भूख-बेला पुनिवाला

 इस तस्वीर को ज़रा गौर से देखिए, इसे देखकर क्या आप को लगता है की, इस मासूम से लड़के को नींद के लिए किसी मुलायम गद्दे की या किसी रेशमी चद्दर की या किसी, a.c या पंखे की या किसी नींद की गोली की ज़रूरत होगी   ?

          नहीं ना !  में इस लड़के को अपनी ऑफिस की खिड़की से रोज़ देखा करती  हूँ, ये लड़का हमारी ऑफिस के सामने की ओर बैठकर रोज़ जुते पोलिश किया करता है, में उसे बार बार खिड़की में से देखा करती हूँ, शाम को उसका  पिअक्कड़ बाप आके उसे मार के उसके पास से  सारे पैसे छीन कर चला जाता है, वह रोता रहता है और वहीं  रोते रोते उस पत्थर पे सिर रखकर सो जाता है, मुझे उस मासूम से चेहरे पे बड़ी दया आती है।

         में रोज़ सुबह ऑफिस आते वक़्त उसके लिए बिस्किट्स लाती हूँ, और दोपहर वड़ा पाव और शाम को कभी कभी सैंडविच दे देती हूँ, वो खुश होके खा लेता है, और मुझे thank you दीदी कहता है। मुझे भी एक अपनापन सा लगता है उससे, इसलिए मैं उसे मुन्ना कहकर बुलाती हूँ। मुन्ना बातों बातों में मेरे जुते भी पोलिश कर लिया करता है, और मुझ से पैसे भी नहीं लेता, मगर में ज़बरदस्ती उसको पैसे दे ही देती हूँ, कहकर की अपनी मेहनत का पैसा कभी छोड़ना नहीं चाहिए, और वो मुस्कुराता रहता है।

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        मैंने उससे एक बार पूछा की क्या तेरा मन नहीं करता, दूसरे बच्चे की तरह स्कूल जाके पढ़ने का ? जी दीदी मन तो बहोत करता है स्कूल जाने का, मगर मुझे मेरे काम से फुर्सत कहाँ ? अगर में स्कूल चला गया तो यहाँ सब के जुते पोलिश कौन करेगा ? ये सोच मैंने अपना इरादा बदल दिया। मगर हाँ देखना दीदी, में भी आपकी तरह एक दिन बड़ा आदमी बनूँगा, और आपके साथ ही शादी करूँगा और आपको रोज़ वड़ा पाव  खिलाऊँगा। उसकी बात सुनकर मुझे  हसी आ जाती और उस से कहती की उसके लिए पहले तू बड़ा तो हो जा। और वो मुस्कुराके कहता की वो तो में हो ही जाऊँगा, आप देखती रहना दीदी। में हंस कर ( अपने हाथों से उसके बालो को बिखेरते हुए ) उसे कहती की मुझे दीदी भी कहता है और मुझ से शादी की बात भी करता है, तू सच में पागल है। 

मुन्ना ( अपने कान पकड़कर ) कहता है,सॉरी दीदी।

        फिर एक दिन मुझे ऑफिस के काम से 5 दिन बहार जाना पड़ा। वह 5 दिन मुझे मुन्ने की  और उसकी नादानी भरी बात रोज़ याद आ जाया करती।       

         5 दिन बाद जब में अपना काम ख़तम करके ऑफिस पहोची, तब मैंने अपने कार में से उतरते हुए देखा, की मुन्ना, हमारी ऑफिस के सामने जहाँ रोज़ बैठता था, वहांँ  कुछ लोगो की भीड़ जमी हुई थी, में भागती हुई पहले उधर गई, सबको हटाकर मैंने देखा तो मेरी सांँसे ही रुकने लगी, मुन्ना ज़मीन पर लेता हुआ था, उसके सिर से खून भी बह रहा था और उसका पिअक्कड़ बाप उसकी जेब में से रुपये निकाल रहा था, मैंने गुस्से से उसके बाप को धक्का लगाया।



           फिर मैं  मुन्ने को उठाकर डॉक्टर के पास ले गई, और डॉक्टर को कहा की ज़रा दिखेए, इसे क्या हो गया है ? ये अपनी आंँखें नहीं खोल रहा और कुछ बोलता भी नहीं, डॉक्टर ने मुन्ना को चेक करके बताया की आपने इसे यहाँ लाने में थोड़ी देर कर दी है, he is no more, और लगता है, इसने कुछ दिनों से कुछ खाया नहीं और इसकी चोट देखकर लगता है, की किसी ने इसे बहोत मारा भी है,

    ये सुनकर मेरी आँखों से आँसुओ की बरसात होने लगी, मुझे गिरते गिरते डॉक्टर ने सम्भाला और  कुर्सी पे मुझे बैठाते हुए  कहा की आप बैठ जाइए और अपने आप को सम्भालिए, और  पूछा की ये लड़का आपको कहा मिला ? और ये आप का क्या लगता है ?

