पैंतीस साल कोइलवरी की नौकरी करने के बाद नीरज जी सेवा निवृत्त हो बहुत खुश थे। अब आराम की जिन्दगी जीने का मौका मिला।
न सुबह उठने की जल्दी और न वक्त के पंख पर सवार हो घड़ी की टिक-टिक के साथ अनुशासित पग बढ़ाने को मजबूर हूँ। बिस्तर पर पड़े-पड़े ही मन-ही-मन आनन्दित हो चादर को और ऊपरतक खीच कर घुड़क गये। तभी पत्नी नीलम की मोटी आवाज सुनाई पड़ी।
” आठ बजने को है। दफ्तर नहीं जाना है, तो इसका मतलब यह नहीं कि घर में कोई काम नहीं है। अब गृह कार्य में हाथ बटाओ। चाय बन चुकी है, उठकर पी लो। कल से रसोई में भी हाथ बँटाना। अब मुझे भी दौड़-दौड़कर काँलेज नहीं जाना पड़ेगा। कहकर नीलम नहाने चली गयी।
नीरज के मंसूबे पर पानी फेर गया।———-
अब अक्सर नीलम कभी माली से काम कराने की जिम्मेवारी दे देती थी तो कभी बाजार जाने को कह थैला थमा देती थी। फिर भी अक्सर यही सुनने को मिलता था कि तुम तो कुछ करते नहीं हो।
सभी सेवानिवृति के बाद भी कुछ-न- कुछ काम करते हैं।पत्नी के इस दबाव से परेशान हो नीरज जी ने सोचा- आखिर वकालत की उपाधि किस दिन काम आयेगी। अतिरिक्त उपाधि हासिल करने का कुछ तो लाभ होना चाहिए।
इस कहानी को भी पढ़ें:
उच्च न्यायालय में वकालत का पंजीयन हो गया। उसके लिए दूसरे शहर में आना पड़ा। बेटी भी वहीं रहती थी। कोई परेशानी तो थी नहीं।
सप्ताह में चार दिन अदालत जाते थे और तीन दिन पत्नी को यह एहसास दिलाने के लिए घर जाते थे कि मैं भी नौकरी करता हूँ। महिनों बीत गया कोई केस अभी तक मिला नहीं। हतास हो चुके थे।
तभी अचानक एक दिन सोसाइटी में चुनाव से सम्बंधित एक केस आया और शुरू हुई कारवायी। सप्ताहंत में घर जाकर ये खुशखबरी पत्नी को सुनायी। चेहरे पर मुस्कान तो थी,
लेकिन वो मुस्कान फीकी थी। नीरज जी ने काॅलेज की व्यस्तता समझ उसे नजरअंदाज कर दिया। धीरे-धीरे वकालत चल पड़ी।
नीरज जी व्यस्त होते गये उधर पत्नी दिनों-दिन शारीरिक क्षमता खोती जा रही थी, लेकिन पति को कभी भी अपनी स्थिति से अवगत नहीं करायी। वह जान चुकी थी कि अब मेरा अंत नजदीक आता जा रहा है। ये कैंसर मौत के साथ ही जायेगा। एक साल की नौकरी और बची थी।
वो चाहती थी कि बेटी के साथ रहने में सहज हो जाएँ। दामाद में बेटा को देख सकें। दामाद के साथ रहने में जो झिझक थी वह समाप्त हो जाए। एक ही बेटी थी। रहना तो उसी के साथ था।
अपनी बीमारी को छिपा दिया,क्योंकि जीते जी पति को दुखी नहीं देखना चाहती थी। एक दिन घरेलू नौकरानी का फोन आया और बाप- बेटी दौड़ पड़ीं।
शांत चिरनिद्र में सोयी नीलम जी को पति और बेटी से हजार शिकायतें सुनने को मिली। आज कोई दलील काम न आया। विपक्ष से बोलने वाला कोई न था। वह आँखे बंद किए मुस्कुरा रही थी।
पुष्पा पाण्डेय
राँची,झारखंड।