Moral stories in hindi : बहु,,वो बहु!कहां चली गई! अवनी की सास निर्मला जी ने छत से आवाज लगाई!
हां मां जी!अवनी
बहु ये टेबल जरा पकड़ लेना!निर्मला
मां जी रेहान मेरे गोद में लेटा है!मैं कैसे आऊं!निशांत जरा आप ही पकड़ लीजिए!अवनी ने अपने पति से कहा!
निशांत उठकर जब टेबल पकड़ने गया तो निर्मला जी बोली,,बेटा तुम क्यों आ गए!तुम्हे बुखार चढ़ा था सुबह!बहु को भेज देते!
मां,अभी मेरा बुखार ठीक है!रेहान का फिर बुखार आ गया है! वो अवनी की गोदी में लेटा है!अवनी कैसे आती!निशांत ने कहा
अरे तो उसे बिस्तर पर लिटा देती!उसे दिख नही रहा,तुम्हे अभी इतनी तेज बुखार था!वो क्या समझेगी एक मां का दर्द!निर्मला जी ने गुस्से में कहा!
ये सब बातें अवनी सुन रही थी!फिर भी उसने नजरंदाज कर दिया !क्योंकि अभी वो कोई बात का बतंगड़ नही बनाना चाहती थी!और उसका तीन साल का बेटा रेहान बीमार भी था!तो अवनी उस पर ध्यान देने में लग गई!
थोड़ी देर बाद फिर निर्मला जी अवनी पर चिल्लाते हुए बोली,,,बच्चे को लिटा दो!निशांत के लिए दलिया या कुछ बना कर दो उसे दवा भी तो खाना होगा!
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मां जी,जैसे मैं जाने को होती हूं,रेहान रोने लगता है!कह रहा है मम्मा मेरे पास ही रहो!बुखार में बच्चे कहां मां को छोड़ते हैं!गोद में ही रहना चाहते हैं!ये थोड़ा सो जाए तो मैं बना दूंगी!अवनी ने कहा!
दवा खाने का समय निकल जाएगा,तो बनाने से क्या फायदा!वो(निशांत)इतनी तकलीफ में था उसे समय पर नाश्ता दवा की जरूरत है,और तुम्हे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा पत्थर दिल हो क्या तुम!रेहान को किसी खिलौने या किसी चीज में बहला भी सकती हो!कुछ दे दो खेले,और तुम जाओ बनाओ!निर्मला जी ने अवनी से कहा!
ये बात अवनी के बर्दास्त से बाहर था,और वो बोल पड़ी,,,,वाह,, सासु मां!आपके बच्चे का दर्द दर्द और मेरे बच्चे का दर्द???वो कुछ नहीं??आप भी मां है,अपने बच्चे के लिए कितना परेशान हो रही हैं!तब भी आप मेरी भावना नहीं समझ रहीं!
मेरे दो साल के बेटे को भी फीवर है और मैं उसे यूं ही रोता हुआ छोड़कर आपके बेटे केलिए नाश्ता बनाने जाऊं!पत्थर दिल तो आप हैं!जो एक मां होकर दूसरी मां का दर्द नही समझ रहीं!आप भी तो निशांत के लिए दलिया बना सकती हैं!
और नही बना सकती,तो इंतजार कीजिए!जब रेहान सो जायेगा तो बना दूंगी!
अवनी!ये क्या तरीका है मां से बात करने का!उन्हे कितना ठेस पहुंचा होगा!चलो मां से माफी मांगो!निशांत ने अवनी से गुस्से में कहा!
सही है,वो मां है,उन्हे ठेस लग सकती है!और मैं??मैं भी तो मां हूं!मुझे भी उनके इस रवैए से ठेस पहुंचती है!अवनी ने कहा!मैने तो सिर्फ अपना पक्ष रखा है,मैने कोई गलती नही की जो मैं माफी मांगू!अवनी ने दृढ़ता से कहा!
निशांत कुछ बोलने ही वाला था, कि निर्मला जी बोल पड़ी!बहु सही कह रही है?मैं ही अपनी ममता में इतनी स्वार्थी हो गई, कि उसकी ममता और उसके बेटे का दर्द न समझ सकी! तू रेहान को संभाल,मैं दोनो के लिए दलिया बना लाती हूं!
दोस्तो कभी कभी अपना पक्ष भी रखना जरूरी हो जाता है!नही सामने वाले की आंखों का प्रदा नही हटता!
प्रीती वर्मा
कानपुर