तो हम क्या कर सकते हैं। हमलोग भी इंसान हैं, भगवान नहीं। पैसे नहीं हैं तो सरकारी अस्पताल में जाइए…अमरनाथ हॉस्पिटल के मालिक डॉक्टर अमर मरीज के तीमारदारों पर चिल्ला रहे थे।
डॉक्टर साहब…सरकारी अस्पताल बहुत दूर है। कुछ कीजिए डॉक्टर साहब। मेरे बेटे का बहुत खून बह गया है। मर जाएगा मेरा बेटा… एक मजदूर सा दिखने वाला पिता डॉक्टर अमर के आगे हाथ जोड़े खड़ा था।
कहा न एक बार यहां कुछ नहीं हो सकता, निकालो इन्हें यहां से। कहां कहां से चले आते हैं बोलते हुए डॉक्टर अमर वहां से निकल गए।
क्या बात है..आज तुम्हारा मूड ऑफ लग रहा है अमर…डॉक्टर अमर की पत्नी सनाया डिनर सर्व करती हुई सोच में डूबे अमर से पूछती है।
इतनी मेहनत से ये हॉस्पिटल बनाया है, कोई चैरिटी संस्था नहीं खोली है मैंने। कितने पापड़ बेलने पड़े हैं..अमर उत्तेजित होकर बोलता है।
क्या हुआ..हॉस्पिटल में कुछ हुआ है क्या…सनाया के हाथ सर्व करते करते रूक गए।
अरे क्या कहे यार..एक एक्सीडेंटल केस था, मजदूर का बेटा था शायद। जेब में पैसे नहीं होते और मुंह उठाए चले आते हैं… चम्मच हाथ में लेते हुए अमर ने कहा।
अब कैसा है बच्चा…ठीक तो है ना पापा..दोनों की बात सुनते सुनते उनका बेटा गौतम बीच में पूछ बैठता है।
मुझे क्या पता… सरकारी अस्पताल में ले जाने के लिए कह मैं तो चला आया…अमर कंधे उचकाते हुए कहता है।
क्या पापा आपने ऐसा कैसे किया, ये तो संवेदनहीन काम हुआ…मां कुछ बोलो ना… बारहवीं में पढ़ने वाला गौतम छटपटा उठा।
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खाना खत्म करो और कमरे में जाओ और पढ़ो। तुम्हें भी डॉक्टर ही बनना है और यह अस्पताल और नया अस्पताल दोनों तुम्हें ही संभालना है…अमर बेरुखी से गौतम से कहता है।
गौतम अमर की डांट सुन किसी तरह थोड़ा बहुत खा कर अपने कमरे में चला गया।
क्या तुम भी ना अमर…जानते हो ना कि गौतम कितना भावुक है और इतना कमाते हो तुम। किसी गरीब का इलाज अगर तुम्हारे अस्पताल में हो जाएगा ना अमर तो कुछ नहीं घटने वाला है। तुमने बहुत ही गैर जिम्मेदाराना हरकत की है अमर…सनाया गौतम के जाते ही कहती है।
ओह प्लीज बंद करो भाषण… कुर्सी धकेल उठता हुआ अमर कहता है।
मां ये देखो कितने सुंदर गेंदा खिले हैं…गौतम लॉन में क्यारियों में पानी देता हुआ खुशी से चिल्ला कर सनाया से कहता है।
वाह बेटा…आखिर तुम्हारी मेहनत रंग लाई..सनाया फूलों को देख खुश होकर कहती है।
हां मां…आखिर इनमें भी जिन्दगी होती है और बचाना हमारा फर्ज है…है ना मां…गौतम फूलों को सहलाता कहता है।
बिल्कुल मेरे बच्चे..किसी की जिंदगी बचाना बहुत बड़ी नेमत है…सनाया कहती है।
पापा ऐसा क्यूं नहीं सोचते…गौतम अन्य पौधों में पानी देता पूछता है।
छोड़ो बेटा..एक निश्वास छोड़ती सनाया कहती है।
ये कौन सा पौधा है बेटा..वहां रखे एक छोटे से पौधे को देख सनाया पूछती है।
गुलाब है मम्मा..आज हमारे परिवार में इस सदस्य की बढ़ोतरी हुई…गुलाब के पौधे की ओर देख गौतम मुस्कुरा कर कहता है।’
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ठीक है बेटा…मुबारक हो.. बोल सनाया लॉन से कमरे की ओर बढ़ गई।
ये क्या हो रहा है गौतम… पढ़ाई छोड़ दिनभर यही करते रहते हो…गौतम को पौधों में घिरा देख अमर हॉस्पिटल से आते ही गुस्सा होने लगा।
वो पापा इन पौधों में कीड़े लग गए थे। अगर देखभाल न की जाए तो सूख जाएंगे.. इसीलिए…गौतम पापा को गुस्से में देख कहता है।
अभी के अभी कमरे में जाओ…नीचे रखे गुलाब के पौधे को पैरों से मसलते अमर वहां से चला गया।
गौतम उन पौधों को बेबसी से देखता सिर झुकाए अपने कमरे में चला गया।
हद्द कर देते हो तुम अमर। क्यूं पड़े हो गौतम के पीछे। कितना संवेदनशील बच्चा है वो और तुम हो कि हमेशा हर्ट करते रहते हो उसे…कहती सनाया गौतम को डिनर के लिए बुलाने उसके कमरे में जाती है और चीख कर बेहोश हो गई।
अमर दौड़ कर गया तो गौतम पंखे से लटका मिला।
डॉक्टर साहब ने अपना नया हॉस्पिटल “जिन्दगी” गरीबों को समर्पित कर समाज में एक उदाहरण पेश किया है, बहुत ही नेक काम किया है…शहर के हर न्यूज चैनल पर अमर का गुणगान किया जा रहा था।
अब इस हॉस्पिटल का नाम “जिंदगी” रख कर क्या करोगे अमर। जिंदगी से प्यार करने वाले मेरे बेटे से तो तुम कभी प्यार नहीं कर सके। अपनी वहशी हरकतों से तुमने मेरे गौतम की जिंदगी छीन ली…ये भी बताओ इन चैनल वालों को अमर…तुम्हारी महत्वाकांक्षा लील गई उसकी जिंदगी.. सूनी सूनी आंखों से टेलीविजन की ओर ताकती सनाया कहती है।
मुझे माफ कर दो सनाया…माफ कर दो…घुटनों के बल वही बैठ सनाया का हाथ अपने हाथ में लेकर अमर रोते हुए कहता है।
नहीं डॉक्टर अमर नहीं…मैं अपने दर्द में, अपने बच्चे के दर्द में तुम्हें कभी शामिल नहीं कर सकती। अपने बच्चे की जिंदगी तो नही बचा सकी। लेकिन उसकी मौत तुम्हें नहीं बेचूंगी… खुद की जिंदगी से हार वो तुम्हें जिंदगी का मतलब समझा गया…अमर का हाथ झटकती नफरत से उठ सनाया वहां से चली गई।
#ज़िंदगी
आरती झा आद्या
दिल्ली