इक दूजे के वास्ते – नीरजा नामदेव   

 

         आज विधु शरद पूर्णिमा के चांद को देखते हुए अपने बीते दिनों को याद कर रही है। सोमांशु जब उसे शादी के लिए देखने आए थे तब बात करते हुए विधु ने  पूछा था कि क्या मैं शादी के बाद नौकरी करना चाहूं तो कर सकती हूं ।तब सोमांशु ने उसे स्पष्ट बताया कि अभी तो हमारे घर को संभालने वाली की आवश्यकता है।आगे जब कभी भी इस प्रकार की स्थिति बनेगी तब जरूर कर सकती हो। उनके विचारों को सुनकर विधु को अच्छा लगा और उसने सोमांशु के साथ शादी के लिए हां कर दी। दोनों की बहुत ही धूमधाम से शादी हुई। दोनों ने मिलकर अपने माता-पिता और घर की जिम्मेदारी अच्छे से निभाई। संतान सुख भी उन्हें प्राप्त हुआ। बेटा बड़ा होने लगा।

      अब विधु को समय मिलने लगा । एक दिन उसने सोमांशु से अपनी नौकरी करने की इच्छा के बारे में कहा। तब सोमांशु ने भी कहा कि हां  हमारे घर परिवार को तुमने बहुत अच्छे से संभाला और जिम्मेदारियों को पूरा किया। तुमने मेरी इच्छा का मान रख उस समय परिस्थितियों से खुशी खुशी समझौता किया।अब समय आ गया है जैसा तुम्हें अच्छा लगे तुम करो।मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूँ।मैं तुम्हारी इच्छा का मान रखूंगा।अबसे तुम्हें जैसा अच्छा लगे तुम कर सकती हो।

       विधु ने नौकरी के लिए फार्म भरे और एक  स्कूल में शिक्षिका के पद पर नियुक्ति हो गई ।सोमांशु और उनके घर के लोगों ने विधु का हर कदम पर साथ दिया। विधु ने भी शादी के बाद जिद नहीं की कि मैं नौकरी करूंगी ही। उसने अपने घर परिवार को पहले प्राथमिकता दी। उसने उस समय उनको मान दिया और आज सब विधु की इच्छा को मान दे रहे हैं ।विधु ने जैसा चाहा आज वह उसने  पा लिया  है ।आज सोमांशु और विधु एक दूजे का हाथ थामे सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

 

स्वरचित

नीरजा नामदेव

छत्तीसगढ़

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