आज सुधीर को गए तीन महीने बीत चुके थे। जब-जब भी अनु सफेद साड़ी में लिपटी निस्तेज़-सी श्यामा को देखती, उसका कलेजा मुँह को आ जाता। फूल-सी कोमल हँसती-खिलखिलाती श्यामा की क्या हालत हो गई है। कुदरत भी क्या खेल रचाती है”।
अनु को याद आया, कितने चाव से वह छह महीने पहले ही श्यामा को अपनी बहू बनाकर घर में लाई थी। उसकी जिंदगी में फैले सतरंगी रंग कब सफ़ेद में तब्दील हो गए, पता ही नहीं चला। एक सड़क दुर्घटना ने सब कुछ तहस नहस कर दिया। मालूम नहीं श्यामा के जीवन में कितने संघर्ष लिखे हैं।
हे ईश्वर! कितनी परीक्षा लेगा श्यामा की। बचपन से ही बहुत संघर्ष किया है बच्ची ने। पहले माता-पिता और फिर सुधीर। कैसे पहाड़-सी लंबी जिंदगी काटेगी! कितनी बार श्यामा से कहा, सफेद साड़ी डालने की आवश्यकता नहीं है। कोई भी सोबर सा रंग पहन लो। हमें कोई आपत्ति नहीं। आज ज़माना बहुत बदल गया है, पर वह मानती ही नहीं। आज श्यामा के भविष्य का कोई न कोई फैसला करना ही होगा, मन ही मन बुदबुदाते हुए अनु बोली।
“क्या बुदबुदा रही हो अनु। कितनी देर से आवाज़ लगा रहा हूँ”। शेखर ने अनु के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
“कुछ नहीं। कोई काम था क्या”!
“नहीं। पर क्या सोच रही थी जो मेरी आवाज़ भी नहीं सुनाई पड़ी”।
“सुनिए जी। मुझसे श्यामा की हालत नहीं देखी जाती है। सुधीर के जाने के बाद मुरझा-सी गई है। मुझे लगता है, हमें श्यामा का दूसरा विवाह कर देना चाहिए। इसके लिए हमें उसे तैयार करना होगा। आप इस बारे में क्या सोचते हैं”।
“कैसी बात कर रही हो सुधीर की माँ”। बेटे को तो खो ही चुके हैं। अब बहू को नहीं खो सकते। फिर उसकी कोख में हमारे वंश का चिराग है”। रुंधे गले से शेखर ने कहा।
“अपने स्वार्थ के लिए हम उसको बर्बाद नहीं कर सकते। उसे भी खुशी पाने का अधिकार है। इतने स्वार्थी मत बनो। बचपन से ही माता-पिता के चले जाने पर बहुत दुख झेले हैं बहू ने। अपनों ने बहुत अत्याचार किए। फिर सुधीर चला गया। जाने वाले की याद में रो-रोकर तो सारी जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती”।
“कह तो तुम सही कह रही हो अनु। शायद उसकी कोख में पल रहे नन्हे सुधीर के कारण मैं स्वार्थी हो गया था। माफ करना। पर क्या तुमने श्यामा से इस बारे में बात की है”!
“अभी तो नहीं की है, पर उसे मनाना होगा। साम-दंड भेद किसी भी तरीके से। और एक लड़का भी मेरी नज़र में है। पहले श्यामा से बात कर लूँ, फिर उससे बात करूंगी”।
“कौन है! क्या वह तैयार है”!
“आप भी उसे जानते हैं। उसका नाम है मनोज।
“कौन मनोज। कहीं तुम सुधीर के बचपन के दोस्त मनोज की बात तो नहीं कर रही हो”। शेखर ने विस्मय से भरकर कहा।
“बिलकुल सही समझा। मुझे लगता है वह शायद श्यामा को पसंद भी करता है। पहले श्यामा के मन की थाह ले लें। फिर उससे बात करेंगे। लगता तो है बात बन जाएगी। नहीं तो और खोजेंगे। दुनिया में लड़कों का अकाल थोड़े हो गया है। फिर हमारी श्यामा में कोई कमी थोड़े है”।
“मम्मा, पापा जी खाना लगाऊँ। तभी श्यामा ने आकर पूछा।
अभी नहीं बहू। कुछ देर बाद। आओ इधर आओ बैठो। तुमसे कुछ बात करनी है”। अनु ने गंभीरता से कहा।
“जी मम्मी जी। कहिए”। पास बैठते हुए श्यामा ने कहा।
“देख बिटिया। बहुत सोच-विचार के बाद हमने सोचा है, तेरा दूसरा विवाह कर दिया जाए। कब तक इस तरह रहेगी”, एक ही साँस में अनु कह गई।
“मम्मी जी। यह नहीं हो सकता। मैं सुधीर की यादों के सहारे ही जीवन बिताना चाहती हूँ। मुझे घर से मत निकालिए। अपनी खुशियों के लिए मैं आपको अकेला नहीं छोड़ सकती”।
“बिटिया। हम तुझे घर से नहीं निकाल रहे। कब तक इस तरह जीवन बिताएगी। फिर हर माँ अपनी बेटी का अच्छा ही सोचती है। मुझे माँ समझती है तो मेरा कहा मान ले। फिर तुझे भी तो आखिर सहारा चाहिए। कोख में पलने वाली संतान को भी पिता चाहिए। जब बड़ा होकर वह और बच्चों को पिता के साथ खेलते देखेगा तो उसके मन पर क्या गुजरेगी”।
“मम्मी, पापा जी। आपको किसके सहारे छोड़ जाऊँ! फिर क्या आपका मन नहीं होता, नन्हा सुधीर आपके साथ खेले। अपनी खुशियों के लिए आपका हक छीनकर आपको अकेला नहीं छोड़ सकती। इतनी स्वार्थी मैं नहीं बन सकती हूँ”।
“पर बिटिया। किसके सहारे इतनी बड़ी जिंदगी काटेगी। हमने तुझे अपनी बिटिया माना है तो एक कर्तव्य भी हमें अदा करने दे”। सुधीर के पिताजी ने भरे कंठ से हाथ जोड़ते हुए श्यामा से कहा।
“पिता जी हाथ मत जोड़िए। बड़े लोग आशीर्वाद देते ही अच्छे लगते हैं। अगर आप दोनों यही चाहते हैं तो मेरी भी एक बात माननी होगी”। श्यामा ने कहा।
“क्या”? अनु और शेखर एक साथ बोले।
“जो भी लड़का आप पसंद करेंगे, उसे या तो यहाँ रहना होगा या आप हमारे साथ रहेंगे, तभी मैं जाऊँगी अन्यथा नहीं”।
“पर यह कैसे हो सकता है बिटिया। अनु ने कहा। लोग क्या कहेंगे”।
“फिर तो मैं कहीं भी नहीं जाऊंगी। मुझे पग-पग पर आपके साथ की आवश्यकता है।
“ठीक है बिटिया। तुझे बातों में हराना नामुमकिन है। अब खाना लगा दे। बहुत जोरों की भूख लगी है”।
अर्चना कोहली “अर्चि”
नोएडा (उत्तर प्रदेश)