       मैंने रोते हुए, कहा ये मुन्ना है, जो मेरा कुछ ना होकर भी  मेरा सबकुछ है, जो अब नहीं रहा, शायद में ज़रूरी काम से इतने दिन बहार ना गइ होती, शायद मैंने किसी को बोल दिया होता, की मेरे मुन्ने को रोज़ वक़्त पे खाना खिला देना, शायद इसके बारे में मैंने पहले कुछ सोचा होता, तो शायद आज ये मेरे सामने मेरे साथ वड़ा पाव खा रहा होता, और मुस्कुराके कहता की thank you दीदी। मगर की अब ये एक सपना बन गया मेरे लिए।

         डॉक्टर ने कहा इसका ज़िम्मेदार आप अपने आप को मत ठहराइए, उपरवाले की मर्ज़ी के आगे हम कुछ नहीं कर सकते, शायद ऊपरवाला भी यही चाहता होगा,

        हाँ डॉक्टर जी, शायद आप सच ही कह रहे है, अच्छा ही हुआ, वार्ना इसका बाप इसे रोज़ रोज़ मारता रहता, आखिर कब तक ये सेहता रहता, चलो इस मार से तो इसे मुक्ति मिली, कहते हुए ( मैं उसे अपने हाथो से  उठाकर वहाँ से ले गई और इसको अच्छे से ज़मीन में  दफ़ना दिया। )



           मुन्ना को गए हुए आज ६ महिने हो गए लेकिन आज भी जब भी में हमारी ऑफिस की खिड़की से बहार देखती हूँ, तो मुझे मुन्ना मुस्कुराते हुए दिखाई देता है, और कहता है, की  ” में भी एक दिन आप की तरह बड़ा आदमी बनके दिखाऊंँगा, और देखना आप से ही शादी करूँगा।” उसकी आवाज़ आज भी मेरे कानो में गूंँज रही है, उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा आज भी मेरी नज़रो से हटता नहीं, और आज भी मेरा मन यही कहता है, की काश, की उस दिन में काम से बहार ना गई  होती, तो शायद  मुन्ना यूँ भूखा पेट ना रह पाता। जो रिश्ते दिल से जुड़े होते है, उन रिश्तो  का कोई नाम नहीं होता, मगर वह रिश्ता  हमें उम्र भर याद ज़रूर रह जाता है।

          बात सिर्फ 10 रुपये का बिस्किट्स , 10 रुपैये का वड़ा पाव और 20 रुपैये की सैंडविच की थी, जिससे किसी की भूख अगर  मिट  सकती है, तो उस भूखे  को रोटी  खिलाना भी भगवान् की पूजा बराबर ही है। ये सोच हर महीने अपनी कमाई में से कुछ पैसे अनाथालय में देती हूँ,

           तो दोस्तों, भूख क्या होती है ? और रोटी की कीमत क्या होती है ? ये एक गरीब के अलावा कोई नहीं जान सकता।  जो एक रोटी के लिए पूरा दिन काम करते है, और अगर वही रोटी उससे कोई छीन ले तो उस बच्चे  की क्या हालत होती होगी, ये मैंने देखा है। तो फिर ये तो एक नन्हा फरिस्ता था, जो किस्मत का मारा था, जिसे में शायद ही कभी भुला पाऊँ। 

           दोस्तों, सोचो अगर किसी को दो वक़्त की रोटी देने से किसी की ज़िंदगी बच सकती है, तो अगर वो देनेवाले हाथ हम बन जाए, तो शायद कोई गरीब लड़का यूँ भूखे पेट कभी ना सोएगा, और नाही भूख से तड़प के मरेगा। और इस नेक काम के लिए हमारे ऊपर भी एक  हाथ है, वह भी कभी हम से नहीं हटेगा, इतना मुझे पक्का यकीं है।

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