बहू ये तुम्हारा ससुराल है ,मायका नहीं – सविता गोयल

आज नन्दिता  के घर नई- नवेली बहू आने वाली थी । नन्दिता  बहुत खुश थी। भाग भागकर बेटे- बहू के गृह प्रवेश की तैयारी कर रही थी। सारी तैयारी हो गई थी फिर भी उसका मन बेचैन था कि कहीं कोई कमी ना रह जाए।  दरवाजे पर टकटकी लगाए खड़ी थी। इस शुभ अवसर पर उसे वो दिन याद आ रहा था जब पच्चीस साल पहले उसने खुद दुल्हन बनकर इस घर की……… ना ..ना.. ससुराल की देहलीज पर कदम रखा था । वो सारे दिन उसकी आंखों के आगे चलचित्र की भांति घूमने लगे।

” बहू ये तुम्हारा ससुराल है ,मायका नहीं । थोड़ा लिहाज से रहो। घर में जेठ , ससुर  भी हैं।,,

ननद के साथ हंसी मजाक करते हुए खिलखिलाती हुई नन्दिता  की हंसी पर ये सुनते ही जैसे ब्रेक लग गया । अभी दस दिन हीं हुए थे शादी को ।अठारह साल की अल्हड़ आयु में नन्दिता  को पता नहीं था कि ससुराल में कैसे रहा जाता है । बचपन से यही सुनती आ रही थी कि लड़की तो पराई अमानत होती है।उसका असली घर तो ससुराल हीं होता है । लेकिन यहां तो हर वक्त यही सुनने को मिलता था ससुराल में ऐसे नहीं करते, वैसे नहीं करते , ये सब यहां नहीं चलेगा ।

 जब यहां नहीं चलेगा तो कहां चलेगा ?? ,, बस यही सवाल नन्दिता  के दिमाग में घूमता रहता । कुछ दिनों बाद मायके जाने का मौका मिला तो नन्दिता  बहुत खुश थी कि चलो अब वो खुल कर सांस ले पाएगी । लेकिन वहां भी दादी और मां हर वक्त टोकती रहतीं ,” अब तूं बच्ची नहीं रही, शादी हो गई है तेरी … बहू के तौर – तरीके सीख ले, नहीं तो हमें हीं उलाहना मिलेगा कि कुछ सिखाया नहीं ।,,

मायके में  दस दिन बीत गए तो ससुराल से बुलावा आ गया । नन्दिता  ने मां से कहा , ” मां, मैं अभी नहीं जाऊंगी वहां । थोड़े दिन और यहीं रहूंगी। वहां मेरा दम घुटता है।,,




”  चल पगली  … , मायके में और कितने दिन रहेगी । अब वही तेरा घर है ।,, मां ने हौले से चपत लगाते हुए कहा।

” नहीं मां, वो मेरा घर नहीं , वो तो ससुराल है और ये मायका.. तो फिर मेरा घर कहां है ??,,

नन्दिता  के इस सवाल ने मां को चुप करा दिया। मां भला क्या बताती उसे । वो तो खुद हीं अभी तक अपने ससुराल में हीं रह रही थी क्योंकि नन्दिता  की दादी  भी हमेशा मां को ये एहसास दिलाती रहती की ये घर उसका ससुराल है । नन्दिता  को बिना मन के अपने ससुराल लौटना हीं पड़ा।

दिन , महीने और साल गुजरते गए । नन्दिता  अब दो बच्चों की मां भी बन चुकी थी फिर भी वो अभी तक उस घर को हक से अपना घर नहीं बोल पाती थी।सास ससुर के देहांत के बाद नन्दिता  के पति और जेठ के बीच घर का बंटवारा हो गया । अब दोनों के घर अलग-अलग हो गए थे ‌। शादी के इतने सालों के बाद अब वो उस घर को अपना घर बोल पाई। लेकिन उसने खुद से वादा किया था कि जब उसकी बहु इस घर में आएगी तो वो सच में उसका गृह प्रवेश करवाएगी । वो अपनी बहू को ससुराल और मायके के बीच अपना कहलाने वाला घर देगी ताकि उसे भी इस घर को घर  कहने में एक अरसा ना लगे ।

तभी बैंड बाजों की आवाज़ से उसकी तंद्रा भंग हो गई। नन्दिता  भागकर आरती का थाल ले आई। अपने बेटे और बहू के माथे पर तिलक लगाकर बोली,। ”  आओ बहु, तुम्हारा स्वागत है। अपने घर में अपना पहला कदम रखो।,,

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सविता गोयल

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