प्रेम और विश्वास  कहानी –       डॉ अंजना गर्ग

मोनिका कृष्णा कॉलोनी में नई नई आई थी इतने में करवा चौथ का त्यौहार आ गया ।शाम को पार्क में सैर करते हुए महिलाओं में करवा चौथ पर ही चर्चा होती थी कि वह आने वाले इस करवा चौथ पर क्या करने वाली है ।कोई नई ज्वेलरी खरीद रही थी। तो कोई नई डिजाइनर साड़ी, सूट ,लाचा या लहंगा बनवा रही थी। कोई अच्छी मेहंदी वाली का फोन नंबर ढूंढ रही थी कोई पार्लर में बुकिंग करा रही थी तो कोई रात को पूजा में प्रयोग किए जाने वाले समान को डेकोरेट करवाने के बारे में बता रही होती थी। अक्सर महिलाएं यही चर्चा करती थी कि मैं फला चीज उस बड़े शोरूम से लेकर आई और उसको उस महंगे बुटीक से बनवा रही हूं। 

 बहुत सी महिलाएं आजकल सैर बीच बीच मे छोड़ रही थी । अगले दिन पूछने पर बताती थी की बुटीक से  अपनी ड्रेस लेने गई थी पर यार बहुत ही फिटिंग खराब कर दी अब आज ठीक करनी देकर आई हूं ।कोई कहती थी मैचिंग चूड़ियां और कॉस्मेटिक का सामान लेने गई थी। उनका आजकल पूरा दिन इन्हीं कामों में बीत रहा था। मोनिका ने भी जो कुछ वह करवा चौथ पर करती थी उसकी तैयारी की और उन महिलाओं से जो सुन रही थी उसके अनुसार भी तैयारी करने की कोशिश की। करवा चौथ वाले दिन महिलाओं में एक होड़ सी लगी हुई थी।

 बता रही थी किसने कहा से क्या बनवाया ,साथ ही पहनकर उसका प्रदर्शन ऐसे कर रही थी जैसे स्टेज पर कैट वाक कर रही हो। कई महिलाएं तो लेडीज क्लबों द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने भी गई जिसमें बेस्ट ज्वेलरी ,बेस्ट ड्रेस, बेस्ट मेहंदी आदि प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया था । 

कहीं-कहीं तो सास, बहू से भी ज्यादा सजी-धजी एक तरह से बहू से कॉन्पिटिशन सा करती दिख रही थी। मोनिका भी सबके साथ जितना हुआ इधर उधर भाग रही थी। शाम को सब महिलाएं एक जगह इकट्ठा होकर पूजा कर रही थी जिसमें थालियां बदली जा रही थी परंतु मोनिका ने अनुभव किया की लोगों का ध्यान पूजा की थाली से ज्यादा एक दूसरे की ड्रेस , ज्वेलरी और मेकअप पर था। पूजा समाप्त हुई सभी महिलाएं अपनी अपनी थाली उठाकर लौट रही थी की मोनिका के सामने वाले फ्लैट वाली सुमन अपने पति के साथ आती दिखी। 

गोल्डन किनारी की सिल्क की साड़ी में दमकती हुई सबको मुबारकबाद देती हंसती हुई अपनी सीढ़ियां चढ़ गई ।करवा चौथ के दिन वह अकेली महिला थी जो इन सब महिलाओं के साथ पूजा करने और थालियां बदलने नहीं आई थी। सुमन सैर भी अपने पति के साथ ही करती थी पर सैर के दौरान जो भी मिलता था उससे बहुत अदब से बात करती थी और उसका हाल चाल पूछती थी।




       करवा चौथ के अगले दिन मोनिका से रहा नहीं गया उसने सुबह 11:00 बजे के करीब सुमन के घर की बेल बजाई ।सुमन ने दरवाजा खोला और बड़े प्यार से कहा ,”आइए, बैठिए ।”

   मोनिका को बहुत बेचैनी हो रही थी उसने जल्दी से बिना कोई और भूमिका के पूछा,” सुमन जी, आप कलोनी की महिलाओं के साथ पूजा और बाकी आयोजनों में सम्मिलित क्यों नहीं हुई?”

       वह जरा मुस्कुराई, फिर बोली, आप कृष्णा कॉलोनी में नई आई है इसलिए आपको हैरानी हो रही है। तभी आप यह प्रश्न पूछ रही है ।

मैं तो हर साल करवा चौथ ऐसे ही मनाती हूं।”

मोनिका ने सुमन को बीच में ही टोका ,”ऐसे का मतलब ।”

सुमन ने कहा ,”करवा चौथ वाले दिन मेरे पति भी छुट्टी ले लेते हैं ।सुबह मेरे साथ उठते हैं ।हम मिलकर सरगी बनाते हैं और मिलकर ही खाते हैं। सुबह नहा धोकर मंदिर जाकर पति के साथ मां पार्वती से आशीर्वाद लेती हूं और प्रार्थना करती हूं कि मेरे पति को दीर्घायु दे और मुझे सदा सुहागन रखें ।फिर आकर सासु मां की पसंद का नाश्ता बनाती हूं उनसे आशीर्वाद लेती हूं ।”

