अन्नपूर्णा अपने कमरे में पलंग पर पड़ी हुई थी । उसे लकवा हो गया था । कल तक पूरे घर पर राज करने वाली आज पलंग पर बेबस पड़ी हुई थी । कल तक उसके एक इशारे पर नाचने वाली बहुएँ ,बेटे आज उस पर ध्यान भी नहीं दे रहे हैं ।
जब अन्नपूर्णा शादी करके महेंद्र की ज़िंदगी में आई तब वह बहुत छोटी थी पर बड़े घर से आई थी इसलिए वह दबंग थी । किसी से नहीं डरती थी ।बहुत बड़े वकील की बेटी थी ।इसीलिए उसे ग़ुरूर था । ससुराल में भी कोई उसे कुछ नहीं कहते थे क्योंकि वह बड़े घर की बेटी है ।
महेंद्र भी अन्नपूर्णा की बातें ही सुन लेते हैं उन्हें लगता था कि घर में शांति बनाए रखने के लिए मुँह न खोलना ज़्यादा अच्छा है ।
इस तरह घर की शांति बनाए रखते हुए ही महेंद्र जी स्वर्ग सिधार गए । बहुओं ने भी मुँह पर ताला लगा लिया । अन्नपूर्णा महारानी की तरह घर के बागडोर को हाथ में लेकर खुश है । कोई नहीं जानता कि ऊँट कब करवट बदल लें वही हुआ जिसे नहीं होना था । अन्नपूर्णा नहाने के बाद बाथरूम से बाहर निकली कि नहीं उसका पैर मुड़ गया देखते ही देखते हाथ पैर मुड़ गए और वह गिर पड़ी मुँह से आवाज़ भी नहीं निकल रही थी क्योंकि मुँह भी मुड़ गया था । बेटे अभी ऑफिस के लिए निकल ही रहे थे जल्दी से अस्पताल ले कर गए डॉक्टर ने कह दिया कि लकवा हो गया है । दवाई दे दूँगा ख़याल रखिए ।
अन्नपूर्णा के बिस्तर पर गिरते ही जैसे सबको आज़ादी मिल गई है । मुँह से कह तो नहीं रहे थे पर बेटे भी खुश थे । सबने मिलकर सोच विचार कर एक हेल्पर को रख लिया क्योंकि बहुओं के मन में भी अन्नपूर्णा के प्रति इतनी कड़वाहट भर गई थी कि वे उनकी कही हुई बातों या तानों को भूल नहीं पा रहीं थीं । अब अन्नपूर्णा सोचती है कि चार बहुओं के होने पर भी उसे दूसरों के सहारे जीना पड रहा है । शायद मेरी कडुवी ज़बान ही है जिसकी सजा मुझे आज भुगतनी पड़ रही है । सच ही कहते हैं कि “अब पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत “ उसकी आँखों से टप टप पछतावे के आँसू बह रहे थे ।
के कामेश्वरी