अब”बुरी बहू” के टैग से फ़र्क नहीं पड़ेगा !!- -मीनू झा

वह कभी हिम्मत हारने पर विश्वास नहीं रखती थी..तभी तो सारे एक तरफ वो अकेली एक तरफ और लगातार सफाई देती ही रही और अपने आपको सही सिद्ध करने के लिए लड़ती ही रहती…पर आज डाॅक्टर ने जो कहा उससे वो हिल गई…

 

मिसेज वर्मा…जितनी जल्दी जल्दी आपको शुगर, ब्लड प्रेशर और थायराइड हुआ है…इट्स नॉट ए गुड साइन…आपको हर चीज छोड़कर अभी खुद पर और सिर्फ खुद पर ही ध्यान देना चाहिए… अच्छी डाइट…अच्छा वातावरण,अच्छी सोच और स्ट्रेस से जितना हो सके दूर रहकर अभी आपको अपनी सेहत के बारे में ही सोचना चाहिए।

 

मतलब…हिम्मत तो अभी भी नहीं हारना है पर अब लड़ने का क्षेत्र बदलना होगा…।

 

डेढ़ साल हो गए ससुरजी को गए….पूरे परिवार में उससे ज्यादा दुखी कोई नहीं था क्योंकि अपने अंतिम साल उन्होंने उसी के पास काटे…पिता को तो कबका खो चुकी थी तो उन्हीं में अपना पिता ढूंढती और उनकी भरपूर सेवा करती पूरे तन मन धन से…सास से उसकी कभी नहीं बनी क्योंकि उन्होंने उसे कभी अपनी बहू वाला सम्मान ही नहीं दिया…हमेशा प्रतिद्वंद्वी समझती रहीं।

 

 

ना उसके रहने उठने बैठने चलने का ढंग पसंद था उन्हें ना ही उसका किया कोई काम और ना ही उसके हाथ का खाना…।हमेशा हर चीज में कमी निकालती और झिकझिक करतीं।

और जबसे ससुरजी को डाक्टर ने परहेजी खाना खाने कहा था तबसे तो सासु मां ने नमिता का जीना और भी हराम कर दिया था…एक तो पहले ही उसका बनाया पसंद नहीं आता था उन्हें,और जब से तेल मसाले की मात्रा ना के बराबर हो गई तब तो और ज्यादा उठा पटक शुरू हो गई।

 




क्या बनाकर रख देती हो रोज… नहीं चाहती कि हम यहां रहें तो खुलकर क्यों नहीं कहती…अच्छी बहू बनने का दिखावा करके ये जो हमें अंदर ही अंदर प्रताड़ित कर रही हो ना बहू ये ठीक नहीं है

 

मम्मी जी…क्या ठीक है क्या नहीं ये मुझे मत समझाइए… पापाजी के लिए जो सही है मैं वो कर रही हूं और अगर आपको इतना ही खराब लगता है ये सादा खाना तो आप खुद बनाकर क्यों नहीं खा लेती—कह ही दिया नमिता ने एक दिन।

 

फिर क्या था आए दिन सासुमां तेल में तली सब्जियां, भजिए तो कभी चिप्स तो कभी ढेर सारे मसाले डालकर सब्जियां बना बनाकर खाने लगी…अब ससुरजी भी तो इंसान ही थे और शुरू से गरिष्ठ खाया पीया था उन्होंने..जब सासु मां उनके आगे वैसा खाना लेकर बैठती तो उनका भी मन डोल जाता वो सब खाने के लिए…।

 

और आगे पीछे ना सोचने वाली सासु मां नजर बचाकर उनकी भी थाली में कुछ ना कुछ डाल ही देती…बिना ये सोचे समझे कि वो उन्हें खाना नहीं विष दे रही है।खुद अच्छी पत्नी और उसे बुरी बहू साबित करने का अच्छा मौका कैसे चूकतीं वो।

 

 

पर तिमाही चेकअप में ससुरजी के बढ़े लेवल और नमिता की नज़र से सब साफ़ हो गया था कि क्या चल रहा है…।

 

