” ढहते मर्यादा के बांध ” – डॉ. सुनील शर्मा

तटबंध कितने भी सुदृढ़ हों, यदि कहीं एक जगह भी कमज़ोरी हो, तो सैलाब को फैलते देर नहीं लगती. ऐसे में विनाश अवश्यंभावी है.

 

नीता को जब बॉस ने आउट आफ टर्न प्रमोशन की सूचना दी तो वह विश्वास नहीं कर पाई. एम बी ए करने के बाद आकांक्षाओं से भरी नीता ने बड़े शहर में नामी मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी पाई तो मां एकदम तैयार नहीं थीं. ‘अब हमने पढ़ा लिखा दिया, काबिल बना दिया, बस अब विवाह हो और बेटी अपने घर जाएं. फिर उनपर है कि नौकरी कराएं या नहीं ‘ लेकिन पापा ने हमेशा की तरह स्पोर्ट किया. ‘ अभी उम्र ही क्या है. शादी की कोई जल्दी नहीं. कुछ दिन काम करने दो. उसके भी सपने हैं.’ 

 

पिछले दो वर्ष से पी जी में रह रही थी. और भी सब ऐसे ही रहे थे. मां पापा जब तब समय निकाल कर आ जाते. खाने की कोई परेशानी नहीं थी फिर भी मां के बनाए लड्डू आदि हमेशा कमरे में रहते. अब मां भी संतुष्ट थीं. ऑफिस में भी नीता ने अपनी काबिलियत से अच्छा प्रभाव डाला था. इस बार अच्छे इन्क्रीमेंट की भी उम्मीद थी. लेकिन इस ऑउट ऑफ टर्न प्रमोशन ने उसे चौंका ही दिया था. 

अब जब बॉस ने शाम को डिनर का प्रपोजल दिया तो वह मना न कर सकी. 

 

शहर के अच्छे रेस्तरां में टेबल बुक थी. नीता नियत समय पर पहुंच गई. उसके बॉस पहले से ही वहां मौजूद थे. बॉस ने शैम्पेन मंगाकर सैलिब्रेशन करना चाहा लेकिन नीता ने ऑरेंज जूस मंगाया. नीता वॉश रुम से होकर आई . जूस आ गए थे. खाने का ऑर्डर भी दे दिया गया. खाना खाते खाते ही बॉस वहीं सो गए. मैनेजर ने उन्हें सहारा देकर एक कमरे में पहुंचाया. नीता को मालुम न था कि बॉस ने रूम भी बुक करवाया था. वह घबरा गई लेकिन मैनेजर ने बताया कि जब वह वॉशरूम गई थी, उसने बॉस को नीता के जूस में कुछ डालते देख लिया था. उसने ही ग्लास बदल दिए. नीता को कैब लेकर घर जाने के लिए कहा. मर्यादाओं के तटबंध टूटने को थे लेकिन मैनेजर ने चट्टान बनकर सैलाब को रोक दिया. 

अगले दिन ही नीता ने ईमेल से अपना त्यागपत्र भिजवा दिया.

– डॉ. सुनील शर्मा

गुरुग्राम, हरियाणा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!