ज़िद – आभा अदीब राज़दान

“ उदास हो, रक्षा बंधन जो आने वाला है । यही तुम्हारी उदासी का कारण भी है लेकिन तुम अपनी ज़िद कभी न छोड़ना । “ राघव बोले ।

नीति चुप ही रही ।

“ छोटी सी बात पर तुमने भैया भाभी से संबंध तोड़ लिया । बड़े भाई हैं कुछ कह भी दिया था तो ऐसी कौन सी बात हो गई लेकिन नहीं । अब तुम ही आगे बढ कर बात कर लो न नीति । भैया दिल के मरीज़ हैं कल कला को उनको कुछ हो गया न तो तुम अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाओगी ।”

तभी फोन की घंटी बजी । भैया के बड़े बेटे केशव का फोन था ।

“ फूफा जी, पापा को हार्ट अटैक हुआ है । संजीवनी सैंटर में भरती करवाया है । वह अभी बेहोश हैं फ़िलहाल स्थिति बहुत गंभीर है ।

“ क्या बात है, भइया को क्या हो गया है, केशव क्या कह रहा था ।” नीति ने परेशान होकर पूँछा तब राघव ने चिढ कर कहा,

“ तुमसे क्या मतलब है, तुम अपनी ज़िद लेकर बैठी रहो । मैं तो अस्पताल जा रहा हूँ । भैया बहुत सीरियस हैं, दिल का दौरा पड़ा है ।”

नीति भी राघव के संग अस्पताल चली गई । भैया आई सी यू में थे । शीशे के दरवाजे में से ही उनको देख कर नीति रुआंसी हो गई थी ।

“ भैया मुझे माफ कर दीजिए । अगर आप को कुछ हो गया तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊँगी ।”

तभी सिस्टर ने पास आकर उसे चुप रहने को कहा । अब नीति वहाँ एक साइड में भाभी के पास बैठ के ईश्वर से प्रार्थना करने लगी कि भैया को किसी भी तरह से होश आ जाए ताकि वह उनसे माफ़ी मांग सके । वह सोंच रही थी कि उसने बिना वजह ही इतना वक़त गँवा दिया । तभी केशव उसके पास आ कर बैठ गया । बुआ से बोला, “ जानती हैं बुआ, पिछले सात रक्षा बंधन पर पापा बाज़ार से राखी लेकर आते और आपकी प्रतीक्षा करते थे कि शायद आप इस बार आ जाएँ लेकिन …..।”

नीति अब फूट फूट कर रोने लगी थी ।

आभा अदीब राज़दान

स्वरचित

लखनऊ

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