अहंकार काकी का –  मंजू तिवारी

जीजी पढ़ना लिखना बहुत अच्छी बात है सबको पढ़ना चाहिए लेकिन बेटों के लिए पढ़ाई लिखाई बहुत जरूरी होती है क्योंकि आगे चलकर उनको अपना जीविकोपार्जन करना होता है। अगर बेटियां ना पढे तो कोई फरक नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें कौन सा अपना जीविकोपार्जन करना होता

और उनके ऊपर कौन सा आर्थिक बोझ होता है परिवार चलाने का,,, यह बात रेखा को भलीभांति समझ में आती कि उसकी काकी क्या कहना चाहती है। लेकिन रेखा की मां शायद यह बात नहीं समझ पाती कि जीविकोपार्जन का मतलब क्या होता है।

क्योंकि वह तो बिना पढ़ी लिखी थी। काकी ने उस टाइम पर ग्रेजुएशन कर रखी थी तो उन्हें इस बात पर बड़ा अहंकार था बेटियां तो जिस घर जाएंगी उनके खाने पीने रहने की व्यवस्था तो सारी अपने आप ही हो जाएगी अर्थात नौकरी की क्या जरूरत,,,, और कहती  बेरोजगारी तो वैसे भी बढ़ेगी

क्योंकि अब महिलाये घरेलू काम छोड़ कर नौकरी करने लगी है। कभी-कभी रेखा सोचती शायद मैं नौकरी करने लगी तो हो सकता है इनकी ही बेटे के हिस्से की नौकरी मुझे मिले और उनके बेटे  सरकारी नौकरी से वंचित रह जाएं यह बात रेखा को बड़ी अजीब सी लगती आखिर यह चाहती क्या है।

रेखा सुलेखा सभी संयुक्त परिवार में ही रहते थी इसलिए रेखा सुलेखा के मन में अपने चचेरे भाइयों के लिए प्यार में कभी कमी नहीं आई रेखा सुलेखा के कोई सगा भाई नहीं था लेकिन काकी की बात सुनकर मन दुखी जरूर होता रेखा सुलेखा की मां बिल्कुल भी पढ़ी-लिखी नहीं थी इसलिए उन्हें पढ़ाई में बिल्कुल भी मदद नहीं मिल पाती थी लेकिन पापा थोड़े पढ़े लिखे थे 

उनके पास समय की कमी रहती थी उनके चचेरे भाइयों का स्कूल का काम तो काकी करवा देती थी नोटबुक कंप्लीट ना होने पर खुद हाथ से लिख देती लेकिन रेखा को यह सुविधा प्राप्त नहीं थी,, समय ऐसे ही आगे बढ़ता जा रहा था लेकिन मंशा साफ होती जा रही थी

पढ़ी-लिखी होने के बाद भी ऐसी मानसिकता कि मेरे बच्चे तो अच्छा पढ़ जाए दूसरे के प्रतियोगिता में ही भाग ना लें,,,, एक दिन की बात है ।रेखा छत पर खेल रही थी (रेखा की उम्र लगभग 11 वर्ष से  होगी) तभी बातों ही बातों में काकी ने कहा तुम्हारी दादी कहती थी मां अनपढ़ है लगता  है मां की ही तरह बेटी भी अनपढ़ रहेगी क्योंकि उस टाइम रेखा का मन पढ़ाई लिखाई में नहीं था और कोई पढ़ाने वाला ही  घर में ना था



लेकिन रेखा यह बात भली-भांति जानती थी कि उसकी दादी इस तरह की बात कभी नहीं कह सकती क्योंकि रेखा दादी की बहुत प्रिय थी मां भी बहुत बचपन में विवाह होकर आई थी इसलिए वह भी दादी की बहुत प्रिय थी यह बात काकी के मुख से सुनकर उसे बहुत बुरा लगा 

क्योंकि यह बात काकी ने अपने मन से बनाकर कही थी और यह बात रेखा के मन में फांस की तरह चुभने लगी,, क्योंकि अब बात मां के मान सम्मान की थी फिर क्या था रेखा ने अपना पढ़ाई में मन लगाना शुरू किया जब किसी चीज को पाने के लिए हम आतुर हो जाते हैं हमारे अंदर जुनून होता है।

तो कोई भी चीज पाना नमुमकिन नहीं है। रेखा की बहन सुलेखा जब भी काकी से पढ़ने के लिए रैपिडेक्स मांगती जिसमें इंग्लिश के वर्डस मीनिंग हुआ करते थे तो वह देने में उन्हें बड़ी असुविधा होती जैसे उसको पढ़ कर कहीं उनके बेटों से सुलेखाआगे ना निकल जाए,,,,,,

जब कभी रेखा सुलेखा का रिजल्ट आता तो उनकी काकी बड़ी उदास हो जाती पढ़ाई करके बेटियों को कौन सा जीविकोपार्जन  करना है। यह बोलकर रेखा सुलेखा को बेटी होने का पल पल एहसास कराती खुद  बेटो की मां होने का अहंकार कहीं ना कहीं सिर चढ़कर बोल ही जाता,, सुलेखा और रेखा की मां सिर्फ यही चाहती मैं नहीं पढी लिखी तो क्या हुआ

मेरी बेटियां तो उच्च शिक्षित होंगी वह रेखा सुलेखा के लिए खाने-पीने से लेकर घर के कामों से मुक्त रखती और सुबह टिफिन और बढ़िया नाश्ता बना कर देती रेखा सुलेखा भी अपना पढ़ाई में पूरा ध्यान देती रेखा सुलेखा के पापा ट्यूशन का  हमेशा प्रबंध रखते गर्मियों की छुट्टी में भी रेखा सुलेखा ट्यूशन पढ़ती रेखा सुलेखा को अच्छे संस्कार दिए

बड़ों का आदर करना सिखाया बड़ों से कैसे बात की जाती है। बड़ों का सम्मान करना सिखाए जिस रैपिडेक्स को देने में असुविधा होती थी कहीं ये बेटियां सब कुछ सीखना जाएं और हुआ भी यही रेखा  इंग्लिश लिटरेचर लिटरेचर में ग्रेजुएट है साथ में m.a. b.ed भी है ।रेखा की छोटी बहन सुलेखा इंग्लिश लिटरेचर में m.a. b.ed है।

और रेखा सुलेखा को उनकी रैपिडेक्स की कोई आवश्यकता नहीं है कितनी इंग्लिश मीनिंग पूछनी है आओ और पूछ जाओ बखूबी सबको बता सकती हैं रेखा तो इंग्लिश बोलती भी है।  रेखा और सुलेखा ने उच्च शिक्षित होने के साथ अपनी  मां से अच्छे संस्कार प्राप्त किए पिता ने भी शिक्षा पर अच्छा खर्च किया रेखा और सुलेखा की  मां ने सभी को अपनाना सिखाया

द्वेष की ईर्ष्या की भावना ना खुद के अंदर आने दी ना अपनी बेटियों के अंदर आने दी लेकिन काकी का अहंकार उनको ले डूबा ना  काकी अपने बेटों को संयुक्त परिवार में जोड़ने में सक्षम हो पाई काकी के बेटों की शिक्षा गिरते पड़ते बड़ी मुश्किल से हो पाई किसी की न भी हो पाई साथ में संस्कार भी बिगड़ गए बच्चे नशा के आदी हो गए,,, परिवार भी बिखर गया अब रेखा और सुलेखा को उनकी हालत देखकर बड़ी सहानुभूति होती है ,,

  मंजू तिवारी, गुड़गांव

 

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