भरोसा – दीपा माथुर

राधा चौक में दरी बिछाए कपड़े तह करती हुई बडबडा रही थी।

धूप जाने का समय हो गया घड़ी भर कमर आड़ी की हो तो ?

और ऑफिस और स्कूल से आते ही सब ऐसे रॉब मारेंगे

जैसे बहुत आराम फरमा रही थी।

” मम्मी नाश्ता दो मुझे खेलने जाना है।”

विपिन ( बड़ा बेटा) बोलेगा।

और वो चुप नही होंगा उससे पहले ही सुरभि बोल उठेंगी

मम्मी आप भैया भैया का ध्यान रखती मेरी तरफ आप बिल्कुल ध्यान नही देती।

तभी राधा को याद आया आज ये(पति देव) बोलकर गए थे ड्राइंग रूम सेट करदेना मेरे साथ मेरे मित्र भी आयेंगे।

राधा के मस्तिष्क पर  थकान और तनाव तीन लकीरे उभर आई।

और उठ कर ड्राइंग रूम को सेट करने लगी।

तभी बाहर से अम्मा की आवाज आई 

“अरि ओ राधा कहा हो ?”

देखो कश्मीर साड़ी बेचने वाला आया है मोल भाव करवा कर ले लो।

अब हमारी तो उम्र है नही तुम लोग ही पहनी ओढ़ी अच्छी लगती हो “

राधा  बड़बड़ाती हुई बोली ” अम्मा जी अभी तक तो सुबह का काम ही नहीं हुआ और शाम हो गई सब घर आने वाले है।

पर चलो देखे तो?

कहती हुई शॉल वाले की बंधी गठरी वही खुल गई।

राधा बहन बनारसी साड़िया भी है।

दिखाऊं?

फेरी वाला बोला

राधा की तो जैसे सारी थकान ही दूर हो गई थी जल्दी से बोली 

“हा

हा 

जल्दी से दिखाओ?”

मोहल्ले की बहुत सी महिलाएं फेरी वाले के चारो तरफ

एकत्र थी।

भैया वो साड़ी

भैया ये साड़ी।

भैया ये कितने की ,वो…..

महिलाओं को तो नए कपड़े दिख जाए बस माहोल ही रंगीन हो जाता है।

सारे सुख,दुख परेशानियां ताक में रख देती है।

जब जब हरिया फेरी वाला साड़िया,सूट गाउन ,गर्म स्वेटर, शॉल लेकर आता तब तब मोहल्ले की प्रत्येक महिला के चेहरे से तनाव गायब हो जाता उनके चेहरे पर तो फेरी वाले को लूट कर सस्ते में बनारसी सिल्क की साड़िया खरीदने की खुशी अलग ही दिखती थी।

राधा ने एक लाल की साड़ी हाथ में ली और बोली भैया ये कितने की है।

पूरे पूरे दो हजार की।

राधा का मुंह छोटा हो गया और तुनक कर बोली” अरे इतनी महंगी भी कोई देता है भला।




पूरे सात सो से एक रुपया ज्यादा नहीं दूंगी।

नही दीदी इतने में तो नहीं भोगे खाता

अब तुम्ही सोचो पापी पेट के लिए ही तो घर घर मोहल्ले

में घूमता हु।

नही दीदी सात सो मैं तो नही बैठेगा।

चलो आप मेरी पक्की ग्राहक हो तो 1500 में दे दूंगा।

तभी अम्मा बोली ” देख ये भी अपनी ननद की शादी के लिए तेरी साड़िया खरीदती रहती है।

थोड़ा कम कर चल ना तेरी ना मेरी हजार में दे दे।

हरिया ने पहले तो मुंह बिचकाया फिर तैयार हो गया।

चलो ठीक है और दूसरी कौनसी पसंद आई।

ये प्योर कॉटन वाली राधा ने लपक कर एक सी ग्रीन साड़ी हाथ में लेते हुए कहा।”

“अपनी ननद को शादी में ये साड़ी दोंगी तभी रतना आंटी ने कुर्सी पर बैठे बैठे टला मारा और अपनी बात कह दी।”

राधा मुस्कुरा कर बोली ” भाभी वैरायटी तो होनी ही चाहिए ना?”

तभी पूजा आंटी मुंह बिगाड़ कर बोली ” अरे आजकल की छोरियां साड़ी पहनती कहा है?”

इससे तो सूट भी कर दो अब जाते ही तो कोई सूट दिला नही देगा।”

अम्मा हंसी और बोली ” हा हा जब अपनी बेटियो का नंबर आया तो सूट जिंस सब दे दो।”

तुम अपनी बहू को तो साड़ी का पल्लू सिर से भी नही उतरने देती।

वो भी किसी की बेटी है।

रतना आंटी बोली ” ये मेरी बहु के संस्कार है “

वो पहनना ही नही चाहती पर बेटी के ससुराल वाले तो बहुत मॉर्डन है वो तो सूट और जींस की ही बाते करते है।




हरिया अपनी साडियो की तह बना रहा था।

राधा ने अचानक हरिया से कहा ” देख हरिया अगले महीने जनवरी में मेरी ननद की शादी है

तुझे भी पता है एक साथ में खर्चा नहीं कर सकती ।

तु उधारी में साड़िया देता हो तो एक साथ पांच ले लू

पैसे आयेंगे तो पे से दिलवा दूंगी ।

तेरे पास पेटीम की सुविधा तो हे ना?

