अंजानी सी इक लड़की” – नीरजा नामदेव

आयरा को एक म्यूजिकल कॉन्सर्ट में शामिल होने दूसरे शहर  जाना रहता है। वह ट्रेन से अपना सफर शुरू करती है।एक स्टेशन पर ट्रेन रूकती है ।उसे सहयात्रियों की बातचीत से पता चलता है कि ट्रेन यहां लगभग आधे घंटे तक रुकेगी ।वह अपना पानी बॉटल देखती है जो खाली हो गया है। वह सोचती है

” ट्रेन तो रुकी है  मैं पानी लेकर आ जाती हूं।”

आयरा महानगर में रहने वाली आधुनिक लड़की है।उसका कपड़े भी आधुनिक है। उसे अपने गिटार से बहुत लगाव है। वह गिटार को  अपने से अलग नहीं करती थी। इसलिए गिटार को भी साथ में लेकर स्टेशन पर उतरती है

और पास ही एक स्टॉल में पानी लेने के लिए बढ़ती है।स्टेशन पर कुछ महिलाएं सामान बेचने के लिए बैठी रहती हैं। आयरा के कपड़ों को देखकर उन्हें आश्चर्य होता है ।आयरा अपनी धुन में आगे बढ़ जाती है ।सभी उसे विचित्र नजरों से देखते रहते हैं

जिसका उसे आभास ही नहीं होता है। वह पानी बॉटल लेकर पानी पीती है।  कुछ खाने की सामान लेती है और वापस आते रहती है तब उसे लोगों की नजरों का आभास तो होता है लेकिन वह आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ती है।

तभी उसकी नजर एक मूर्ति बेचने वाली महिला पर पड़ती है जो टोकरी में मिट्टी की सुंदर मूर्तियां रखे हुए रहती है। उसके गोद में एक छोटा सा बच्चा गोपू रहता है।गोपू बहुत ही मासूम  है। आयरा टोकरी की मूर्तियां देखने लगती है जिसमें सरस्वती माता की  मूर्ति दिखती है।

वह उसे ले लेती है और अच्छे से पेपर में लपेटने को कहती है ।अचानक उसका ध्यान गोपू पर जाता है उसका एक पैर मुड़ा हुआ रहता है। वह गोपू की मां से पूछती है ”  इसे क्या हो गया  है।”

गोपू की माँ  बताती लगती है “जन्म से इसका एक पैर मुड़ा हुआ है इसलिए यह ठीक से चल नहीं पाता ।मुझे इसे साथ में लेकर आना पड़ता है ।हमने डॉक्टर को दिखाया  था। लेकिन उन्होंने पैर के ऑपरेशन के लिए बहुत ही ज्यादा रकम बताई है जो अभी हमारे पास नहीं है ।हम तो रोज कमाने खाने वाले हैं,इतनी आमदनी ही नहीं होती कि इसका  ऑपरेशन करवा सकें।”

आयरा को उसकी बात सुनकर बहुत ही दुख होता है। पास ही आम बेचती हुई महिला भी कहने लगती है कि “हमारा तो यही है। रोज इतनी ही कमाई हो पाती है कि हमारा गुजारा हो सके। ऐसे में हम पैसे कहाँ से जमा करेंगे। “

आयरा अपने मोबाइल में समय देखती है ।अभी भी ट्रेन छूटने में बहुत समय है।वह वहीं बेंच पर बैठकर अपने गिटार बजाकर 



“गूंजा सा है कोई एक तारा ” गाना गाने लगती है। सभी उसकी आवाज से आकर्षित होकर उसके आसपास आ जाते हैं। ट्रेन के यात्री भी आ जाते हैं और उसका गाना सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। गाना समाप्त होने पर आयरा सबसे गोपू  के  पैर और इलाज के बारे में बताती है।

वह सबसे कहती है  “अगर आप चाहते हैं तो इस बच्चे की सहायता कर सकते हैं भगवान ने हमको इस योग्य बनाया है कि हम किसी की थोड़ी सी मदद करेंगे तो उसका जीवन बन जाएगा।” वह स्वयं ₹2000 निकाल कर देती है। उसको देख कर बहुत सारे लोग ₹ 50,100,200,500 देने लगते हैं। आम बेचने वाली महिला भी कहती है “मेरे पास ज्यादा तो नहीं है लेकिन मैं अपनी तरफ से ₹100 देती हूं “।

इस प्रकार देखते ही देखते बहुत अच्छी रकम जमा हो जाती है। सभी गोपू को स्नेह करने लगते हैं।गोपू की मां की आंखों से तो आंसू बहने लगते हैं। वह आयरा को बहुत-बहुत धन्यवाद देती है।आयरा उसे सरकार द्वारा प्रदान की गई स्वास्थ्य और इलाज की कुछ योजनाओं के बारे में भी बताती है।अपना फोन नंबर देकर कहती है कोई परेशानी होगी तो मुझे बताना।

इस घटना के पहले जो लोग आयरा और उसके कपड़ों की आलोचना करते रहते हैं उन्हें आयरा अब एक अलग ही रूप में नजर आती है। जरूरी नहीं है कि जो आधुनिक कपड़े पहनते  हैं उनका मन भी असंवेदनशील हो। अब किसी को भी आयरा में कोई कमी नहीं दिखाई दे रही थी। सब ने उसे प्रेम से विदा किया। 

इतने में ट्रेन की सीटी बजने लगी। गार्ड ने हरी झंडी दिखाई। आयरा दौड़ कर ट्रेन में चढ़ गई और सबको हाथ हिलाकर बाय बाय बोलने लगी। आज उसके मन में  बहुत ही ज्यादा खुशी हो रही थी कि मैंने किसी की मदद की है।उसके पापा हमेशा ही निदा फाजली का शेर कहते थे 

     *घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें

किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये*

आयरा को  मन में अपने पापा की आवाज सुनाई देने लगी।वह उस शेर को गुनगुनाने लगी।

       उसका म्यूज़िकल कॉन्सर्ट भी हिट रहा।

 

स्वरचित

नीरजा नामदेव

छत्तीसगढ़

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