“मैं विनोद से क्षमा नहीं मानूंगा, क्षमा किस बात के लिए मांगू जब मैंने कोई अपराध किया ही नहीं.” किशोर ने दृढ़ शब्दों में अपनी बात दयाल सर से कही. ‘बेटा तुम्हारा दोष है या नहीं, मैं नहीं जानता. मैं उस समय वहाँ मौजूद नहीं था, मैं तीन दिन का अवकाश पूरा करके आज विद्यालय में आया हूँ. बात ने बहुत तूल पकड़ ली है, प्राचार्य महोदय का कहना है कि, मैं तुम्हें समझाऊँ कि तुम माफी मांग लो, बेटा तुम संस्कारी लड़के हो, आज्ञाकारी हो, इसलिए तुम्हे समझा रहा हूँ.विनोद को समझाने का कोई फायदा नहीं है, वह किसी की बात सुनता ही कहाँ है,और फिर विनोद के पिताजी के दिए डोनेशन से ही यह स्कूल चलता है.बेटा झगड़े को आगे मत बढ़ाओ माफी मांग लो.” नहीं सर मैं माफी नहीं मागूंगा. गलती विनोद की है, वह उस दिन से मुझे परेशान कर रहा है, जिस दिन से प्राचार्य जी ने प्रार्थना के समय दिए मेरे सुविचार की सबके सामने प्रशंसा की.दो दिनों से वह मुझे बहुत उल्टा सीधा बोल रहा है, मैंने फिर भी उस पर ध्यान नहीं दिया.मगर कल उसने सबके सामने मुझ पर हाथ उठा दिया.सर मैं किसी से बेकार उलझता नहीं, मगर वह मुझ पर हाथ उठाए और मैं देखता रहूँ, यह मुझे गवारा नहीं, मैंने उसके हाथ पकड़ लिए ताकि वह मुझ पर हाथ न उठा सके, मैंने क्या गलत किया सर? मैं जानता हूँ वह धनवान पिता की संतान है.मगर मेरी दौलत तो मेरी मेहनत, ईमानदारी, और स्वाभिमान है, मैं उसके साथ मैं समझौता नहीं कर सकता.’ ‘तो क्या तुम मेरी बात नहीं मानोगे?’ ‘सर !
आपकी हर बात मैं मानता हूँ, आपका सम्मान करता हूँ,मगर इस जगह मेरी आत्मा गवाह नहीं दे रही.सर मेरे माता पिता बहुत मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्चा उठाते है.मैं पढ़ाई मन लगाकर करता हूँ, उनकी दी हुई हर शिक्षा को अपनाता हूँ.वे हमेशा कहते हैं विनम्र रहो, अपनी गलती हो तो अपने से छोटो से भी मॉफी मांग लो, मगर जहाँ तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस लगे और तुम्हारा अन्तर्मन गवाह न दे, वह काम मत करो.’ ‘बेटा यह सोचो यह स्कूल कैसे चलेगा, विनोद के पापा का फोन आया था,उन्होंने प्राचार्य जी से स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि किशोर उनके बेटे विनोद से माफी मांगे वरना…..! वरना! क्या सर वे अपनी दौलत के बल पर मेरे स्वाभिमान को नहीं डिगा सकते. ‘तो यह तुम्हारा अन्तिम फैसला है? ‘ ‘जी सर’. किशोर अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुआ, वह होनहार विद्यार्थी था, पढ़ाई, खेलकूद और दूसरी एक्टिविटी में भी सबसे आगे रहता था.विनम्र, संस्कारी, और सबका चहेता था.
