समझौता” – नीति सक्सेना

आज दोपहर  मां का फोन आने के बाद से ही शुभ्रा बड़ी अनमनी सी,थोड़ी उदास सी थी। मां ने ही फोन पर उसे बताया था कि उसकी सबसे छोटी मौसी अल्पा की बेटी रूमी का  तलाक होने जा रहा था।सुन कर हैरान रह गई थी वह। पिछले वर्ष ही तो बड़ी धूमधाम से रूमी की शादी मौसी ने विक्रांत से की थी।विक्रांत किसी मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर इंजीनियर था और काफी अच्छे पैकेज पे काम कर रहा था।देखने में बड़ा आकर्षक,संभ्रांत और सभ्य।कोई कमी नहीं थी उसमें।हैदराबाद में जॉब थी उसकी और साथ में उसकी मां और छोटी बहन विशु रहते थे।विशु स्वयं भी एक आई टी कंपनी में जॉब कर रही थी।विक्रांत के पिताजी की कुछ साल पहले मृत्यु हो चुकी थी अतः मां को उसने अपने पास ही बुला लिया था।

तलाक का कारण पूछने पर मां ने बताया कि रूमी को विक्रांत की मां और छोटी बहन का उसके साथ रहना पसंद नहीं था।वह विक्रांत के साथ अकेली रहना चाहती थी और एक उन्मुक्त, स्वच्छंद जीवन जीना चाहती थी,जबकि इकलौता पुत्र होने के कारण विक्रांत अपनी मां को  अकेला नहीं छोड़ सकता था और साथ ही छोटी बहन के प्रति भी उसकी जिम्मेदारी बनती थी। रोज़ रोज़ की कलह से तंग आकर दोनों आपसी रजामंदी से तलाक के लिए तैयार हो गए थे हालांकि विक्रांत ने रूमी को समझाने की काफी कोशिश करी थी,पर रूमी अपनी ज़िद पे अड़ी हुई थी।

शुभ्रा को रूमी की बेवकूफी पे बड़ा गुस्सा आ रहा था।इतनी सी बात पे कोई इतने अच्छे पति को भला कैसे छोड़ सकता है!

शुभ्रा को याद आया कि उसकी मां ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीं, सिर्फ बारहवीं पास थीं।शुभ्रा के पिता जी  डिग्री कॉलेज में इंग्लिश के लेक्चरर थे,पर पिता जी कभी भी मां की कम शिक्षा को लेकर दूसरों के सामने शर्मिदा नहीं हुए और शादी ब्याह,कॉलेज के फंक्शंस,उत्सवों में बड़े गर्व से मां को अपने साथ लेकर गए।शुभ्रा की बड़ी बुआ जी बहुत ही सुंदर और अपने ज़माने की उच्च शिक्षित महिला थीं पर फूफा जी एक बिजनेसमैन थे और ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। देखने में भी बहुत साधारण थे।पर बुआ जी तब भी अपने वैवाहिक जीवन से बड़ी सुखी और संतुष्ट थीं। उस पुराने ज़माने में ऐसी बेमेल शादियां हो ही जाती थीं।अगर पति उच्च पद पर आसीन है या बहुत पढ़ा लिखा है तो ज़रूरी नहीं होता था कि उसकी पत्नी भी उसी की तरह उच्च शिक्षा प्राप्त हो।पर तब भी ऐसे बेमेल जोड़े या दंपत्ति आजीवन अपना संबंध निभा ही लेते थे या यूं कहिए कि एक तरह से अपने भाग्य या परिस्थितियों से समझौता कर ही लेते थे और दाम्पत्य बंधन को तोड़ने की तो सोचते भी नहीं थे। डाइवोर्स या तलाक जैसे शब्द उनकी डिक्शनरी में थे ही नहीं।

शुभ्रा की नानी तो अपूर्व सुंदरी थीं,बिलकुल पुराने ज़माने की हीरोइनों की तरह, पर नाना जी एकदम साधारण व्यक्तित्व के स्वामी।शुभ्रा को अब भी याद है कि नाना जी पे जान छिड़कती थीं नानी,और उनके भरे पूरे बड़े परिवार की जी जान से सेवा करती थीं ,खुशी खुशी।

पुराने ज़माने के इन लोगों के ये उदाहरण एक तरह से इनका समझौता ही थे,जिंदगी से,हालातों से, जिनको इन्होंने खुशी खुशी स्वीकार कर लिया था। और एक यह आजकल की जेनरेशन है जोकि छोटी छोटी बातों पे सात फेरों का बंधन आसानी से तोड़ने को बड़ी जल्दी तैयार हो जाती है और बड़ी जल्दी ही दूसरा जीवनसाथी ढूंढने भी लग जाती है।

सोचते सोचते शुभ्रा ने एक गहरी सांस ली और पति के ऑफिस से लौटने से पहले ही शाम की चाय के साथ उनके मनपसंद स्नैक्स बनाने की तैयारी करने किचन की ओर चल दी।

स्वरचित और अप्रकाशित

नीति सक्सेना

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