” पहल” – अनिता गुप्ता

क्या इसी दिन के लिए तुम्हें इतना पढ़ाया लिखाया था।” सासु मां ने अपनी बहु रुचिका से कहा।

” लेकिन मां! ” रुचिका ने कहना चाहा।

” लेकिन वेकिन कुछ नहीं। मैं चाहती हूं तुम अन्याय के खिलाफ आवाज उठाओ।इसलिए ही तो तुमको एलएलबी करने के लिए प्रेरित किया था। जिससे तुम बेकसूर पीड़ित महिलाओं को न्याय दिला सको।” सासु मां ने कहा।

” लेकिन मां! अपनों के खिलाफ जाना क्या ठीक होगा ? अगर परिवार की बात परिवार में ही सुलझ जाएं तो अच्छा है।” रुचिका बोली।

” बेटा! एक तरह से हम महिलाएं ही अपने ऊपर होने वाले अत्याचार को बढ़ावा देती हैं।हमारी चुप्पी को हमारी कमजोरी समझ कर अत्याचारी और ज्यादा निडर हो जाते हैं। इसलिए शुरुआत में ही विरोध दर्शाना जरूरी है। महिलाएं  बाहर की अपेक्षा घर में ज्यादा असुरक्षित हैं। रिश्तों की खातिर हम चुप रहती हैं और दुराचारी अपने रिश्तों  की मर्यादा भूल कर अपनी मन मर्जी करते हैं।” सासु मां ने कहा।

” इस लड़ाई में आप मेरा साथ देगी ? मां ।” रुचिका ने पूछा।

“रुचि ! मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं। मैंने खुद इस दर्द को सहा है।इसलिए ही मैंने तुमको वकालत की पढ़ाई करने के लिए कहा। ताकि तुम उन बेजुबान महिलाओं का दर्द समझकर उनको अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित करो और उन्हें कानूनी रूप से न्याय दिला सको। क्योंकि घर में उन दुराचारियों के साथ रहना और उनके साथ सामान्य व्यवहार करना,एक तरह से रोज तिल – तिल करके मरने के समान होता है। 10 साल तक मैं अपने चाचा ससुर की हवस का शिकार होती रही और उन्होंने मुझे इतना डरा दिया था कि उनकी शिकायत भी किसी से नहीं कर पाई।यहां तक कि तुम्हार पापाजी को भी कुछ नहीं बताया। दूसरा उनका परिवार में दबदबा भी बहुत था।




10 साल बाद जब सब संयुक्त परिवार से अलग हुए तब जाकर मुझे उस नरक से मुक्ति मिली। उन्हीं दिनों मैंने सोच लिया था कि अपनी बहु को मैं निडर और तेज तर्रार बनाऊंगी। जिससे तुम हर दुखी औरत की लड़ाई लड़ सको ।

कल ही तुम विवेक यानि मेरा बेटा और तुम्हारा पति के खिलाफ सबूत जुटाने शुरू कर दो और मैं मंजू को तैयार करती हूं कि वो विवेक के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट लिखवाए।” सासू मां ने कहा।

” मां आप बीच में कमजोर तो नहीं पड़ जाएगी ना?आखिर विवेक आपका बेटा है।” रुचिका ने पूछा”

” हरगिज़ नहीं। तुम केस लड़ने की तैयारी करो।” सासु मां ने दृढ़ता से कहा।

रुचिका अपने पति के खिलाफ सबूत जुटाने में लग गई। जिसे उसने अभी दो दिन पहले सफाई करने आने वाली मंजू से दुराचार करते अपनी आंखों से देखा था। जब वो अचानक घर पहुंची और किसी के दरवाजा ना खोलने पर उसके पर्स में रखी दूसरी चाबी से दरवाजा खोल कर अंदर पहुंची। उसने चुपचाप से वीडियो रिकॉर्डिंग कर के जब सासु मां को दिखाया, तब सासु मां ने ही उसको आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया।

दोस्तों ये कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और जैसा इसमें लिखा गया है,वो भी व्यवहारिक जिंदगी में  होना मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं है।जब तक हम सब महिलाएं सारे रिश्ते भूल कर एक होकर आवाज नहीं उठाएगी, तब तक हम इस लड़ाई को नहीं जीत पाएगी।

अनिता गुप्ता

#मर्यादा

 

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