“बाॅल लेकर आ जिसकी फील्डिंग वही नीचे से बाॅल लेकर आयेगा “
छतपर खेलते हुए सुमित ने अंकित से कहा
“अरे ये क्या बात हुई शार्ट तुम मारो और हम स्पाइडरमैन बनके तुम्हारी गेंद उठाये तुम ही लाओ बे “
अंकित ने सुमित को करारा जवाब देते हुए कहा लेकिन सुमित भी कहां कम था उसने शकुनि मामा वाला पासा फेंका और कहा
“ठीक है बे कल से मत आइयो मेरी छत पर खेलने जिसकी छत उसका रूल”
अब तो अंकित फंस चुका था मायाजाल में अब उसके पास 50 सीढी उतर कर नीचे रोड पर जाकर बाॅल उठाने के अलावा कोई चारा नही था बेचारा मर मर के नीचे पहुंचा
नीचे जाके देखा तो बाॅल नाली में गोते लगा रही थी नाक मुंह सिकोड़कर जैसे तैसे बाॅल उठाने को कोशिश कर ही रहा था कि तभी सामने से पीला सूट पहने खुले बालों के साथ सीने से रजिस्टर और किताब का अलिंगन करते हुए तीखे नैनों बाली,बटरस्कोच के गालों बाली लड़की ऐसे चल के आ रही थी मानो पवन देव उसे सहारा देकर उसके बालों से अठखेलियां करते हुए चल रहे हों ,फिर वो साईड से अपने बालों को कान की गोद में समेट रही थी, इधर हमारे अंकित बाबू अधर अवस्था में खड़े रहे ,बाॅल को पानी का वेग आगे बहाता हुआ ले जा रहा था ,ऊपर से लड़के चीख रहे थे
“अंकित बाॅल बह गयी जल्दी उठा “
लेकिन अंकित के कानों में मधुर संगीत बज उठा था ,फिर उस अप्सरा रूपी कन्या ने अपने तीर जैसे नैनों मे अंकित को देखा तो पहले से घायल हो चुके उसके नैनों ने अंकित को भीष्म पितामह की शैया और बना दिया था ,दोनों के नैनों से नैन टकराये उस अप्सरा ने हल्की सी मुस्कान छोड़ी और एक रेल की भांति अंकित को पास कर गयी और उसकी हवा में अंकित के बाल ऐसे उड़े कि बाबूजी खड़े खड़े मुस्कराने लगे।
तभी अंकित को कुछ दर्द का अह्सास हुआ होश आया तो देखा सुमित उसके कान का एक्सीलेटर बना दिया था और कहा
“क्यों बे बहा दी न बाॅल अब आइयो खेलने तू ?”
इतना सुनकर अंकित के कान पर जूँ तक न रेंगी और मुसकरा कर निकल गया गुनगुनाता हुआ
“पहला नशा पहला खुमार नया प्यार है नया इंतजार”
क्रमशः
(नोट इस सीरीज में प्रयोग किए गये सभी बालकों की उम्र 17-18 वर्ष है)
-अनुज सारस्वत की प्यारी सी कलम द्वारा प्यार इस मौसम में
(स्वरचित)