नवज़ देखी तो जान आयी उसे उठ्ठा के अस्पताल भागे,वहाँ जाकर कुछ देर में वो ठीक हो गयी,डॉक्टर ने बोला तुम्हें अपना ख्याल रखना चाहिए अकेले नहीं रहना चाहिए ये सुन! मैं बोल पड़ा अब से अकेली नहीं रहेगी मैं ख्याल रखूँगा।ये देख सुमन की आँखें नम हो गई ,मैं सुमन को ले उसके घर आया,कहने को उसके सब थे,पर इस बीमारी के चलते रिश्तों से कंगाल हो गयीं थी।थोड़ी देर बाद उसने कहा-तुम जा सकते हो रात हो गयी है,मैंने कहा मैं यही रहूँगा अब तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूँगा,सुमन बोली लेकिन मैं तो ….मैंने उसके होठों पे उँगली रखी और कहा-अब इस बारे में कोई बात नहीं होगी कि यें क्यों हुआ?किसकी गलती थी? मुझे इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता,ज़िंदगी भर तो कोई नहीं रहता और अकेले रह कर हम देख चुके है तो अब हमकदम बनके चलते है चाहें कुछ दूर ही और एड्स छूने,से साथ रहने,खाने-पीने से नहीं होता इतना तो मैं जान ही गया हूँ , “सो डोंट वरी बी हैप्पी”सुमन मुस्कुरा के बोली आज भी छक्का मार ही दिया …..
जो दूसरों के लिए
जीते है
ऐसे कम ही
मिलते है
जो अपनेपन की
चाह में
खुद को भूल
हर गम को समेट
ख़ुशियाँ
बिखेर देते है।।
#एक_रिश्ता
स्वरचित रचना
स्नेह ज्योति
नई दिल्ली