हा दीदी हे ना ये लो अपने मोबाइल से इसकी फोटो खींच लो।पेटिम कार्ड को आगे करता हुआ हरिया बोला।

महिलाओं की खट्टी मीठी नोक झोंक के बीच राधा ने छः

साड़िया खरीद ली।

और संतुष्ट मन से घर आ गई।

मन ही मन खुश थी ये ही साड़िया बाजार में सजी धजी बड़ी दुकानों पर चार पांच हजार रूपए की आती है।

और मैने( पारो दीदी) ननद की शादी में उनको देने और उनके ससुराल में देने के लिए और तो और बहन बेटियों

के लिए भी साड़िया जोड़ ली है।

अब जेंट्स कपड़े तो पारो दीदी के भाई जाने और उनका काम।

अब विजयी मुद्रा में राधा तेजी से ड्राइंग रूम की सज्जा में लग गई।

फिर बच्चो के स्कूल से आते ही उन्हें खाना खिला पिला कर थोड़ी देर खेलने भेज दिया।

जितने में ही पारो कॉलेज से आ गई।

देखो दी तुम कहती थी ना मुझे शादी में बनारसी साड़िया देना।

ये लो एक से एक सुंदर .”

पारो ने राधा का हाथ पकड़ा और बोली ” भाभी इतना पैसा कैसे?”

राधा ने पारो के गोरे गोरेगालो पर चिकोटी मारी और बोली ” वो ऊपर वाला बैठा है ना सब इंतजाम वही करता है हम तो मोहरा मात्र है।

चलो तुम रसोई से खाना लेकर खालों तुम्हारे भैया आज कुछ मेहमानों को लाने वाले है।




मैं चाय चढ़ा दू और नाश्ते की तैयारी कर दु।

पारो भाभी को निहारती हुई सोच रही थी।

पापा ,मम्मी के जाने के बाद भाभी ने सारी जिम्मेदारी अपने आप अपने कंधो पर ले ली।

कैसा मन होता है ना नारी का दूसरो को भी अपना बना कर रख देती है।

ऐसा लगता है ये घर भैया का थोड़ा भाभी का ज्यादा है।

एक बड़ी भाभी जिसने कभी पीछे मुड़कर नही देखा वो चाहती तो सारे काम एजिली हो जाते ।

इन भैया ,भाभी को इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती।

साल में एक दो बार आकर मम्मी को चांदी के गिफ्ट दे जाते और मम्मी भोली सी पूरे साल सबके सामने उनकी तारीफ करते नही थकती थी।

और जो मन से अपना कीमती समय अपनी सेवा मम्मी को देते उन्हे हमेशा तुच्छ समझती ।

हर समय सबके सामने बुराई करती।

मम्मी के जाने के  बाद भी चंद रुपए दिखा कर मुझे राजी रखने की कोशिश ताकि मैं हमेशा लोगो के सामने उनकी

तरफ दारी करती रहूं।”

और जो भैया भाभी मेरी हर छोटी मोटी खुशी का ध्यान 

रखते है वो सब नगण्य।”

पर मैं मम्मी की तरह नही हु।

तभी राधा की आवाज ने उसके विचारो पर लगाम लगा दी।

और दी आप यहां हो मै पूरे घर में आपको ढूंढ आई देखो

ये साड़िया कैसी है राधा ने पारो की आखों में आंखे डाल मुस्कुरा कर पूछा।

पारो के चेहरे पर भी खुशी उभर आई एक साड़ी उठा कर अपने कंधे पर लगाई और इतरा कर कमर मटका कर दो कदम चल कर बोली देखो भाभी मस्त लग रही हु ना?

हा हा बहुत सुंदर पता है मैने घर खर्ची से बचा बचा कर 

तुम्हारे लिए ग्यारह साड़िया और भुआओ के लिए बहन बेटियों के लिए,और तुम्हारे ससुराल वालो के लिए साड़िया ले ली है।

बचा जेवर तो मेरे यहां से जो जेवर चढ़ा था वो ही तुम्हारे लिए रख दूंगी ।

और बाकी अरेजमेंट तुम्हारे भैया जाने।

राधा अपनी धुन में सब कुछ गाती जा रही थी और पारो राधा की झोली में दुआएं भरने में लगी थी।

तभी भैया ने आवाज लगाई ” अरे राधा वो मैने कहा था ना मेहमान आने वाले है।”

आ गए? ओह कहती हुई राधा अपने पति ऋषभ के पीछे

पीछे चल दी।

ऋषभ राधा को धीरे धीरे समझा रहा था “पारो के ससुराल वाले है पारो को अचानक देखने आए है।

राधिका फुसफुसा कर बोली ” आप तो ऑफिस के आदमी बता रहे थे।

ऋषभ धीरे से बोला” हा ,पर क्या करता उसके ससुराल वाले बोले हम पारो को घर में जैसी रहती है बस उसी हालत में देखना चाहते है वो भी अचानक।




उनको तो कैंसिल करना ही था ना?

