बेटियां हमारा अभिमान होती है –  ममता गुप्ता

रिया अपने माता पिता की इकलौती संतान थी। पिता मोहन व माता राधा अपनी बेटी की सभी ख्वाहिशों को पूरा करने की कोशिश करते थे,लेकिन पिता मोहन एक प्राइवेट स्कूल में चपरासी का काम करता था, औऱ माँ घर के कामकाज से फ्री होकर सिलाई का काम करती थी…!दोनों का एक ही सपना था कि अपनी बेटी को पढ़ा लिखाकर अपने पैरो पर खड़ा करना । रिया की दादी तो हर वक्त उसे कोसती रहती की जितना पैसा तुम दोनो कमाते नही हो उतना तो तुम इस छोरी पर खर्च कर देते हो…इसको पढ़ाने की बजाय इसके ब्याह के बारे में सोचो औऱ पैसा जोड़ो ताकि इसके हाथ पीले करने में दिक्कत न हो…!ग़र इसके जगह भगवान तेरी गोद मे लड़का देता तो इस घर का वंश तो चलता लेकीन न जाने मैंने ऐसे कोनसे कर्म किये जिसकी वजह से पोते की ख्वाहिश मन की मन मे ही रह गई। रिया की दादी बस एक बार शुरू हो जाती तो रुकने का नाम नही लेती थी। थोड़ी पुरानी ख्यालात के होने की वजह से वह लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने लिखाने के लिए सहमत नही थी।

 

“अरे माँ!! आप हर बार बिटिया की पढ़ाई के बारे में ऐसा मत बोला करो…!मेरी रिया बेटी पढ़ाई में बहुत ही होशियार हैं, औऱ मेरे लिए तो मेरी बेटी ही बेटे के समान है, औऱ एक दिन देखना मुझे मेरी बेटी पर अभिमान होगा। मोहन ने अपनी माँ को समझाते हुए कहा।

 

रिया के पिता बड़े ही मेहनती ,औऱ साथ में समय के पाबंद  भी थे। वह रोज स्कूल अपनी साईकिल से ही जाते थे, वह स्कूल जाने के लिए निकले ही थे कि राधा ने कहा”स्कूल से लौटते वक्त कुछ सब्जी भी ले आना।। ठीक है, यह कहकर स्कूल निकल गया।

 

कितनी बार कहा है बहू तुझे की मोहन को स्कूल जाते वक्त पीछे से आवाज मत दिया कर,लेकिन तेरी यह आदत कभी सुधरने वाली नही है। सास ने गुस्सा करते हुए कहा।

 

मोहन स्कूल तक भी नही पहुँचा की उसकी साइकिल को एकगाडी ने टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जोर से लगी कि उसकी साइकिल का कचुम्बर निकल गया औऱ मोहन भी घायल हो गया.. आसपास के लोगो ने उस गाड़ी वाले को रोकना चाहा लेकिन गाड़ी इतनी रफ्तार में थी कि किसी के भी हाथ नही आई…। आसपास के लोगो ने उसे उठाया औऱ उसकी जेब मे से मोबाईल निकालकर उसके घर फोन किया…फोन राधा ने उठाया ।

 



मोहन का एक्सीडेंट की खबर सुनकर राधा के पैरों तले जमीन सरक गई । उस वक्त रिया भी घर पर ही थी बस कॉलेज के लिए निकल ही रही थी इतने में अपनी माँ को रोते देख उसने पूछा”क्या हुआ माँ…?

 

आप रो क्यो रही हो..? रिया ने कहा।

तेरे पापा… तेरे पापा… राधा के मुँह से शब्द ही नही निकल रहे थे।

 

मेरे पापा क्या …माँ ।। क्या हुआ पापा को बताओ ना।

रिया ने कहा।

तेरे पापा का एक्सीडेंट हो गया है…। राधा ने कहा।

 

यह सुनकर रिया ने अपने पापा के नम्बर पर फोन किया।फोन किसी अनजान व्यक्ति ने उठाया तो उससे पता चला कि तुम्हारे पापा को पास के सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दिया है…! फोन काटकर रिया औऱ उसकी माँ दोनों ही जल्दी से सरकारी अस्पताल में गई औऱ पिता की हालत देखकर रोने लगी। डॉक्टर से बात की तो पता चला कि”पैर की हड्डी टूट गई है… औऱ एक हाथ भी टूट गया हैं..इन्हें आराम की जरूरत है, समय पर दवाई का ध्यान रखना औऱ जब तक कि पैर व हाथ अच्छे से ठीक न हो जाये तब तक कोई काम करने की कोशिश न करें। डॉक्टर ने कहा।

 

” रिया की माँ फुट फुट कर रोने लगी । रिया ने अपनी माँ को चुप कराते हुए कहा”मैं हूं ना माँ।। आप पापा की फिक्र मत कीजिए। मैं पापा का अच्छे से ध्यान रखूँगी।

रिया अपने पापा को अस्पताल से छुट्टी दिलवाकर घर ले आई..! रिया की दादी को कुछ नही पता था”जब उन्होंने मोहन को ऐसी हालत में देखा तो वह भी रोने लगी औऱ कहने लगी-मैने तुझसे कितनी बार कहा है कि मेरे बेटे को पीछे से मत टोका कर लेकीन तूने मेरी कभी सुनी ही नही आज देख लिया ना मेरी बात न मानने का नतीजा… रिया की दादी ने अपनी बहू राधा को डांटते हुए कहा।

कुछ दिन तक दादी के भाषण इसी तरह चलते रहे,लेकिन मोहन को चिंता थी,घर का खर्चा किस तरह चलेगा, बस मोहन सोच ही रहा था कि,इतने में स्कूल के हेडमास्टर मोहन से मिलने आये औऱ साथ मे एक दुःखी भरी खबर लाये की मोहन हमे तुमको नोकरी से निकलना पड़ेगा मुझे माफ़ कर देना, क्योंकि अब तुम्हें तो ठीक होंने में काफी समय लग जाएगा औऱ हमे स्कूल में चपरासी के बिन कार्य अधूरा रह जाता है, यह लो तुम्हारे इस महीने का पूरा वेतन… हेडमास्टर जी ने जाते हुए कहा।



 

मोहन सोचने लगा जब मुसीबत आती है तो चारो तरफ से ही आती है… नोकरी गई अब कैसे क्या होगा बस इसी बारे में सोच विचार करके,मोहन उदास हो गया… तभी रिया ने कहा मैं हूं ना पापा आप मुझ पर छोड़ दीजिए.. ।।

कुछ न कुछ जरूर इंतजाम हो जाएगा। राधा भी सोच फिक्र में आधी होती जा रही थी…!

 

अब जो कुछ करना था रिया को करना था,उसके दिमाग मे एक आइडिया आया कि क्यों न हमारे घर के नीचे जो हमारी दुकान है, उसमे सभी तरह के सामान रखकर उसे खोल ले..उसने यह आइडिया अपने मम्मी पापा को बताया तो पापा ने कहा- दुकान कौन संभालेगा, कोई बैठने वाला भी तो होना चाहिए औऱ सबसे बड़ी बात दुकान में माल भरने के लिए पैसे कहा से आएगा।

मेरे पास इतने पैसे नही है…रिया के पापा ने कहा।

“अरे पापा आप चिंता मत करो दुकान मैं संभाल लुंगी.. रिया ने कहा।

नही नही !!तुम दुकान खोलकर नही बैठेगी… तुझे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना।। मोहन ने गुस्से से कहा।

 

दादी ने भी मोहन की बात में हामी भरते हुए कहा-मोहन बिल्कुल ठीक कह रहा है, तू दुकान खोलकर नही बैठेगी, तू लड़की है, औऱ कैसे कैसे लोग आएंगे सामान लेने तूने सोचा है, औऱ लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे..तेरा ब्याह करना भी हमारे लिए मुश्किल हो जाएगा… तभी तो कहती थी मैं की इस छोरी की बजाय भगवान एक छोरा दे देता तो आज इस परिस्थिति में सब कुछ संभाल लेता। दादी ने फिर वही अलाप  जपते हुए कहा।

 

देखो दादी मेरे ब्याह की चिंता आप मत कीजिये… मुझे ब्याह तो तब तक नही करना जब तक मैं कुछ लायक नही बन जाती है.. औऱ लोग क्या कहेंगे तो उन्हें जवाब देना मुझे अच्छे से आता है…। मैं बेटी हूं तो क्या हुआ मैं बेटे का फर्ज निभा सकती हूं। एक बेटी भी अपने माँ बाप का सहारा बन सकती है।। 



 

 मैं अपनी पढ़ाई भी कर लूंगी औऱ दुकान भी संभाल लूंगी इसलिए आप लोग मेरी चिंता न करें… बस इस आइडिये को सफल बनाने में सहयोग दीजिए।

 

तभी राधा बोली कि कुछ पैसे मैने जोड़ रखे हैं, दादी ने भी कहा कुछ पैसे मेरे पास भी हैं… ऐसे करके सभी ने अपनी अपनी जमा राशि से दुकान में माल डलवा दिया  गया रिया  उस दुकान पर खुद बैठने लगी औऱ दुकान पर ही बैठे बैठे अपनी पढ़ाई भी करती थी। 

रिया की मेहनत रंग लाई ,उसने उस दुकान में सभी तरह के थोड़े थोड़े से आइटम डाल दिये ताकि कोई भी ग्राहक खाली न जा सके… राधा भी घर के काम से फ्री होकर दुकान पर ही अपना सिलाई का कार्यकरने लगी…इस कारण उसके पास भी सिलाई का कार्य ज्यादा से ज्यादा आने लगा।

 

बस ऐसे ही चलता रहा औऱ देखते देखते मोहन की ज़िंदगी ही बदल गई…मोहन की तबियत में भी सुधार होने लगा… हाथ पैर अच्छे से ठीक तो नही हुए लेकिन प्लास्टर खुलने के बाद थोड़ा थोड़ा चलकर कभी कभी दुकान पर चला जाता था…रिया की हेल्प के लिए लेकिन रिया उनको सिर्फ आराम से बैठने के लिये कहती.. यह देखकर आज मोहन को अपनी बेटी रिया पर  गर्व महसूस हो रहा था कि सच मैं एक बिटिया बेटे की तरह फ़र्ज निभाती हैं, शायद ग़र मेरे बेटा होतो तो वो भी इतना नही करता जितना एक बेटी ने किया है। पढ़ाई में अव्वल के साथ साथ घर की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधो पर उठा रखी हैं,औऱ एक मजबूत सहारा बनकर खड़ी है।।

 

मोहन औऱ राधा खुश थे कि उनकी इकलौती संतान एक बेटी थी।

 

उधर दादी को भी रिया पर अब प्यार आने लगा,जब उन्होंने देखा कि रिया की मेहनत से आज घर मे कोई कमी नही है। उन्हें समझ आ गया कि”बेटियों को ग़र एक मौका दिया जाए तो वह लड़को से बेहतर अपनी ज़िम्मेदारी निभा सकती है।

दादी की भी सोच अब पूरी तरह से बदल चुकी थी,वह भी अब यही कहती थी कि…हमारा अभिमान हमारी बेटी हैं।

 

ममता गुप्ता

 

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