क्या तुम लोग भी,जब देखो तब,ये फिल्मी दुनिया में घुसे रहते हो,थोडा पढ़- लिख लोगे,तो कुछ बिगड़ ना जाएगा तुम्हारा…-स्वाति ने अपनी सहेलियों से कहा,
पर सहेलियाँ तो सहेलियाँ ठहरी,जहाँ सगे भाई – बहन तक आपस में नहीं सुनते और ना ही कोई बात मानते,तो सहेलियाँ कैसे मान लेती ?
स्वाति की एक खास सखी,भावना बहुत ही चंचल स्वभाव की थी,लेकिन भावना और उसके भोंदू भाई राज़ के बीच इस हद तक भेदभाव होता था कि भावना ने सपने देखना,लक्ष्य बनाना,और ध्यानकेन्द्रित हो अध्ययन करना तक छोड़ दिया था,
कितनी ही बार घर में होने वाले भेदभाव के लिए विरोध भी किया और मुँह फुला के खुद को कमरे में बंद तक किया,लेकिन किसी के कान पर जूँ तक ना रेंगी,घर में किसी को भी फर्क ही नहीं पड़ता था,बार बार यही कहना,कि तुम्हारा भाई,कुलदीपक है,
और तुम तो पराया धन हो,तो जो कुछ खर्चा होगा सब सोच समझ के करना होगा,वैसे भी तुम तो चली जाओगी ससुराल फिर हमें तो हमारा लाड़ला ही संभालेगा ना….
भावना की स्थिति के बारे में पता सबको था,लेकिन सिर्फ गॉसिपिंग का हॉट टॉपिक रहता था…स्वाति ने बहुत बार भावना की मम्मी से बात करने की कोशिश की,ले किन वही ‘ढाक के तीन पात”…
भावना की मम्मी तो स्वाति का एक भी नहीं सुनती और ऊपर से ये भी कह देती,कि-तुम हमारे घर के मामले में टांग मत अडाया करो…और स्वाति कुछ ना कर पाती,दोनों सहेलियों के मन इतने जुडे थे,कि एक दूसरे का मुँह देखकर,
थोडा बहुत अंदाजा लग जाता था,उनके दिल की बातों का…लेकिन शायद रिश्तों और उम्र की सीमा ऐसी थी कि भावना की मनोस्थिति और परिस्थिती,
दोनों को जानकर भी,चाहकर भी स्वाति कुछ नहीं कर पा लही थी….समय का पहिया,अपनी गति से घूम रहा था…
जहाँ भावना अनचाहे भेदभाव का शिकार हो रही थी,चाहकर भी अनावश्यक रूढियों का विरोध नहीं कर पा रही थी,वहीं दूसरी ओर स्वाति अपने माता-पिता के साथ से और कडी मेहनत के जोर पर हर एक पडाव पार कर रही थी,समय बीता और ग्रेजुएशन कंपलीट होने के बाद,
भावना की शादी,एक अच्छा घर और वर देखकर कर दी गयी,तो स्वाति ने गेट के एक्जा़म की तैयारी की,उसका सलेक्शन बहुत ही बढिया देहरादून कैम्पस में हुआ,और घर से दूर वह चल पड़ी,अपने जीवन में कामयाबी के रंग भरने के लिए,उसका मानना था,
कि-अगर मैं खुद में सक्षम रहूंगी,तो ही मैं दूसरों के लिए कुछ कर सकूंगी….और कडी मेहनत और सच्ची लगन के दम पर उसने ना केवल पोस्ट ग्रेजुएशन बल्कि साथ में पी.एच.डी. भी की, और दिल्ली के नामी कॉलेज में व्याख्याता पद पर काम किया,
उसके माता – पिता के सहयोग और विश्वास की हिम्मत पर ही वो यह मकाम हासिल कर सकी ….कुछ समय में अच्छा घर – वर देखकर उसकी भी शादी कर दी गयी….जीवनसाथी भी पूर्णरूपेण सहयोगी और समझदार मिला,उसे…
जब भी कॉलेज में,स्टूडेन्ट्स को संबोधित करती,तो हमेशा यही कहती कि – ‘किसी भी “भेदभाव’ से अलग,हर बच्चे को,हर व्यक्ति को प्रगति और खुद का भविष्य स्ट्रांग बनाने के लिए,सबसे पहले उनके माता – पिता को ही उन्हें सपोर्ट करना चाहिए,
और साथ ही बच्चों को भी माँ-बाप का विश्वास नहीं तोड़ना चाहिए, और अगर जिन्दगी में सफलता और सबलता के पक्के रंग भरना चाहते हो,तो मेहनत इतनी शांति और एकाग्रता से करो,कि तुम्हारी कामयाबी की गूंज सबके होश उड़ा दे।.”
आगाज से अंजाम तक,इरादे इतने बुलंद रखो,कि कोई भेदभाव,हमें कमजोर ना कर सके,हमारे जीवन के रंग ,आसमानी इंद्रधनुष के जैसे सुंदर दिखाई दें।.
( समाप्त )
रचना को समय देने के लिए शुक्रिया …
स्नेह आभार…
आपकी : याभिनीत