मम्मी जी बहुत मुश्किल से पापाजी के सारे रिपोर्ट्स नार्मल हुए थे आपने तेल मसाले वाला खाना खिलाकर फिर उनकी सेहत खराब कर दी…अब अगर आपको वो सब खाना ही है तो आप पापाजी के सामने नहीं बैठकर खाएंगी…अकेले खाइए या फिर किचन में बैठकर खाइए।

 

फिर तो खुब ही हंगामा हुआ था घर में…बेटे से,बेटी से, रिश्तेदारों से सबसे शिकायते लगाई गई नमिता की…पर नमिता अडिग थी..।




 

खैर हर इंसान गिनी हुई सांसे ही तो लेकर आता है धरती पर…नमिता की एकनिष्ठ सेवा, खानपान और डाक्टर के इलाज को धता बताकर ससुर जी एक दिन सोए तो सोए ही रह गए।

 

फिर शुरू हुआ नमिता की फजीहतों का दौर…

 

पेट भर खाना नहीं खाने देती थी, रूचिकर खाना नहीं देती थी, ससुर नहीं समझ बच्चों की तरह शासन करती थी,अपने हिसाब से उठाती थी बिठाती थी….खुद को डाॅक्टर समझती थी तो बचा क्यों नहीं लिया..।

 

ऐसे एक सौ प्रश्न थे जिनका सामना कर रही थी कभी आमने सामने तो कभी फोन पर नमिता पिछले डेढ़ सालों से…क्या छोटा क्या बड़ा…सबने उसे धोबी का कुत्ता बना दिया था… जिससे दिन भर दुखी रहती और सोचती रहती वो कि आखिर क्या सच में वो वैसी है जैसा सब उसे सिद्ध करने पर लगे हैं।सबको समझाती फिरती और सफाई देती रहती कि वो वैसी नहीं है जैसा सब समझ रहे हैं या जैसा, सासु मां सबको समझा रही है।

 

 

उसी सोच और तनाव का नतीजा था ये बीमारियां और डाॅक्टर की वार्निंग…।

 




फोन जाने कब से बजा जा रहा था…उठाया तो फुफेरी ननद का फोन था जिसके पास अभी सासु मां गई हुई थी…मन तो नहीं किया पर उठा लिया फोन

 

हैलो….

 

बहुत ग़लत किया आपने…बेचारी बुआ कितना रोती है और दुखी रहती है।अरे जितना जीना होता जीते ही, कम से कम आपको फूफाजी के खाने पीने पर रोक नहीं लगाना चाहिए था…

 

सुनिए… हां मैं बुरी हूं बहुत बुरी हूं…और मैं तो शुरू से  ऐसी ही थी आपको तो आपकी बुआ जी फोन करके बताया ही करती थी ना…दो घंटे के फासले पर ही रहतीं हैं ना आप?? तो आकर क्यों नहीं ले गई उन्हें….दस दिन भी तो रखा होता पास अपने…तब वकालत करने आती अपनी बुआ की,जो फालतू की थोथी दलीलें दें रहीं हैं ना आप उससे अब मुझे कोई भी फर्क नहीं पड़ता… मैं ऐसी ही हूं जिसको मेरे साथ एडजस्ट करना है करें नही करना है तो… प्लीज़ ना मुझसे मिले ना बात करने की कोशिश करे—मन का भड़ास निकाल कर नमिता ने फोन रखा तो बहुत हल्का महसूस कर रही थी खुद को।

 

अबतक सबको समझाकर और सफाई देकर कभी खुद को इतना टेंशन फ्री नहीं महसूस किया था जितना आज कर रही थी…उसने क्या किया क्या नहीं उसकी आत्मा जानती है और जो चला गया वो समझता होगा…दूसरे क्या सोचते हैं,समझते हैं ये सोच सोचकर खुद को क्यों जलाना…

 

उसके भी तो दो बच्चे हैं,पति है,घर है और खुद वो भी है।अभी तक हिम्मत नहीं हारी तो अब क्यों ??? अपनी हिम्मत को सही दिशा में लगाकर अब अपनी बीमारियों से भी बाहर आना है और उस सोच से भी कि मेरे बारे में दूसरे क्या सोचते हैं….लगा दें सब बुरी बहू का टैग उसपर अब कोई फर्क नहीं पड़ता…।

 

 

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