हा तो देखे दस बार देखे हमारी पारो दीदी लाखो में एक है।

सुनो जी तुम भी कभी लड़के को अचानक देखने जाना

 

आजकल किसी का भरोसा नहीं है। हम भी ऐसे ही रिश्ता थोड़ी ना कर देंगे।

पूरी छान बीन करेंगे।

रिश्तेदारी में भी आजकल किसी को कुछ पता ही नही चलता।

तुम्हे पता है वो मेरे मामा के साले के लड़के की जिससे

सगाई हुई वो लिव &रिलेशन में रह रही थी।

लो कर लो बात किसी को पता ही नही चला।

ऋषभ ” अब मेहमानवाजी के बारे में सोचो तुम्हारी कथा पुराण शाम को सुनुगा”

कहते हुए ऋषभ के कदम ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ चले।

और राधा के कदम किचन की तरफ।

तभी दो महिलाएं किचन की में आई ।

राधा ने उन्हें झुक कर प्रणाम किया तो उनमें से एक बोली ” एक ननद के बारे में भाभी से अच्छा कोन जानता है ?”

राधा बोली ” बहनजी दिया लेकर ढूंढोंगे तो मेरी पारो दी जैसी पढ़ी लिखी संस्कारित लड़की नही मिलेगी।”

दोनो राधा की बात पर मुस्कुरा दी।

जवाब में उनमें से एक बोली ” इस जमाने में आप जैसी

भाभी को भी ढूंढना उतना ही मुश्किल है।”

अब हमे तो पारो बिटिया को दिखा दीजिए।

राधा ने उंगली से इशारा कर दिया।

पारो सिंपल से सूट में अपने कॉलेज के कपड़ो को तह कर रही थी।

देखते ही बोली ” देखिए राधा बहन में लडके की मम्मी हु

मुझे लड़की पसंद है।

आप भी लड़के को देख छान बीन कर जब संतुष्ट हो जाए तो हम लड़के लड़की को आपस में मिलवा देंगे।




राधा बोली ” आजकल ये सब जरूरी है।

हसी खुशी सब को विदा करने के बाद ऋषभ बोला अब जाकर मन हल्का हुआ है लड़के वाले तो बहुत ही भले है

मैं तो जल्दी से हा भर देता हु।

राधा बोली ” क्यों जल्दी किस बात है?

पहले हम लोग भी छान बीन करेंगे सुना नही क्या वो नलिनी बुआजी की ननद का लड़का शादी किसी के साथ हुई और प्रेमप्रसंग किसी के साथ।

आजकल बच्चो का रिमोट कंट्रोल  माता पिता के हाथ

 से एकदम मोबाइल ( मीडिया) ने ले लिया है।

बैचारे पेरेंट्स भी अपनी संतान से अनभिज्ञ है तो पास ,पड़ोसियों की तो बिसात ही क्या?

इस मामले मै तो सिर्फ खुद पर भरोसा रखो यही कहूंगी।

लड़के के यार दोस्तो कॉलेज सहपाठियों , रिश्तेदारों से कन्फर्म हो जाए तभी रिश्ते के लिए हा भरना उचित होंगा

वरना मुश्किल है।

ऋषभ बोला “सही कह रही हो मेरे दोस्त शुभम के बेटे की जिस लड़की से बात चली थी वो तो लिव & रिलेशनशिप में किसी के साथ रह रही थी।

चलता होंगा विदेशों में 

यहां ऐसे संस्कार ना भाई ना।

तुम मुझ पर भरोसा रखो लड़के की पूरी छान बीन करूंगा।

लोगो को जो भी कहना है कहे मैं अपनी बहना की जिंदगी को नरक में नही झोकूंगा।

दरवाजे के पीछे खड़ी पारो सब सुन रही थी।

सोचने लगी ” कितनी आसानी से मां की जगह राधा भाभी ने ले ली।”

मैं रोज नोकरी पर जाती हु।

लोगो से मिलती हु।

पर भाभी की यह बात की भरोसा तो खुद पर ही सबसे ज्यादा होना चाहिए।

आज समझ में आई।

छः माह बाद ही पारो की शादी एक अच्छे घर में कर दी गई।

लोग तरह तरह की बाते कर रहे थे बिन मां,बाप की बच्ची है इसीलिए नोकरी करती बहन को साधारण घर

में दे दिया जिसका तो अपना मकान ,भी नही है।

पर पारो और राधा को खुद पर भरोसा था।

कैसी लगी मेरी ये रचना जरूर बताएं।

अपने अनमोल सुझावों से भी मुझे अवगत करवाएं।

दीपा माथुर

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