गरम चिमटा – लतिका श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : नमिता बहुत व्यथित थी आज…..कुंठित सी हो रही थी आपने आप में… ये अक्सर मेरे साथ ही क्यों होता है….क्या सोचती हूं और क्या हो जाता है…! हर बार स्वयं को लानत भेजती हूं …हर बार ये संकल्प दुहराती हूं … कि अब किसी से कुछ नही कहूंगी जिसको जो करना हो करे …मेरे समझाने से कोई क्या और क्यों समझेगा..?फिर ..किसी को समझाना ही क्यों है.!!

समझदार को समझाने की आवश्यकता ही नहीं है और नासमझ को समझाने से कोई फायदा नहीं है…!

…लेकिन नमिता की तो आदत है सुधारने की …..!अपशब्दों और गालियों का प्रयोग हमेशा से ही नमिता के लिए असहनीय हो जाता है….बचपन से ही ना ही उसके घर में ना ही सहेलियों के साथ किसी भी प्रकार के साधारण या असाधारण अपशब्दों से उसका पाला पड़ा था….जैसे जैसे बड़ी होती गई और बाहरी दुनिया के संपर्क में विशेषकर सार्वजनिक स्थलों पर यात्रा के दौरान अक्सर सब्जी मंडी में इन अपशब्दों का प्रयोग …..धुआंधार असभ्य  प्रयोग उसके अंतर्मन को चीरने लगे….इतने खराब शब्दो और संबोधनो से लोग कैसे सांस ले पाते हैं..!!



…उसे याद है उसका बेटा जब 4 वर्ष का था तो एक बार पड़ोस के बच्चों के साथ खेल रहा था नमिता उसे खाना खाने के लिए बुलाने गई थी ……वही दिल चीरने वाले अपशब्दों को सुनकर उसके पैरों की गति तेज हो गई थी….लेकिन अपने ही पुत्र के मुंह से उन असभ्य शब्दों को निकलते देख वो जड़ सी हो गई थी….पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि उसका खुद का बेटा ऐसा बोल रहा है लेकिन आंखों देखी और कानों सुनी हकीकत ने उसके होश उड़ा दिए थे….

उसे तत्क्षण अपना बेटा बड़ा होकर एक आवारा असभ्य लफंगे की प्रतिकृति दिखने लगा था….आंधियां सी चलने लगी थी उसके दिलो दिमाग में….बेटे की बांह पकड़ कर खींचते हुए किचन में ले गई थी वो ….मम्मी गलती हो गई अब नहीं बोलूंगा ….बोलता रहा…पर नमिता को जाने क्या हो गया था उस समय..! गैस जलाई….चिमटा गरम किया…

बेटे के मुंह तक ले जाते हुए उसके हाथों को उसके पति ने पकड़ लिया था …”क्या कर रही हो पागल हो गई हो क्या..!इतनी सी बात पर इसका मुंह जला रही हो….!सुनते ही नमिता का गुस्सा तीव्र तर हो उठा था…इतनी सी बात!!ये इतनी सी बात है…?ये कुसंस्कार और कुत्सित आचरण की शुरुआत है…

मेरा बेटा ऐसा हरगिज नहीं बनेगा मैं नहीं बनने दूंगी….आज के बाद एक भी अनर्गल शब्द नहीं बोल पाएगा….नमिता के हाथ का चिमटा छीना झपटी में भी थोड़ा सा ही सही पर बेटे के होंठों को स्पर्श कर ही गया था…….!

आज भी याद है उसे पूरे दिन पूरी रात बेटे को गोदी में लेकर कभी बर्फ से सिंकाई कभी आलू से करती रही थी….और समझाती रही थी ..बेटा देख तेरी मम्मी कभी ऐसे शब्द नहीं बोलती क्योंकि ये गलत है ……बहुत सारे लोग ऐसा ही बोलते हैं..बिना अपशब्दों के पूरी बात ही नहीं कह पाते ….बहुत खुश हों तब भी और बहुत दुखी हों तब भी गाली गलौज की भाषा अपनाना स्मार्टनेस समझते हैं … उन्हें करने दो ….ये सही तो नहीं हो जायेगा ना…तुम नहीं बोलोगे बस…..!

बेटा आज भी उस घटना को सुनाकर मजे लेता रहता है….पर आज तक एक साधारण सा भी असभ्य शब्द अपने  मुंह से नहीं निकलने का श्रेय भी अपनी मां को ही देता है…



……दोस्तों के साथ या भाई बहनों के साथ तेज लड़ाई होने पर कई बार मम्मी से पूछता था अब गुस्सा आ रहा है तो उन लोगों को क्या बोलूं….मैने बताया था उन्हें जो सब्जियां नापसंद हैं उन्हीं का नाम बोल दिया करो….फिर तो … तू करेला है…. सड़ा वाला आलू कहीं का….पिचका पपीता….काली रोटी…बैंगन कही का…. तरोई.. कुंदरू…जाने क्या क्या से लेकर तू जीरो है …स्क्वायर है..ट्राइएंगल है…. कर्व है…. कंपास है….ऐसी ही उपाधियों में सारी भड़ास अभिव्यक्त होने लगी थी….जो अंत में हंसी की खिलखिलाहट में समाप्त हो जाती थी।

……नौकरी करने पर अक्सर ऐसी ऊल जलूल भाषा असभ्य व्यवहार का मुकाबला करना असहनीय होने लगता है…आज भी वही हुआ….

