मिलन – डाॅ उर्मिला सिन्हा

 “मां…मां..आप सुन रही हैं न.. हम परसों सुबह पहुंच रहे हैं..बाय..”

   बेटा आयं..बायं   ..हजारों  बातें…अपनी मां से फोन पर ……उम्र के आखिरी पडा़व पर वह..अपनी देवी सदृश मां  का आंचल .. खुशियों से भर देना चाह रहा था..

         “ठीक है…ठीक है..”वे सुन कहां रही थी..दिल-दिमाग में तूफान -सा मचा हुआ था.  आज चालीस वर्षों के पश्चात उनका विखंडित अतीत ..जिसकी कड़वाहट वह.. थू ..कर चुकी थी ..हालत से समझौता कर लिया था..सबकुछ भुल चुकी थी…ऐसे सामने आयेगा …सपने में भी नहीं सोचा था...

 प्रसिद्ध मेडिकल कालेज के अंतिम वर्ष के छात्र प्रतिभाशाली.. आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी ..डाॅ शेखर,…वहीं नर्सिंग की पढा़ई करती अनिंद्य सुंदरी..शांत.. अपने व्यवहार से सबका दिल जीतने वाली राधा…

     पठन-पाठन के सिलसिले में आपस में टकराना…फिर दोस्ती.. अपनापन कब अंतरंगता में परिणत हो गया…दोनों युवा हृदय समझ नहीं पाये…

  “बस ,अब छः महीने के भीतर विवाह.. “

डाॅक्टरी की डिग्री हाथ में आते ही डाॅ शेखर ने उसकी आंखों में झांका…

   ‘” मैं भी नर्स बन जाउंगी …”राधा कहते-कहते रूक गयी..शरम से  गाल…लाल  .  …जुल्फें हवा में उड़ने लगी…साथ ही मन भी.. 

    …”  विधना के कछु और… “डाॅ शेखर को आगे की पढाई के लिये विदेश जाना निश्चित हुआ…शर्त ..भेजने वाले बिजनेसमैन के डाॅक्टर बेटी से विवाह करने की…

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    युवा डाॅ शेखर पहले सकपकाये किंतु सुनहरे भविष्य का अंधा मोह…

  हाय रे प्रेम..प्यार के कसमें-वादे.. राधा ने सुना..स्तब्ध रह गई ,”ऐसा नहीं हो सकता …”आंखों के आगे अंधेरा छा गया..

   रो-रोकर चिरौरी करती रही..”मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं..”

  “मेरे भी कुछ सपने हैं..आकंक्षाएं हैं ..आगे बढने का अवसर कैसे जाने दूं..”

     …”और मैं..हमारा बच्चा..”

  “क्या बच्चा-बच्चा लगा रखा है..तुम नर्स हो सब जानती हो…एबार्शन करवा लो..आजाद हो जाओ..मेरी परसों फ्लाईट है ..मैं इन वाहियात कारणों से नही रूक सकता..डाॅ शेखर ने पल भर में पाला बदल लिया..निर्लज्जता पर उतर आये.

.लुटी-पिटी  ठगी सी राधा…वही पुरानी प्रेम -कहानी..भुगतना स्त्री को ही पडता है..

    राधा जीवट वाला लड़की थी..उसने अपना तन-मन डाॅ शेखर को हृदय से सौंपा था..उसमें कोई छल या स्वार्थ नहीं था…और बच्चा उसके पवित्र प्रेम की निशानी.. 

     उसने आंसू पोंछे…नर्स की डिग्री थी ही…अपने माता-पिता के पास भी नहीं गई …बेकार बुढापे में उनकी किरकिरी होती…खत लिख दिया..”मुझे नौकरी मिल गयी है…जल्दी आऊंगी।”

    और सुदूर पहाडी़ पर बसा …मिशन हास्पीटल में उसने बतौर नर्स ज्वाईन कर लिया।

    वहां सभी अपने काम से काम रखते..राधा ने अपने को विधवा बताया…उसने हृष्ट-पुष्ट बेटे को जन्म दिया.. 