सबकी मदद करता था.कक्षा ७ वीं में पढ़ता था, माता पिता की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, वे मुश्किल से उसकी पढ़ाई का खर्चा उठाते थे.उसकी दो छोटी बहिने थी.कक्षा में सब उससे प्यार करते थे, और यही बात विनोद को अखरती थी. विनोद के पिता धनवान थे, और इस बात का उसे घमण्ड था.वह कक्षा में सबको डरा कर रखता था, मगर किशोर निडर था.स्वाभिमानी था. दयाल सर उनके क्लास टीचर थे, उस समय वे तीन दिनों की छुट्टी पर गए थे और विनोद ने किशोर के साथ अभद्र व्यवहार किया. दयाल सर की किसी बात का असर किशोर पर नहीं हो रहा था, वे उसे प्राचार्य जी के पास ले गए. किशोर ने जाकर उनके पैर छूए.वे बोले बेटा, तुम हमारे स्कूल की शान हो, हम सब तुमसे बहुत प्यार करते हैं. इस स्कूल के खातिर, हमारे खातिर अपनी जिद छोड़ दो.सर यह मेरी जिद नहीं मेरा स्वाभिमान है,
मेरी दौलत है उसे मैं नही छोड़ सकता.’ प्राचार्य जी ने कहा – ‘तो यह विद्यालय छोड़ दो, हम विवश हैं.’ किशोर एक पल के लिए स्तब्ध रह गया.फिर संयत होते हुए बोला ‘कोई बात नहीं सर आपके आदेश को मानकर मैं विद्यालय छोड़ दूंगा.’ किशोर ने दोनों को प्रणाम किया और ऑफिस से बाहर आ गया, जब किशोर के दोस्तों को ये बात पता चली तो वे बहुत दु:खी हुए और बोले किशोर तेरे बिना हम कैसे रहेंगे यार,तू ही तो हर विषय में हमारी परेशानी दूर करता है.’ मैंने विद्यालय छोड़ा है, तुम्हारा साथ नहीं, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ.किशोर ने घर आकर अपने माता पिता को सारी बातें बताई.उन्हें दु:ख तो बहुत हुआ मगर, अपने बेटे की खुद्दारी पर खुश भी हुए.उसे हिम्मत देते हुए यही कहा ‘बेटा कोई बात नहीं, हम तुम्हें दूसरे स्कूल में भर्ती कराएंगे. किशोर दूसरे स्कूल में भर्ती हो गया, यह स्कूल पहले वाले स्कूल से छोटा था, और सुविधाएं भी कम थी. किशोर ने अपने व्यवहार और प्रतिभा से सबका मन जीत लिया था.
किशोर १२ वीं कक्षा में पहुँच गया था.पूरे विद्यालय की आशा उस पर लगी हुई थी. किशोर ने बहुत लगन से पढ़ाई की और पूरे राज्य की प्राविण्य सूचि में उसका दूसरा नंबर आया.आगे की पढ़ाई के लिए उसे स्कालरशिप मिलने लगी.फिर उसने स्नातक की डिग्री प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की.उसके बाद राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा के लिए आवेदन किया. परीक्षा के तीनों चरणों में उसने सफलता प्राप्त की और जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर उसकी नियुक्ति हुई.उसने अपने परिवार , अपने विद्यालय और अपने शहर का नाम रोशन किया.पूरे शहर में उसकी प्रशंसा हो रही थी.वह उस विद्यालय के निरीक्षण के लिए भी गया जहाँ से बिना किसी गलती के उसे निकाल दिया गया था.वे प्राचार्य सेवानिवृत्त हो गए थे और दयाल सर ने प्राचार्य पद का कार्यभार सम्हाल रखा था.
किशोर ने जब उस विद्यालय में प्रवेश किया, तो उसे सारी घटना स्मरण हो गई. उसके सम्मान में विद्यालय का पूरा स्टाफ खड़ा हो गया.उसने झुक कर दयाल सर के पैर छुए.संकोचवश उनकी नजरें ऊपर नहीं उठ रही थी.किशोर ने कहा सर आशीर्वाद नहीं देंगे आज मैं जो भी हूँ, आपकी बदौलत हूँ, उस दिन की घटना ने मेरे संकल्प को दृढ़ किया.आज आप प्राचार्य के पद पर हैं, बस मैं यही चाहता हूँ, कि वैसी घटना दुबारा ना घटे.विद्यालय में छोटा- बड़ा, अमीर -गरीब कोई भी हो उनके स्वाभिमान को क्षति नहीं पहुँचे.दयाल सर का हाथ किशोर के सर पर था, ऑंखें नम थी, वे बस इतना ही कह पाए किशोर अब मेरी आँखे खुल गई है, मैं समझ गया हूँ .इस विद्यालय मे मैं किसी के स्वाभिमान को ठेस नहीं लगने दूंगा.
प्रेषक- पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक
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