मोनिका ने फिर कहा, “आशीर्वाद तो सासू मां से हम रोज ही सुबह-सुबह पांव छू कर लेते ही है फिर नाश्ते के बाद किस लिए सुमन जी”

सुमन ने बताना शुरू किया, “दरअसल यह खास आशीर्वाद होता है क्योंकि जिस सुहाग के लिए मैं करवा चौथ का व्रत रखती हूं उस सुहाग को पाल पोस कर इतना लायक  सासू माँ  ने  ही बनाया है। अब यह उन्होंने हमें सौंप दिए है तो यह सासू मां का धन्यवाद करने का मौका भी होता है और मां पार्वती के बाद उनसे आशीर्वाद लेने का भी। फिर सासू मां हम दोनों को जबरदस्ती पिक्चर वगैरह देखने भेज देती है ताकि समय कट जाए और मुझे भूख प्यास का पता न लगे ।

शाम को सासू मां, पति और बच्चों के साथ कहानी कहती हूं ।रात को अपने परिवार के साथ अर्घ देकर पति से जल ग्रहण करके सबके साथ मिलकर खाना खाती हूं। बस यही मेरा तरीका है करवा चौथ मनाने का।” सुमन कहकर चुप हुई तो मोनिका के मुंह से बेसाख्ता निकला “सारी चमक-दमक और दिखावे से दूर पति और परिवार के संग क्या बात है ।”




सुमन बोली ,”मोनिका जी करवा चौथ है ही पति पत्नी के बीच प्रेम , विश्वास और समर्पण का पर्व। यह महज एक रीति रिवाज नहीं बल्कि गृहस्थ जीवन के उत्सव का मौका है । ” मोनिका फिर बोली ,”यह तो आप ठीक कह रही है कि यह प्रेम और विश्वास का त्यौहार है पर आपने यह नहीं बताया की आपने अपने पति से करवा चौथ पर क्या तोहफा लिया ?”

               सुमन धीरे से मुस्कुराई और बोली,” करवा चौथ में तोहफा कहां से आ गया?मैंने तो पहले आपको कहा है की यह तो ग्रहस्थ जीवन के उत्सव का मौका है। पति से तोहफा लेने से मतलब है हम पति को यह जतला रहे हैं कि  मैं तेरे लिए भूखी प्यासी रह रही हूं तो तुम इसके बदले में मुझे कुछ महंगा उपहार दो। मोनिका जी यह समर्पण कहां हुआ। यह तो सौदा हो गया ।” मोनिका थोड़ा हैरानी से बोली,”सौदा, क्या मतलब?”

    ” जब आप किसी के लिए कुछ करें और उसके बदले में उससे कुछ उम्मीद रखें कि वह आपको कुछ दे तो यह सौदा ही तो हुआ। प्रेम कहां हुआ। प्रेम में तो हम देते हैं,  लेते नहीं।” मोनिका एकदम बोली,” वाह यह तो कभी सोचा ही नहीं। एक भेड़ चाल में सब महिलाएं बस पतियों से उपहार मांगती रहती हैं ।”

“यही तो अफसोस की बात है। महिलाएं आधुनिकता का नाम देकर इस त्योहार पर हजारों कई कई तो लाखों का पति का खर्चा करवा देती है और पूरा पूरा दिन पति पत्नी एक पल के लिए इकट्ठे बैठ नहीं पाते, मिल नहीं पाते कभी पत्नी पार्लर में है कभी क्लब में तो कभी पूजा के नाम पर कपड़ों और ज्वेलरी का प्रदर्शन करने गई है। रात को भी पति का मुंह रिवाज के कारण ही देखती है नहीं तो उस समय भी सजने पहुंच जाएं या किसी से तारीफ सुनने लगे।

 यहां तक की एक हफ्ता पहले ही पतियों के ज्वेलरी शॉपस, बुटीक पर चक्कर कटवाने शुरू कर देती है। करवा चौथ से एक दिन पहले कई महिलाएं रात को बारह बारह एक एक बजे तक अपने पतियों को ब्यूटी पार्लर के बाहर या मेहंदी वाले के यहां खड़ा रखती है । पतियों को नींद आ रही होती है सुबह उन्हें काम पर भी जाना होता है परंतु पत्नियां यह जतलाती है कि यह सब वह उन्हीं के लिए तो कर रही है। ऐसे करवा चौथ का क्या फायदा जो पति पर एक बोझ बन जाए और महीना पहले उसकी नींद हराम हो जाए यह सोच कर की अगर उसने पत्नी को ढंग का तोहफा नहीं दिया तो महीनों इसके लिए सुनना पड़ेगा की फला के पति ने यह दिया और उसके पति ने उसको यह दिया ” सुमन बातें करते करते साथ साथ चाय भी बना रही थी जैसे ही दोनों चाय पीने बैठी तो मोनिका बोली, “सुमन जी, आप का अनुसरण इस कॉलोनी में और कोई करें या ना करें मेरा अगला करवा चौथ वास्तव में प्रेम, विश्वास और समर्पण का ही पर्व होगा।”

              डॉ अंजना गर्ग

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