    माता-पिता को चिट्ठी लिखी ..”.छुट्टियो में आउंगी…यहां काम बहुत है…”

   पिता लिखते ,”तुम्हारा विवाह तय कर रहा हूं..तुम्हारी स्वीकृति चाहिये…”

    “इतनी जल्दी क्या है…मैं बताउंगी.. न …”और सीधे- सादे माता-पिता इकलौती बिटिया के  हकीकत से अनजान ..उसे बिदा करने की लालसा लिये एक दुर्घटना में एक साथ चल बसे..

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     वह अकेले आई…लायक संतान के समान सब कर्म-काण्ड किया.. सब कुछ एक निर्धन रिश्तेदार को सौंपकर चली आई..”आती..जाती रहूंगी…”के आश्वासन के साथ.. 

   बेटा सूरज..कुशाग्र बुद्धि अपने पिता का प्रतिरूप…सुंदर..स्वस्थ..निकला..

    वह आर्थिक रूप से सबल थी..अपनी उत्कृष्ट नर्सिंग सेवा के तहत कई पुरस्कार मिले…समाज में मान-सम्मान अलग…

      दुनिया समझती थी वह एक बेटे की विधवा मां है…

    वही बेटा सफलता की सीढियां लांघता आज नामी हास्पीटल में हृदय-रोग विशेषज्ञ डाॅ सूरज है..

     हुआ यह कि एक दिन किसी कार्यवश वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डाॅ शेखर …डाॅ सूरज के आवास पर गये…वहां डाॅ सूरज का अनेक चित्र …बचपन का मां की गोद में…फिर बडा़ होने पर मां के साथ..

  डाॅ शेखर चौंक गये..दिल धक-धक करने लगा…इतने बडे़ हृदय रोग विशेषज्ञ और आज अपना ही दिल काबू में नहीं…

     “ये.. ये.. कौन हैं.. “

“मां…मेरी मां है..राधा…”डाॅ शेखर ने गर्व से कहा..

  फिर परतें खुलती  गई  ..कैसे वे अपनी मासूम प्रेमिका के कोख में अपने प्यार की निशानी छोड़…

    यह कैसा स्वार्थ.. कैसा जुनून..वे उत्साह में सफलता की सीढियां चढते गये…किंतु अपने पहले प्यार राधा को भूल न सके..




    स्पांसर की बेटी ने भी अपने पिता की एक न सुनी …अपनी मर्जी से घर बसा लिया..पिता हाथ मलते रह गये..

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“मैंने राधा की बहुत तलाश की …कुछ पता न चला..मैंने भी विवाह नहीं किया और एक निश्छल निर्दोष कन्या के जीवन बरबादी का सबब अपनेआप को मानकर प्रायश्चित की अग्नि में जल रहा हूं.. “

ओह..बेटा सब समझ गया..कुंवारी मां को समाज में क्या स्थान प्राप्त  होता है .. उसकी बहादुर ,स्वाभिमानी मां ने उसे विधवा बनकर जन्म दिया और इस योग्य बनाया कि वह समाज में सिर उठाकर चल सके…

    नाजायज औलाद कहने से बचा लिया…

   परन्तु पिता की सच्चाई जान कलेजे में कुछ दरक- सा गया..किंंतु मनुष्य सदा से ही परिस्थितियों के आगे विवश है…

   …”आखिरी निर्णय मां का होगा.. छल उनके साथ हुआ है.. “

“मैं समझ सकता हूं..”

   डाॅ शेखर को सुखद  अनुभूति हुई … उसके पिता जीवित हैं…दोनों हृदय-विशेषज्ञ चल पडे़ एक टूटे हुए…आहत दिल को संवारने…

    प्रायश्चित ताउम्र दोनों  ने किया..

  डाॅ शेखर ने  अपने बच्चे की मां बनने वाली अनव्याही माशुका को  बीच मंझधार में छोड़कर… और उधर विवाह पूर्व मर्यादा तोड़ने की..गुस्ताखी में

.राधा ।

 “अच्छे संस्कार दिये हैं बेटे को जिसने माता-पिता का मिलन करा दिया!” लोग बाग कहने लगे। 

#संस्कार 

  सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना-डाॅ उर्मिला सिन्हा

 

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