ब्याह के दस साल बाद भी राजन और उमा संतान सुख से वंचित रहे!
संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने हर मंदिर में दिये जलाऐ,हर चौखट पर माथा टेका,हर मजार ,दरगाह पर चादर चढ़ाई,हर गुरूद्वारे पर अरदास लगाई!
जाने कितने व्रत अनुष्ठान कराऐ!
आखिरकार भगवान ने उन की सुन ली!
उनके घर विनय के रूप में चांद सा बेटा हुआ!
राजन और उमा के लिए दुनियाभर में अगर कोई चीज प्यारी थी तो वह था विनय!
उसकी हर गलत सलत डिमांड को वे पूरा करने में एक मिनट भी न लगाते!
जैसे जैसे वह बड़ा हुआ उसके दिल में एक चीज घर कर गई कि वह कुछ भी करे उसे कोई टोकने वाला नहीं है!
उनके लाड़ प्यार ने उसे एक हद तक उदंड,घमंडी और बदतमीज़ बना दिया था। सिगरेट फ़िर शराब, लडकियों को छेड़ना विनय की आदत में शुमार होने के लगा था।
संस्कार और जीवन मूल्यों की जगह उन्होंने विनय को पैसों की घुट्टी पिलाई।पैसे के आगे विनय के लिए सारे रिश्ते नाते बेमानी थे।
विनय की बूढ़ी दादी और विधवा बुआ भी उनके साथ रहती!दादी अगर उसकी किसी गलती पर टोकती तो विनय बिफर कर कह देता”शट अप दादी मेरी चौकीदारी करने से अच्छा है भगवान भजन किया करो,अपने मतलब से मतलब रखो!”
और बुआ को तो वह कुछ समझता ही नहीं था उसके कुछ भी कहने पर उसे घुड़क देता” इस घर में रहना है तो चुपचाप एक कोने में पड़ी रहो ,मेरे मामलों में दखल दिया तो पापा से कहकर घर से निकलवा दूंगा”!
नौकरों से तो जैसे विनय बिना गाली-गलौज के बात कर ही नहीं सकता था!
पहले स्कूल फिर कॉलेज में बार-बार फेल होने के कारण और उसकी अय्याशियों से तंग आकर राजन ने उसे डोनेशन देकर लंडन भेज दिया!
जैसे तैसे विनय ने लंडन में पढ़ाई पूरी की,और छ महीने पहले वहीं पर एक अमीर अंग्रेज़ की लड़की रोमा से शादी कर घर जंवाई बन गया।
अब उसकी गोरी मेम इंडिया घूमना चाहती थी इस लिए वो दोनों आ रहे हैं।
राजन और उमा की खुशियों का ठिकाना नहीं था, बेटे की बारात तो नहीं ले जा पाऐ थे इसलिए उन्होंने एक रिसेप्शन रखा।
मुंह दिखाई में उमा ने उसके हाथों में मोटे मोटे जड़ाऊ कंगन पहनाऐ,पैरों में कुन्दन की पायजेब ,सारे ज़ेवर पहन कर रोमा की खुशी का ठिकाना नहीं था।
शाम के रिसेप्शन में उमा ने उसके लिए लाल रंग का लहंगा बनवाया था, आज उमा बहू के सारे चाव पूरे कर लेना चाहती थी।
रिसेप्शन खत्म करके उमा अपने गहने उतार ही रही थी कि रोमा और विनय आए, रोमा लपक कर उमा के गले लग कर बोली”ओ मदर इन ला,यू आर सो स्वीट “उमा उसका लाड़ देख कर गद् गद् हो गई, फिर उमा के गले का हार और मोटे मोटे कुंदन के कंगन हाथ में लेकर बोली” आय लव दैम “तभी विनय बोला”दे दो ना मम्मी इसे!और फिर अब आपकी उमर भी कहाँ रह गई ये सब पहनने की?
उमा के पास बस यही बचा था बाकी तो उसने पहले ही रोमा को दे ही दिए थे।उस वक्त उमा बहू के चाव में ऐसी पागल हो रही थी कि अपना आगा पीछा सोचना भी भूल गईं थीं।सब गहने बहू को दे दिए यह सोच कर कि घर के घर में ही रहेंगे।
रात भर में विनय और रोमा ने खिचड़ी पकाई कि उमा और राजन को लंदन ले चलते हैं, मम्मी घर का काम कर लेंगी और पापा बाजार और सफाई वगैरह
अगले दिन सुबह विनय और रोमा ने बड़ा लाड़ दिखा कर उन्हें मकान बेचने और लंदन चलने को राजी कर लिया।
विनय ने चटपट ब्रोकरों से बात कर मकान बिकवा कर कैश अपने कब्जे में कर लिया,बाकी चेक बैंक में जमा करा दिए, राजन को समझाया कि आपके हाथ दस्तखत करते हुए कांपते हैं इसलिए मेरा नाम भी अकाउंट में डाल दें।उन्होंने पुत्र मोह में आ के वैसा ही कर दिया।
विनय ने राजन और उमा को समझाया कि अब वे भी लंदन चले जाऐंगे इसलिए फर्नीचर वगैरह भी बेच देते हैं!
मिले हुए कैश से विनय और रोमा ने मजे से पूरा भारत दर्शन किया।
हफ्ते भर बाद विनय ने बताया कि वो तीन बेडरूम घर लेकर उन दोनों को जल्दी ही आकर लंदन ले जाएगा।जिसने मकान खरीदा है वह दो महीने तक आप दोनों को रहने देने को मान गया है!
उमा और राजन को बुरा तो बहुत लगा पर उन्होंने सोचा बस कुछ दिनों की तो बात है फिर हम सब साथ ही रहेंगे।
लंदन जाकर रोमा ने विनय को पट्टी पढ़ाई कि मम्मी- पापा बीमार से रहते हैं यहाँ मेडिकल एड बहुत मंहगी वो हमारे किसी काम भी नहीं आ सकते,उन्हें वहीं रहने देते हैं!
एक महीना बीत गया अब विनय ने उनकी सुध लेना तो दूर उनका फोन उठाना भी बंद कर दिया!
दो महीने बाद मकान के खरीदार ने आकर उन्हें खाली करने को कहा और बताया कि विनय को फोन किया था कि वह आप लोगों को ले जाए तो उसने कहा कि बार-बार उसे परेशान न करूं आप लोगों का बंदोबस्त किसी वृद्धाश्रम में करा दूं वह थोड़े-बहुत पैसे भेज देगा!
उमा और राजन सब कुछ होते हुए भी अपने ही बेटे के हाथो ठगकर हक्के- बक्के रह गए, पुत्र मोह ने उन्हें आकाश से उठा कर कुछ पलों में ही धरती पर पटक दिया। उन्होंने कभी सपने में भी सोचा न होगा कि उनकी अपनी इकलौती औलाद उन्हें ज़िंदगी का सबसे बड़ा धोखा देगी!
आज उमा और राजन को रह रहकर दुख हो रहा था कि पैसा ही सबकुछ नहीं होता यह समझाने के बजाए अगर उन्होंने अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिये होते ,उसे सही-गलत में भेद करना ,बड़ों का आदर करना सिखाया होता और शुरू से ही उसकी गलतियों को बढ़ावा न दिया होता तो शायद ये दिन ना देखना पड़ता!
मां-बाप थे न उसे बद्दुआ भी नहीं दे सकते थे!
#संस्कार
कुमुद मोहन