….एक अभिभावक अचानक ऑफिस में आ गए…पहली बात तो बिना पूछे अशिष्ट तरीके से आकर सीधे कुर्सी पर बैठ गए ..दूसरे उंगली दिखा कर बात चीत करने का उनका

अशिष्ट तरीका नमिता को भी असंयत कर रहा था…तीसरी बात वो बातें कम और अपशब्दों का प्रयोग ज्यादा कर रहे थे…..फिर भी विनम्रता से उनके इस अमर्यादित व्यवहार को नजरंदाज करते हुए वो उनके आक्रोश का कारण जानने की असफल चेष्टा करती रही…

लेकिन काफी कोशिशों के उपरांत भी सिवाय इसके कि उनके बेटे के एक शिक्षक के साथ किए गए असभ्य आचरण की सूचना उनके घर भेजना उन्हे स्कूल में बुलाना ही उन्हें इतना अक्रोशित् कर गया…!….इतना ही उसकी समझ में आ पाया था….लेकिन अपने विद्यालय में अध्ययनरत एक छात्र के पिता का इतना अपमानजनक व्यवहार उसे अक्षम्य लग रहा था…

….आदिवासी ग्रामीण अंचल का ऐसा ही परिवेश है यहां कोई नैतिक सुधार या सभ्य आचरण की उम्मीद व्यर्थ है…इसीलिए इनके बच्चे भी ऐसे ही हैं…कोई समझाइश कोई सुधार नहीं किया जा सकता..!!नमिता को रह रह कर क्रोध आ रहा था…मुझे भी ऐसे लोगों को सुधारने का भूत सवार है..!!इसकी टी सी काट कर अन्य बच्चों को डरा कर सुधारना ही उसे एकमात्र विकल्प नजर आ रहा था…



इसी ऊहा पोह में पूरा दिन बीत गया शाम हो गई थी छुट्टी का समय हो गया था….अचानक वो छात्र जिसके पिता ने सुबह से आकर हंगामा किया था ऑफिस में आकर चुपचाप खड़ा हो गया…..नमिता उसे देख कर कुछ नाराजगी व्यक्त करना ही चाहती थी …..उसने तुरंत नमिता के पैर छू लिए…

मैम मैं अपने पिता जी के दुर्व्यवहार के लिए माफी मांगता हूं  उनका व्यवहार मेरे प्रति और मेरी मां के प्रति भी ऐसा ही बुरा है उन्हे मेरी पढ़ाई लिखाई से कोई मतलब नहीं है ….मेरी उनसे बोलचाल बन्द रहती है ….आज मैं इतना शर्मिंदा हूं कि अब से मैं स्कूल ही नहीं आऊंगा …

आप सही समझाती हैं मैम कि पढ़ाई लिखाई हमें सभ्य आचरण करना सिखाती है परस्पर सम्मानजनक बर्ताव करना सिखाती है…..आपकी मैं बहुत इज्जत करता हूं मैम…प्लीज मेरे पिता के इस आचरण के लिए माफ कर दीजिए…..!

नमिता का सारा क्रोध सारा अपमान अचानक गायब हो गया ….उस लज्जित होने वाले छात्र के हृदय की पीड़ा को उसके खुद के दिल ने शिद्दत से महसूस कर ली थी…. नहीं बेटा तुम दुखी मत हो मेरी समझ में सब आ गया है….अब से तुम्हारे घर में स्कूल से कोई नोटिस नहीं भेजी जाएगी इसलिए नहीं कि तुम्हारे पिता से हम डर गए हैं वरन इसलिए कि अब मुझे विश्वास हो गया है कि तुम आज से वैसा असभ्य अमर्यादित आचरण और अपशब्दों का प्रयोग  ही नहीं करोगे….!तुम रोज स्कूल आओगे खूब पढ़ाई लिखाई करोगे और एक सभ्य इंसान बन कर उदाहरण प्रस्तुत करोगे ….मेरी समझाइशो और मेरे सुधारो को तुमने हरी झंडी दिखा दी है ..!

नमिता को महसूस हो रहा था कि उस दिन का गरम चिमटा आज भी गरम और उतना ही असरकारक है ….. बस उस चिमटे के स्वरूप व्यक्ति हालात और अवस्था के हिसाब से बदल गए हैं…!

लतिका श्रीवास्तव 

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