मेरा आज भगवान से एक प्रश्न है,, बताइए कि,, मैं कौन हूं,, धूप में सुलगती, जलती एक संघर्षशील स्त्री जो थोड़ी सी छांव पाने के लिए तरसती रही हरदम,, क्या आपने मुझे किसी परीक्षा का इम्तिहान लेने भेजा है,या इस धरती पर इसीलिए भेजा है कि मैं एक एक करके सबको गंगा जी पहुंचाऊं,सबका दाहसंस्कार अपने हाथों से करूं,,
ये कितनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है आपने मुझे,, आपसे मैं ज़बाब चाहतीं हूं,,है कोई आप के पास तो ज़बाब दीजिए,, मैंने तो अपने सारे फ़र्ज़ पूरे कर दिए,अब आप क्या अपना फ़र्ज़ पूरा करेंगे,, मुझे भी किसी के द्वारा क्या संगम पहुंचायेंगे?? ,,या विदेश में बसी बेटियों के द्वारा विदेश की मिट्टी में ही दफन होने देंगे,,
आखिर मुझे भी तो कुछ सिला मिले,सारी जिंदगी धूप में जलती अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए एक पैर पर हमेशा सबके लिए खड़ी रही,,जब भाग्य ने थोड़ा सा रहम किया,, जीवन में खुशियां आने लगी, तो फिर से एक बार बेरहम तकदीर ने मेरे साथ भयंकर खिलवाड़ किया,, फिर से सुकून भरी छाया से चिलचिलाती धूप में खड़ा कर दिया,,
मैं जानती हूं कि आपने मुझे एक खास मकसद से इस जहां में भेजा है,अब आपका मकसद पूरा हो गया है,,अब आपकी क्या मरजी है,, और भी कई जिम्मेदारियां सौंपी थी आपने,आपकी कृपा से सबका निर्वहन मैंने कर दिया है,,
मेरे प्रभु,,अब तो जीवन की संध्या काल में मुझे घनेरी धूप से शांति और सुकून देती एक खूबसूरत छांव नसीब हुई है,, क्या आप अब मुझे इस छांव में बिना किसी व्यवधान के शांति पूर्वक सुकून भरी अंतिम सांस लेने देंगे,??, क्या आप मेरा साथ देंगे,,??
मुझे भी क्या गंगा की गोद नसीब होगी,??,बस आखिरी आरज़ू, है आपसे,,
मैंने बिना कोई शिक़ायत किए बगैर आपका काम किया,मेरा जन्म ही शायद इसीलिए हुआ!!, पिता,भाई,सास, ससुर,पति सबको मेरे द्वारा आपने संगम भिजवाया,, बेटियों को पढ़ा लिखा कर उनके पंखों को उड़ान भरवा कर उनकी इच्छानुसार विदेश जाने की अनुमति दे दी, दोनों बेटियां खुशहाल जिंदगी बिता रहीं हैं,,
अब प्रभु आप की बारी है,, मैं तो आपके इम्तिहान में पास हो गई हूं,,पास हो गई हूं ना,???
,, तो अब आपकी बारी है,,अब आप ही मुझे संगम भेजने की पूरी व्यवस्था करेंगे,, कैसे, किसके द्वारा, और कब?? ये मैं नहीं जानती अब आप जानो,
,,,**अब आपके हवाले मेरा तन है,हे प्रभु**
पर मुझे भी धूप से बचा कर कुछ दिन छांव में रहने देना मेरे प्रभु,,
सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र
#कभी धूप तो कभी छांव
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित