ढाई आखर प्रेम का..!'(प्रथम भाग) – डॉ.कुमार अनुभव

…पिछले साल वैलेंटाइन सप्ताह में कच्ची उम्र के किशोर-किशोरियों से लेकर अस्सी उम्र के बुजुर्ग दंपतियों को प्रेम के ढाई आखर शब्द को बुदबुदाते हुए मैंने भी विचार किया कि अगले साल किसी को दिल देकर देखा जाये।असल में मेरी त्वचा से मेरी उम्र का पता ही नहीं चलता!लेकिन इन सफेद बालों का क्या करूँ जो खतरनाक खलनायक की तरह हमेशा खतरा ही खड़ा करते रहता है।लेकिन,मैंने अटल निर्णय ले लिया था कि अगले साल मेरी प्रेमवीणा के तार झनझनाएँगे जरूर,और मैं वैलेंटाइन सप्ताह के हर दिन को एक समर्पित प्रेमी की भाँति भरपूर जीना चाहूँगा।

…ख़ैर नया साल आया,और धीरे-धीरे कामदेव ने मृदुल वसंत की ओर अपने कदमों को बढ़ाना शुरु किया।मैं इस बार पूरी तरह से तैयार बैठा था कि किसी लड़की को ही अपना प्रेमोपहार दूँगा।मैंने पहले ही कह रखा है कि मेरी त्वचा से मेरी उम्र का पता ही नहीं चलता।भले ही उम्र पचपन की हो जनाब…दिल अभी भी बचपन का ही है!और इस दिल में क्या रक्खा है… उसका ही नाम छुपा रक्खा है… जिसकी तलाश में ऋतुपति वसंत के आगमन के साथ ही अपने 48 साल के इवरग्रीन बैचलर

मित्र के बताए गये दिशा निर्देशों पर अमल करते हुए सामने के पार्क में सुबह-सुबह समय से पहले ही अपादमस्तक महंगे गरम कपड़ों से खुद को ढँककर पहुँच गया।पार्क पहुँचते ही मूड ऑफ हो गया जब गार्ड ने अपना अनमोल सुझाव देते हुए कहा-“बाबा,इतनी सुबह पार्क मत आईए…ठंड लग जाएगी,फालिस  मार देगा!”मन तो किया कि उसकी बिन माँगी राय पर उसकी क्लास लूँ,पर अपनी प्रेमिका की तलाश में मैंने उसकी क्लास नहीं ली।

…पार्क में सचमुच वसंत आ गया था।फूलों से अधिक आकर्षक थीं युवतियाँ और मेरी तरह हालात की मारी हुई शादी-शुदा औरतें भी थीं।नज़र जिधर-जिधर जाए उधर बस वही नज़र आए,जिससे नज़र चिपक जाना चाहती थी।चार-पाँच राउण्ड पार्क भ्रमण के क्रम में साँस फूलने लगी,तो एक बेंच पर आकर बैठ गया।मेरे सामने पूरब दिशा से उगता हुआ सूरज ऐसे मुस्कुराते हुए खड़ा हो गया जैसे कि मेरा मज़ाक उड़ा रहा हो!सच में उसकी मुस्कुराहट पर मुझे गुस्सा आ गया,और मैंने मन-ही-मन कहा-“जल रहे हो न मुझे देखकर!जलो!जलो!बेशक जलो!…लेकिन देखना इस बार मैं अपनी प्रेमिका को यहीं से ढूँढ कर इज़हार-ए-मुहब्बत करूँगा।तुम देखते रहो!इस वैलेंटाइन सप्ताह को मैं अपने हाथों से यूँ ही नहीं जाने नहीं दूँगा।”‘

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…ख़ैर मैंने तनिक भी बुरा नहीं माना।मैं अपनी तलाश में लग गया।अचानक ही मेरी निगाहें  घास पर योग कर रही एक अत्यंत ही आकर्षक महिला पर गई। मेरी उम्र और उसकी उम्र में लगभग आधे का अंतर होगा,लेकिन प्रेम तो उम्र के बंधन से मुक्त होता है,सो मैं उसके सामने जाकर ही उसके जैसे ही योग करने लगा।हालांकि ‘योगश्चित्तवृत्ति निरोध:’ के विपरीत मेरे द्वारा योग किया जा रहा था तो उसके अनुरूप ही फल की प्राप्ति भी होती!

…जैसे ही उस महिला ने अपनी आँखें खोलीं,उसके सामने मैं खड़ा था।वह बिना किसी प्रतिक्रिया व्यक्त किये वहाँ से उठी,और थोड़ी दूर आगे जाकर वहाँ फिर से योगाभ्यास करने लगी।मैं भी कहाँ रुकने वाला था।फिर उसके सामने जाकर बैठ गया।मुझे अपने सामने बैठते हुए देखकर वह भड़क गयी।उसने ऊँची आवाज में गुस्से में बोला-“बाबा,ये कौन सा तरीका है??मैं जिधर जा रही हूँ,उधर ही चले आ रहे हैं!शर्म नहीं आती आपको??चुपचाप यहाँ से निकल लीजिए।मेरे बच्चे आ रहे  होंगे ‘ताईक्वांडो’ सीखने वाले!” ताईक्वांडो नाम सुनते ही मैं पार्क के गेट से बाहर सड़क पर निकल आया।

…बाहर निकलते ही सड़क पर मेरे बैचलर मित्र मिल गये।मुझे देखते हुए मुस्कुराकर पूछे-“कोई मिली??”मैंने कहा-“कोई नहीं!उल्टा सब मुझे बाबा कह रहे हैं।अब बताओ मैं बाबा लग रहा हूँ???”मित्र ने अपनी बात रखी-“हाँ,नहीं तो क्या???बाबा नहीं,परबाबा लग रहे हो!बाबा,जैसे इतना कपड़ा क्यों लाद लिये हो देह पर???कल से बन-ठनकर पार्क जाओ।ज़रूरी नहीं कि इसी पार्क में जाओ।और भी पार्क में घूमा करो।और हाँ अपनी सफेद बाल रंगवा लो।”

…मित्र की बातों में दम था।ढाई आखर प्रेम को पाने के लिए इस पर विचार किया जा सकता था।घर पहुँचा तो श्रीमती जी ने पूछा -“शुगर की जाँच कराएँ?मैंने नहीं में जवाब दिया तो बोली-“मैं नहीं रहूँ आपके पास,तो आप एक भी काम खुद से नहीं कर पाईएगा।क्या समझे?अब चलिए भी डॉक्टर के पास!”

क्रमशः

डॉ.कुमार अनुभव

 

 

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