डाकिया ने जब वंदना को डाक के रूप में नियुक्ति पेपर सौंपे तो वंदना की आँखों में आँसू आ गए। कितना संघर्ष किया था उसने यहाँ तक पहुँचने के लिए। यह उसका दिल ही जानता था। पढ़ाई को लेकर ताई की छींटाकशी “जितना पैसा पढ़ाई पर खर्च होता है। उतने में तो शादी हो जाती है। क्या जरूरत है ज्यादा पढ़ाने की।” दादी की व्यथा “उनके पास नहीं बैठती दो मिनट लड़की, किताबों में डूबी रहती है।” और माँ का क्रोध ” फेल हुई तो घर में बैठा दूँगी” उसे सब अच्छी तरह याद है।
उसे याद है किताब खरीदने की बात सुनकर माँ दुनियाँ भर के खर्च गिनाने लगतीं थी। और वह चुप्पी साध लेती थी। सहेलियों से किताबें माँग कर नोट्स बनाकर काम चलाती थी। उसके परीक्षा देने के समय किसी ने दही पेड़ा नहीं खिलाया। घर में पापा को छोड़कर सभी उसकी पढ़ाई के दुश्मन थे। लेकिन उसकी लगन इससे घटी नहीं और बढ़ती गई।
कारण था घर में बेटों और बेटियों के बीच होने वाला भेद भाव। पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन के हकदार बेटे होते हैं। बेटियों को दो वक्त का भोजन बड़े एहसान और जली कटी बातों के साथ मिलता है। बेटों के शौक और जिद पूरी की जाती है। बेटियों को मौन रखा जाता है।
घर का हर क्रियाकलाप चीख चीख कर बेटियों से कहता है। “तुम्हारी शादी में पैसा खर्च करना है। इसलिए तुम्हारे खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी। और शादी में लगने वाला पैसा बर्बाद न हो इसलिए तुम्हें सहनशीलता सिखाई जा रही है।” जब – जब वंदना का सामना किसी भेदभाव वाली घटना से होता। उसकी पैसा कमाने की अभिलाषा बढ़ जाती। और वह पढ़ाई में अपने आप को झोंक देती थी।
जिसका लाभ उसे आज मिला था। भावुक होना स्वाभाविक था। वंदना ने पिता के साथ जाकर नौकरी ज्वॉइन की और व्यस्त हो गई अपने काम में। जैसे जैसे उसके एकाउंट में पैसे बढ़ रहे थे। घरवालों का प्रेम बढ़ रहा था। अच्छी नौकरी देखकर रिश्ते भी आने लगे थे। वंदना की शादी हो गई। उसने ससुराल में देखा वह कमाती है। तो उसके लिए नियम कानून कुछ शिथिल हो जाते हैं।
और उसकी जिठानी को उनका पालन सख्ती से करना पड़ता है। वंदना ने जिठानी को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और हर प्रकार से सहारा देकर कुछ ही वर्षों में उनको टीचर के पद पर नियुक्त करवा दिया। जिठानी के कामकाजी बनते ही उनका सम्मान बढ़ गया मायके और ससुराल दोनों जगह। और वंदना को जिठानी के रूप मे प्यार करने वाली बहन मिल गई। इसके अलावा ससुराल और मायके वालों के प्रेम की सच्चाई भी ज्ञात हो गई।
स्वरचित — मधु शुक्ला.
सतना, मध्यप्रदेश.