किरण अपने पति की मृत्यु के बाद वह कुछ ज़्यादा ही चिड़चिड़ी हो गई थी । उसके घर में सास और बेटा ही थे परंतु उसे लगता था कि वह बहुत सारा काम कर रही है इसलिए सुबह से ही अपनी सास से लड़ती रहती थी । सास बहू के बीच पहले भी पटती नहीं थी अब तो दोनों के बीच कुरुक्षेत्र की लड़ाई चलती थी ।
किरण पहले अपने पति का लिहाज़ रख लिया करती थी और सास के साथ अच्छा व्यवहार कर लेती थी । अब तो उसे कोई रोकने वाला भी नहीं था । अपनी ज़िंदगी का क़सूरवार वह सास और ननंदों को ठहराती थी इसलिए वह सास को ननदों से बात करने नहीं देती थी। उनका फ़ोन उनसे छीन लिया करती थी ।
एक दिन बड़ी ननंद ने कलकत्ता से अपनी माँ को फ़ोन किया तो वह बहुत रोने लगी थी और अपनी बेटी को बताया कि किरण उसे बहुत सताती है आए दिन फ़ोन छीन लेती है यह कहते हुए कि बेटियों से बात क्यों करती है । मेरे बारे में उन्हें क्या बताती है उसे शंका रहती है कि मुझे तुम लोग उसके ख़िलाफ़ भड़काते हो । मैं क्या करूँ मेरी समझ में नहीं आ रहा है । मैंने भी तो पति खोया है अपना जवान बेटा खोया है । एक अकेली बहू है और वह भी मेरे ख़िलाफ़ रहती है ।
किरण की ननंद बेला को अपनी माँ को रोते हुए देख कर किरण पर ग़ुस्सा आया और उसने किरण को फ़ोन किया और उसे धमकी दी थी कि अगर आज के बाद मेरी माँ को तंग किया तो मैं तुम्हारे ख़िलाफ़ पुलिस में कंप्लेन दर्ज करा दूँगी । किरण ने सुन कर भी अनसुना कर दिया था क्योंकि उसे मालूम था कि वे ऐसा नहीं कर सकती हैं ।
किरण अब एक आज़ाद पंछी के समान घूमने लगी थी। सास के लिए खाना भी नहीं बनाती थी । उन्हें ही बना लेने को कहती थी । देर रात को घर पहुँचती थी । किटी पार्टी सहेलियों के साथ मिलकर घूमने जाना यही उसकी ज़िंदगी बन गई थी । किरण अपनी सहेलियों के साथ वैष्णव देवी मंदिर जाना चाह रही थी । उसे मालूम था कि उसके पीठ पीछे ननंद जरूर घर आएँगी । उसके ख़िलाफ़ वे सब साज़िश रचेंगीं । माँ को बहला फुसलाकर उनके गहने ले जाएँगी ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
दो दिन से वह सास के पीछे पड़ी थी कि गहने मुझे दे दीजिए मैं उन्हें लॉकर में रख देती हूँ क्योंकि मैं दस दिन तक घर में नहीं रहूँगी । सास ने गहने देने से साफ़ इनकार कर दिया था । जिसके कारण दोनों के बीच हाथापाई हुई और किरण ने अपनी सास पर हाथ उठा दिया था। सास के भाई को फ़ोन कर दिया था कि अपनी बहन को अपने साथ थोड़े दिन रख लें।सास समझ गई थी कि फ़ोन पर उसका भाई है उन्होंने ज़ोर से चिल्लाया था कि बहू ने मुझे मारा है किरण डर गई और झट से फ़ोन काट दिया था परंतु भाई ने कलकत्ता में रहने वाली भाँजी को फ़ोन करके बताया था कि कुछ गड़बड़ है तू एक बार हैदराबाद चली जा । बेला को ग़ुस्सा आया और उसने हैदराबाद के पुलिस थाने में किरण के खिलाफ कंप्लेन दर्ज करा दिया था । उसके कंप्लेन करते ही पुलिस किरण के घर पहुँच गई थी । पुलिस को घर के सामने देखते ही
उसके चेहरे पर डर साफ़ दिख रहा था । उसने तो सोचा था कि बेला सिर्फ़ धमकी दे रही है परंतु सचमुच ही घर के सामने पुलिस को देख वह रोने लगी। अपने भाइयों को बुला लिया था । शाम तक बेला अपनी दूसरी बहनों के साथ हैदराबाद आ गईं थीं । सबने मिलकर किरण को आड़े हाथों लिया और प्रापर्टी में जो हिस्सा किरण को देना था दे दिया और कह दिया गया था कि जिस घर में रह रही है वह माँ के नाम है इसलिए माँ को हर महीने बीस हज़ार रुपये किराया दे देना । वह भी सिर्फ़ छह महीने तक उसके बाद हम घर बेच देंगे । माँ को हम अपने साथ ले जा रहे हैं ।
यह सब सुनकर किरण को बुरा लगा क्योंकि उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ हो जाएगा। सब काम ऐसे आनन फ़ानन में हो गया था कि किरण सदमे में थी और बेला सास को लेकर चली गई । किरण सोचने लगी थी कि उस दिन सास को मारने से पहले दिमाग़ से काम लिया होता तो आज यह दिन देखना ही नहीं पड़ता था । कहते हैं न कि “अब पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत “
के कामेश्वरी